संभोग – एक दिनचर्या या एहसास !

संभोग – एक दिनचर्या या एहसास !

26 Feb 2019 | 1 min Read

Vavita Bhardwaj

Author | 44 Articles

आज हमारी शादी को ६ साल पूरे हुए।  बीते सालों में बहुत कुछ बदला, मैं एक पत्नी से माँ बनी और मेरी ज़िंदगी मेरे नन्हे मुन्हे के इर्द गिर्द घूमने लगी। मेरा बेटा अभी दो साल का है।  उसके जन्म से लेकर आज तक यानिकि २४ महीनों में , मैं और मेरे पति के रिश्ते में भी ढेरो बदलाव आये। बच्चे के आने से पहले हमारी शादीशुदा ज़िंदगी एक दूसरे के इर्द गिर्द घूमती थी। हाथों में हाथ डालकर लम्बी सैर पर जाना , साथ में घंटों बैठकर बातें करना। संभोग की अगर बात कहूँ तो शुरूआती एक साल हम रोज़ एक दूसरे को संभोग के ज़रिये अपना प्यार जताते थे।

 

बच्चे की देखभाल के चलते रात को देर तक जागना  और समय की कमी ने हमारी सैक्स लाइफ को बिल्कुल खत्म सा कर दिया था । कुछ दिनों तक मेरे पति ने इस बारे में बात करने की बहुत कोशिश की मगर एक माँ होने के नाते ,ढेरों ज़िम्मेदारियों से घिरी मैं ,हर बार उनकी इस बात को टालने लगी।  धीरे धीरे मैंने ये गौर किया उन्होंने अलग कमरे में सोना शुरू कर दिया , रात को होने वाली हमारी लम्बी लम्बी बातें अब बस ज़रूरी सवाल के जवाब में बदलती जा रही थी। रोज़ अब वे शाम को दफ्तर से घर आते और बस खाना खाकर ,टीवी देखते या अख़बार पड़ते और फिर बिना कुछ कहे सो जाते।

 

समय की कमी को एक वजह समझते हुए, मैं इस बात को कई महीनों तक नज़रअंदाज़ करती रही। मेरे पति भी शायद कहीं न कहीं स्वीकार कर चुके थे की अब मेरा सारा समय बस बच्चे के लिए है। और उन्होंने संभोग के लिए मुझपर पर कभी कोई दवाब नहीं डाला।हमारे रिश्ते में आयी ये उदासी हम दोनों के चेहरे पर साफ़ दिखने लगी थी। मगर एकाकी परिवार में जहाँ सारी ज़िम्मेदारी पति पत्नी को अकेले ही उठानी पड़ती है , वहां ऐसे बदलावों का आना  स्वाभाविक है।  

 

ऐसा नहीं था मैं समझ नहीं रही थी , सब समझ रही थी और महसूस कर रही थी। मगर दिन और रात हर एक मिनट में बस बच्चे के ख्याल ने मुझे मानसिक और शारीरिक रूप से उदास सा कर दिया था।  शायद ये हर माँ के साथ होता हो ,बच्चे के आने बाद हम महिलाएं अपना सर्वस्व अपने बच्चों के ऊपर न्योछावर कर देती हैं। और भूल जाती हैं की माँ बनने से पहले ,हम किसी की जीवन संगिनी भी है। संभोग के अभाव में , मैंने महसूस किया मुझमें चिड़चिड़ापन , गुस्सा और मानसिक तनाव बहुत बढ़ गया था।  बात बात पर गुस्सा करना , उदास हो जाना जैसे रोज़ का नियम बनता जा रहा था।

 

एक दिन मैंने अपनी इस स्तिथि से निकलने का वादा खुद से किया और शाम को जब मेरे पति ऑफिस से वापस लौटे , सभी काम जल्दी निपटा कर ,उनके हाथों में हाथ देकर बात करना शुरू किया। कारण समय की कमी नहीं थी , ज़रूरत से ज़्यादा बच्चे की परवरिश की फ़िक्र करना निकला। हम दोनों ने मिलकर एक दूसरे को समय देने का वादा किया। और बड़ी आसानी से अपनी रोज़ के दिनचर्या से एक दूसरे के लिए समय निकाल पाए।

 

एक औरत  किसी न किसी तरीके से इस दौर से ज़रूर गुज़रती है, जब वह खुद को एक माँ और पत्नी की ज़िम्मेदारियों से घिरा पाती है। ज़रूरत है तो बस थोड़ी सी प्लानिंग की। बच्चा , माता पिता के जीवन में नए रंग भरने आता है ,उसका पूरा आनंद आप उठाये। साथ ही साथ अपने शादीशुदा जीवन में प्यार की गर्माहट बनाये रखे।  सम्भोग, कोई घडी में समय देखकर खत्म करने वाला काम नहीं है , ये तो एक अहसास है , एक तरीका है जिससे आप एक दूसरे की प्रति अपने प्यार को ज़ाहिर कर सकते हैं।

आपने भी माता पिता बनने के बाद ऐसी स्तिथि का सामना ज़रूर किया होगा जहाँ आप अपने शादीशुदा जीवन को समय न दे पाए हो ? शेयर करें आपका अनुभव

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