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प्रेग्नेंसी में ही लगाएं ऑटिज्म का पता, जानें कैसे

प्रेग्नेंसी में ही लगाएं ऑटिज्म का पता, जानें कैसे

1 Apr 2022 | 1 min Read

Vinita Pangeni

Author | 549 Articles

माँ के गर्भ से ही तो शिशु का विकास शुरू हो जाता है। इस दौरान भ्रूण पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के असर पड़ते हैं। क्या ऐसी कुछ चीजें हैं, जिनके चलते गर्भ में ही शिशु ऑटिज्म का शिकार हो जाता है? क्या ऑटिज्म का पता गर्भ में ही लगाया जा सकता है? आज ऑटिज्म से जुड़े ऐसे ही अहम सवालों के जवाब इस लेख में हम खास आपके लिए लेकर आए हैं।

सबसे पहले समझते हैं कि आखिर ऑटिज्म किसे कहते हैं।

क्या है ऑटिज्म?

ऑटिज्म, इसका पूरा नाम ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (autism spectrum disorder) है। यह न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर का समूह है, जिसके लक्षण बच्चे में पहले 3 वर्षों में ही नजर आने लगते हैं। ऑटिज्म मस्तिष्क के विभिन्न भागों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।

ऑटिज्म के शिकार बच्चों का विकास अन्य बच्चों के मुकाबले धीमा होता है। बच्चा खुद अपनी एक अलग दुनिया में जीने लगता है और दूसरों से घुलने-मिलने, बातचीत करने में कतराता है।

क्या गर्भ में ही ऑटिज्म की शुरुआत हो जाती है?

हां, ऑटिज्म को लेकर हुए कई सारे रिसर्च पेपर का मानना है कि ऑटिज्म की शुरुआत गर्भ से ही हो जाती है।  दरअसल, भ्रूण के विकास के समय मस्तिष्क को कवर करने वाले टिश्यू यानी कॉरटेक्स बनते हैं। 

लेकिन ऑटिस्टिक (autistic) बच्चों के मस्तिष्क में कॉरटेक्श बनने की प्रक्रिया में रुकावट आती है। इस रुकावट के चलते कॉरटेक्स की लेयर सही से नहीं बनती। वैज्ञानिकों को ऑटिस्टिक बच्चों में इस लेयर की जगह फोकल पैच दिखे हैं।

गर्भवती महिला/ स्रोत – पिक्सेल्स

ऑटिज्म के कारण

यूं तो ऑटिज्म का मुख्य कारण अज्ञात है। हां, रिसर्च का मानना है कि जीन दोष (gene defects) और गुणसूत्र विसंगतियों (chromosomal anomalies) के कारण बच्चा ऑटिज्म का शिकार हो सकता है। इसके अलावा, गर्भावस्था का भी ऑटिज्म से सीधा संबंध माना जाता है। किस तरह से प्रेग्नेंसी से ऑटिज्म का संबंध है, आगे समझिए।  

  • गर्भावस्था में मां को कोई गंभीर बीमारी या मानसिक विकार 
  • शिशु का गर्भ में सही मानसिक विकास न होना 
  • प्रेग्नेंसी में माँ का खानपान सही न होना
  • महिला का वजन जरूरत से ज्यादा बढ़ना
  • प्रदूषण व रसायन के संपर्क में आने से तंत्रिका तंत्र पर पड़ने वाला असर
  • अधिक उम्र में गर्भ धारण करना
  • गर्भावस्था में थायराइड संबंधी दिक्कतें और थायरायड हार्मोन में कमी
  • बैक्टीरिया या वायरस संबंधी गंभीर बीमारी
  • एमनियोटिक द्रव (amniotic fluid) में टेस्टोस्टेरोन (Testosterone) हार्मोन का स्तर बढ़ना
  • प्रेग्नेंसी में फोलेट का स्तर बहुत कम या बहुत अधिक होना
  • गर्भवती में विटामिन-डी का स्तर कम होना
  • गर्भ में या प्रसव के दौरान शिशु को सही से ऑक्सीजन न मिलना
  • प्रेग्नेंसी में ली जाने वाली कुछ दवाएं
  • गर्भावस्था में प्री-एक्लैम्पसिया
  • डायबिटीज और आयरन की कमी से भी बच्चा ऑटिस्टिक (autistic) हो सकता है।

क्या प्रेग्नेंसी में पता चल सकता है गर्भस्थ शिशु ऑटिज्म का शिकार है?

हां, गर्भ में ही शिशु ऑटिज्म का शिकार हुआ है या नहीं, ये पता लगाया जा सकता है। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के एक अध्ययन में गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के दिमाग में अंतर पाया गया

दरअसल, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) से पीड़ित बच्चों का दिमाग और शरीर दूसरी तिमाही की शुरुआत में सामान्य बच्चों की तुलना में तेजी से बढ़ सकता है।

इसके अलावा एक छोटे से अध्ययन के दौरान ऑटिज्म का शिकार हुए बच्चों का अल्ट्रासाउंड देखा गया। इससे पता लगा कि मां के गर्भ में 20वें हफ्ते में ऑटिस्टिक बच्चों का सिर और पेट का आकार अन्य सेहतमंद बच्चों के मुकाबले अधिक था।  

इस आधार पर कहा जा सकता है कि दूसरी तिमाही में डॉक्टर की सलाह व देखरेख में रुटीन अल्ट्रसाउंड से ऑटिज्म का गर्भ में ही पता लगाया जा सकता है। इसकी मदद से बच्चे पर जन्म से ही विशेष ध्यान देने और एक सीमित उम्र के बाद संबंधित उपचार शुरू करने में मदद मिलेगी।

यही नहीं, डॉक्टर की सलाह पर प्रसव पूर्व आनुवंशिक परीक्षण (prenatal genetic testing) से भी जीन और क्रोमोसोम संबंधी गड़बड़ी का पता लगाया जा सकता है। जैसा कि हम ऊपर बता ही चुके हैं कि इन्हें ऑटिज्म का कारण माना जाता है। यह टेस्ट मस्तिष्क और स्पाइन संबंधी बर्थ डिफेक्ट का पता लगाने में भी कारगर माना जाता है।

साथ ही थायराइड हार्मोन में कमी का पता लगाकर भी शिशु में ऑटिज्म के जोखिम को डिटेक्ट किया जा सकता है। हम ऊपर स्पष्ट कर ही चुके हैं कि थायराइड हार्मोन में कमी और थायराइड संबंधी विकार ऑटिज्म का खतरा पैदा कर सकते हैं।

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