5 May 2022 | 1 min Read
Vinita Pangeni
Author | 399 Articles
थैलेसीमिया आनुवंशिक रक्त विकार है। बच्चे में थैलेसीमिया होने का मतलब है कि उसके शरीर में पर्याप्त हीमोग्लोबिन नहीं बन रहा है। इसकी वजह से बच्चे को एनीमिया हो जाता है।
गौर है कि हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं (रेड ब्लड सेल्स) का अहम हिस्सा होता है, जो पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाते हैं। इसकी कमी से बच्चे को कई दिक्कतें होती हैं। इनके बारे में आगे खुलकर चर्चा करते हैं।
थैलेसीमिया से हीमोग्लोबिना बनीं बनता है, जिससे एनीमिया होता है। इसके साथ ही कुछ इस तरह की शिकायतें भी बच्चे को हो सकती हैं।
थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के शरीर को स्वस्थ हीमोग्लोबिन देने के लिए रक्ताधान (ब्लड ट्रांसफ्यूजन) की आवश्यकता हो सकती है। ताकि उसके विकास में सहायता मिल सके।
थैलेसीमिया आनुवंशिक रक्त विकार है। यह माता-पिता या परिवार के किसी अन्य सदस्य के जीन से बच्चे तक पहुंचता है। इस दौरान बच्चे के उस डीएनए में बदलाव होता है, जो हीमोग्लोबिन बनाता है।
जब थैलेसीमिया के प्रकार की बात होती है, तो दो मुख्य चीजें समझनी जरूरी है। दो तरह से थैलेसीमिया के प्रकार को बांटा गया है। पहले तो हीमोग्लोबिन के जो हिस्सा प्रभावित होता है, जैसे –
दरअसल, हीमोग्लोबिन, जो शरीर में सभी कोशिकाओं तक ऑक्सीजन पहुंचाता है, वो दो अलग-अलग भागों से बना होता है, जिन्हें अल्फा और बीटा कहा जाता है। जब अल्फा थैलेसीमिया होता है, तो हीमोग्लोबिन का अल्फा हिस्सा नहीं बन पाता और बीटा थैलेसीमिया होने पर बीटा हीमोग्लोबिन नहीं बनता।
इसके बाद अल्फा और बीटा थैलेसीमिया को इनकी गंभीरता के आधार पर बांटा गया है। इनके आखिर में मेजर, माइनर शब्द लगाकर, जैसे –
थैलेसीमिया माइनर तब होता है, जब केवल माता या पिता में से किसी एक से खराब जीन (Faulty Gene ) प्राप्त होता है। इस प्रकार के लोग व बच्चे रोग वाहक (Disorder Carriers) होते हैं। इनमें अधिकतर थैलेसीमिया के लक्षण नजर नहीं आते।
थैलेसीमिया मेजर माता-पिता दोनों के खराब जीन व जीन दोष मिलने पर होता है। इसमें एनीमिया के गंभीर लक्षण दिखते हैं। Hb H में प्लीहा या तिल्ली (Spleen) बढ़ने लगती है और एनीमिया के लक्षण नजर आते हैं।
बच्चों में थैलेसीमिया मेजर के मामले पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में ही हैं। भारत में थैलेसीमिया मेजर से करीब 1 से 1.5 लाख बच्चे पीड़ित हैं। हर साल भारत में 10 से 15 हजार थैलेसीमिया मेजर ग्रसित बच्चे पैदा होते हैं। तकरीबन 42 मिलियन लोग बीटा थैलेसीमिया के वाहक (disorder carriers) हैं। माना जाता है कि मेजर थैलेसीमिया के 50 फीसदी बच्चे गरीबी और इलाज के अभाव में 20 साल की उम्र तक भी जीवित नहीं रह पाते।
ट्रैट और माइनर थैलेसीमिया में अधिकतर कोई लक्षण नजर नहीं आते हैं या हल्के एनीमिया के लक्षण दिखते हैं। गंभीर थैलेसीमिया वाले बच्चों में यह लक्षण दिख सकते हैं।
थैलेसीमिया का निदान प्रसव के बाद नवजात की स्क्रीनिंग से हो जाता है। यह स्क्रीनिंग थैलेसीमिया के सामान्य और गंभीर रूपों का पता लगा सकती है। यदि स्क्रीनिंग में माइल्ड थैलेसीमिया का पता ना चले, तो शिशु के एक से दो साल की उम्र के बाद होने वाले ब्लड टेस्ट (CBC) से इसका पता चल सकता है।
आमतौर पर इसे आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया मान लिया जाता है। हां, डॉक्टर सीबीसी के अलावा हीमोग्लोबिन के प्रकार देखने के लिए हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस ब्लड टेस्ट करवा सकते हैं। साथ ही अल्फा ग्लोबिन जीनोटाइपिंग टेस्ट भी लिख सकते हैं।
थैलेसीमिया का इलाज कैसे किया जाता है?
बीटा थैलेसीमिया वाले बच्चों के लिए जीन थेरेपी से लेकर अन्य उपचार करने की डॉक्टर सलाह दे सकते हैं।
ब्लड ट्रांसफ्यूजन
गंभीर थैलेसीमिया होने पर ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत पड़ती है। लेकिन, यह थैलेसीमिया का इलाज नहीं है। इससे बस बच्चे की ग्रोथ की बाधा को हटाने और थैलेसीमिया के लक्षण कम करने में मदद मिलती है। ऐसा हर 10 से 15 दिन में दोबारा करने की जरूरत पड़ सकती है।
सर्जरी
थैलेसीमिया से पीड़ित कुछ बच्चों की तिल्ली (Spleen) बढ़ जाती है। इसे हटाने के लिए स्प्लेनेक्टोमी नामक सर्जरी की जा सकती है। इससे एनीमिया की स्थिति में सुधार और पेट दर्द व पेट का बड़ा दिखने जैसे लक्षण कम हो सकते हैं। लेकिन इस ट्रीटमेंट से भी ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत खत्म नहीं होती।
बोन मैरो ट्रांसप्लांट
बोन मैरो ट्रांसप्लांट से बच्चे में रोग ग्रस्त रक्त कोशिका बनाने वाली कोशिकाओं को नए सेल्स से बदला जाता है। इस ट्रांसप्लांट के लिए भाई का बोन मैरो या बच्चे से मैच करने वाले किसी करीबी रिश्तेदार के बोन मैरो की जरूरत पड़ती है। यह प्रक्रिया थैलेसीमिया को ठीक कर सकती है।
बस तो ये थी शिशुओं में थैलेसीमिया से जुड़ी जरूरी जानकारी। यह एक खतरनाक रोग है, जिसे माँ गर्भ में ही बच्चे तक पहुंचने से रोक सकती है। इसलिए सतर्कता से ही शिशु को थैलेसीमिया होने से बचाया जा सकता है।