अबके बरस मैं खेलूंगी ई-होली!

अबके बरस मैं खेलूंगी ई-होली!

5 Mar 2020 | 1 min Read

“मैं ना खेलूं रे, होली…”
पिछली बार कितनी मिन्नतें की थीं, कितनी दुहाई दी थी, यहां तक कि सोशल मीडिया में भी पोस्ट करके सबको एडवांस में रिक्वेस्ट की थी – “मैं ना खेलूं होली रे…” फिर भी किसी ने नहीं मानी। सबने रंग पोते- काले-पीले-नीले, सारे के सारे! वो तो अच्छा है कि मैं मुंबई में हूं, कहीं किसी गांव में होती तो होली के बहाने गोबर और राख से सान दिया होता भाई लोगो ने। लोगों ने नहीं अपनों ने ही… वो भी खास अपने ने! शुरूआत ही पतिदेव ने की, उसके बाद मौका मिल गया लोगों को रंगने का या कहें अपनी कुढ़न निकालने का। होली के दिन कौन छोड़़ता है भला?

मैं तो पक्की फेमिनिस्ट यानी नारीवादी हूं। जहां भी, जब भी मौका मिले पुरुषों को कोसना शुरू कर देती हूं… मगर  होली के दिन तो उलटा ही हो गया। सभी नारियों ने मिलकर मुझे ऐसा रंगा-ऐसा रंगा कि राधा भी इतनी न रंगी होगी श्याम रंग में… कबीर की झीनी-झीनी चदरिया भी कभी इतनी न मैली हुई होगी… जितनी कि इन मुई सहेलियों ने मेरी हालत कर दी।

एकता कपूर के सीरियल देख-देखकर मेरा भी मन ललचा जाता है सजने-धजने को! आखिर मैं भी तो एक औरत हूं! मैंने होली के लिए डिक्टो करीना कपूर जैसी डिज़ाइनर साड़ी खरीदी और सेम-टू-सेम जूलरी भी। पति के डेबिट कार्ड से शॉपिंग भी की। उस दिन मॉल में घूमते हुए मेरी आत्मा को कितना सुकून मिला था। आहा!!! मगर बुरा हो इन सहेलियों का…

मेरा गेटअप देख कर सब जल-भुन गई थीं। होली तो रात में जली थी और अब ये मुझे देखकर जल रही थीं। सौतिया डाह नहीं, पड़़ोसिया-डाह में आकर इन नासपीटियों ने पहले तो खूब सारा रंग पोता, फिर रंग भरी बाल्टी उड़ेल दी। एक… दो… नहीं, पूरे बीस बाल्टी। वैसे तो इन मुइयों से घर में एक गिलास नहीं उठाया जाता, सारा काम, बाइयां करती हैं, मगर मेरी डिज़ाइनर साड़ी की जलन में बाल्टी भर-भर के पानी डाला मुझपे।

उस पर भी जी नहीं भरा तो ऑइल पेंट चुपड़़ दिया मेरे नाज़ुक-नाज़ुक गालों पर, मेरे रेशमी काले घने बालों पर…। दो दिन पहले ही ब्यूटीपार्लर में घंटों सिटिंग कर के आई थी। मेरे सारे ब्यूटी केयर, हेयर केयर की वाट लगा दी। मेरी डिज़ाइनर साड़ी से जली-भुनी पड़ोसनों जी भर कर भड़ास निकाली।

‘होली के दिन दुश्मन भी गले मिल जाते हैं…!’ गाने से इंस्पायर्ड होकर मैंने अपनी एक झगड़ालू पड़ोसन को रंग लगा कर दोस्त बनाना चाहा तो वह मुझ पर बिदक गई। मन हुआ कि उस लुच्ची की चुटिया खींच लूं। पर वह मुझसे हट्टी-कट्टी थी। मैं बेचारी मन-मसोस कर रह गई। आगे एक बुढ़ऊ अंकलजी ने मुझे घेर लिया। महीनों से मुझे लाईन मार रहे थे। आज मौका मिला तो मुझ पर ऑइल पेंट लगा दिया। जी में आया एक लात जमा दूं, पर सबर करके रह गई, कहीं इधर-उधर लात लग गई तो अल्ला मियां को प्यारे न हो जाएं…!

