Mai or Meri saari कल एक ब्लाॅग पढ़ा था। वह ब्लाॅग था 325 तरीके से साड़ी पहनने में माहिर डाॅली जैन पर। ब्लाॅग पढ़ते हीं मेरे मुंह से निकला वाह! क्या बात है। सोचने लगी कोई इतना टैलेंटड़ कैसे हो सकता है कि एक साड़ी को इतने तरीके से पहन सके। क्योंकि एक मैं हूँ जिसने जीवन के न जाने कितने वसंत( लेडीज़ अपना उम्र नहीं बतातीं) देख लिया है और शादी के बाद के पाँच बसंत भी फिर भी एक तरीके से भी साड़ी पहनना ठीक से नहीं आया।; ऐसा नहीं है कि मैंने कोशिश नहीं की। कोशिश तो इतनी थी कि शादी के तीन महीने पहले से यूट्यूब मास्टरनी के सामने साड़ी लेकर खड़ी हो जाती है। पर सीख नहीं पायी। न जाने यूट्यूब पर कितनी हीं मास्टरनियां बदली भी पर कोई फायदा नहीं हुआ। मैं इतनी बुरी स्टूडेंट साबित हुई थी अब तो किसी भी यूट्यूब मास्टरनी के पास जाने में डर भी लगता है कहीं छड़ी ले के दौड़ा न दे कि भाग यहाँ से। साड़ी पहनना तो शादी से पहले सीख नहीं पायी थी। शादी में जो भी रिश्तेदार आता यही पूछता साड़ी पहनना सीख ली हो और मैं ना का इशारा कर सिर हिला देती। फिर मुझ पर ज्ञान भरी उपदेशों की बारिश हो जाती। उस समय मैंने भी सोचा था भले हीं मुझे यूट्यूब वाली मास्टरनी नहीं सीखा पायी हो ससुराल में तो पहनते पहनते सीख हीं लूंगी। पर ऐसा हुआ कुछ नहीं। ससुराल की बातें तो बाद की है पहले शादी वाले दिन जो मेरा हाल हुआ वह मैं हीं जानती हूँ। मेरे यहाँ जितना शादी में रिवाज होता है उतना हीं साड़ी ;बदलने का भी। एक बार साड़ी पहनाना हो तो कोई पहना के छुट्टी भी कर दे पर यहाँ तो बार-बार बदलना था। जब भी साड़ी बदलना होता तो जो कोई पहना सके उसे बुलाने भेजना पड़ता। आने को तो कोई न कोई आ हीं जाता पर अपना उपदेश के साथ "ससुराल में क्या करोगी, वहां लोग क्या कहेंगे आदि आदि)।; खैर, शादी हो गयी और बिदाई भी। ससुराल पहुँची पूरे भारी भरकम साड़ी में। एक तो साड़ी इतनी भारी थी कि संभल नहीं रही थी दूसरा उस दिन गर्मी भी बहुत थी। ननद को शायद मेरी हालत पर तरस आ गयी और मुझसे बोली "भाभी बहुत गर्मी है साड़ी बदल लिजिए"। फिर मेरे सूटकेस से निकाल कर एक साड़ी दे दी। अब समझ नहीं आ रहा था कैसे कहूँ ननद रानी आपने साड़ी तो दे दी पर इसे पहनायेगा कौन। साड़ी भी ऐसी निकाली पूरी की पूरी फिसलन वाली। आँखों से आंसू निकलने लगे। सोचा कोशिश तो करूं हो सकता है पहन लूं। कोशिश की पर हार गयी। मेरी जेठानी आयीं, देखीं, थोड़ा देर हंसी पर पहना दी। जान में जा कर जान आयी। दूसरे दिन सीधे मैं उनके कमरे में। तीसरे दिन शायद सासू माँ को मुझ पर दया आ गयी इसलिए खुद हीं कह दी "तुम सलवार कमीज़ ही पहनो"। सलवार कमीज़ पहनने की छूट मिलते हीं मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। सब कुछ अच्छा चल रहा था मुझे साड़ी पहनने की कोई मजबूरी नहीं थी। लेकिन कहतें हैं न बकरे की अम्मा कब तक खैर मानायेगी। तो मेरे सिर पर साड़ी वाली मुसीबत आनी हीं थी। ननद की शादी थी। बहुत से रिश्तेदार जुटने वाले थें। फैसला हुआ जब तक सारे मेहमान रहेंगें सारी बहुएं साड़ी हीं पहनेगी। यह फरमान मेरे लिए किसी तुगलकी फरमान से कम न था। मैंने शुरू कर दिया ननद और जेठानियों की चापलूसी। कैसे भी सही यह मुसीबत मेरे सिर से तो टले। रोज किसी न किसी के कमरे में साड़ी पकड़ कर बैठ जाती थी। वह लोग भी दया खाकर पहना हीं देती थी। पर सबने मिलकर शादी वाले दिन धोखा दे दिया। मुझे तो आती नहीं थी साड़ी पहनना। मैं सिर पकड़ के बैठ गयी।; जब बहुत देर तक घर की छोटी बहू शादी में कहीं नहीं दिखी तो हर जगह मेरी तलाश होने लगी। लेकिन मैं तो कमरे में यूट्यूब मास्टनी के साथ बैठी थी। पतिदेव कमरे में आये और बतायें कि सारे लोग मुझे बुला रहें। मैं पाँच मिनट में पहुंचती हूँ बोल उन्हें विदा किया। पूरे जद्दोजहद के बाद पूराने जमाने में जैसे लोग साड़ी पहनते थे... बिना आँचल में प्लेट बनाये...आँचल से ही सिर से लेकर सब लपेट कर पहुँच गयी। बुआ सास ने देखते हीं टोका "इ का कन्या देहाती जैसा तैयार हुई हो... पहले जैसे गांव में लोग साड़ी पहनते थे ठीक वैसे हीं पहनी हो.. जाओ अच्छे से पहन कर आओ। मैंने कहा "बुआ जी यहाँ इतने बड़े बुजुर्ग आये है और मैं माॅडर्न जैसा साड़ी पहनू। ना ना कभी नहीं, सबका इज्जत करती हूँ"। सासू माँ देखकर समझ गयी और मंद मंद मुस्कुरा दी। शादी के बाद जो सबने मेरा हंस हंस के मजाक बनाया कि क्या कहूं। मैं खुद ननद की शादी का फोटोग्राफ देखती हूं तो मुझे हीं हंसी छूट जाती है।;