मैं तो होली खेलने के लिए हर्बल इकोफ्रेंडली कलर्स लाई थी। मगर इन शहरी गंवार, जाहिल पड़ोसिनों ने जाने कौन-से सड़े रंग लगाए कि ज़बान कड़वी हो गई, आंखें जलने लगीं। ठंडई बांटने वाले पड़ोसी ने मेरी ठंडई में इतनी भंग मिलाई कि मुझे चढ़ गई। एक बार जो मैं हंसी तो हंसती रही। कभी पेट पकड़ कर, कभी गाल पकड़ कर, कभी सिर पकड़ कर…

जान बचाकर घर पहुंची तो वहां नया सीन क्रिएट हो गया- पतिदेव मेरी शॉपिंग की वजह से मुंह फुलाए बैठे थे। बेटे ने दरवाजा खोला और देखते ही डर गया।

शिनचैन की तरह चीखकर बोला- ‘पापा, देखो कोई चुड़़ैल आ गई है, बच्चे चुराने वाली खूसट बुढ़िया…!!! और उसने मेरे मुंह पर दरवाजा दे मारा। जी में आया कि कान के नीचे बजाऊं उसके। मगर गम खाकर रह गई। लाख समझाने के बाद बड़ी मुश्किल से मुझे अंदर आने दिया।
नहाने गई तो फिर मुसीबत। बीच में ही पानी चला गया। अगले दो दिन तक पानी कटौती चलती रही। बुरा हो इन मुंसीपाल्टीवालों का… ये भी दुश्मन निकले मेरे… दिनों निकल गए होली के रंग छुड़ाने में…

इसलिए अपन ने तो सोच लिया है इस बार अपन ‘हार्ड होली’ नहीं खेलेंगे, खेलेंगे तो ‘सॉफ्ट होली’। … नहीं समझे ‘ई-होली’ यानी इंटरनेट पर होली खेलेंगे। पिछले साल का गिन-गिन के बदला लूंगी। सारी सहेलियों की आई डी मेरे पास हैं। पहले से ही एक फेक आई डी बना ली है मैंने। अब उसी से सबको होली के ऐसे-ऐसे ई-कार्ड पोस्ट करूंगी कि सब सन्न रह जाएंगी।

सारी सहेलियां सोशल मीडिया पर हैं और उनके पति भी। इस फेक आई डी से जाएंगे उनके पतियों को होली मैसेजेस और पत्नियों को वॉर्निंग कि उनके हसबैंड का किसी से लफड़़ा चल रहा है। ऐसे स्क्रैप भेजूंगी कि उनका दिमाग स्क्रैप हो जाएगा। उनके वॉल पर ऐसा पोस्ट करूंगी कि पूरी दीवाल बदरंग हो जाएगी। इतना बज़ करूंगी कि सब बजबजा जाएंगी, इतना ट्वीट करूंगी कि लाइफ ट्विस्ट हो जाएगी। फिर नीचे लिखूंगी – ‘बुरा न मानो होली है!!!’

इस तरह मैं एक कौड़़ी भी खर्च किए बिना, होली मना लूंगी। सोशल मीडिया पर होली खेलूंगी। रियल में न रंग, न कोई प्रदूषण। ईकोफ्रेंडली होली। यानी कि ई-होली और रंग चोखा। वॉट एन आईडिया सुमनजी।
शायद अगले साल पर्यावरण बचाने का नोबल पुरस्कार मुझे ही मिल जाए।।
…बुरा न मानो होली है!

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