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कभी कभी ज़िन्दगी से इतनी शिकायतें होने लगती हैं , ऐसा लगने लगता है जैसे ईश्वर ने हमें केवल अपनी कसौटी पर परखने के लिए ही धरती पर भेज था।

कुछ ख़्वाहिशों का ठौर ठिकाना ज़रूरत तक ही सीमित ररह गया। और ज़रूरत अब ज़रूरत रह ही नहीं गयी।

थोड़ा सरोकार रिश्तों से था वो भी मुट्ठी में रेत की तरह फिसलता चला जा रहा था।

हर तरफ नाकामी का एक मंज़र ज़िन्दगी जीने का जज़्बा ही खींचे जा रहा था मुझसे।

वो कुंठा वो खीज मुझे अंदर ही अंदर परेशान करती। पर क्या सच मुच ये ज़िन्दगी जीने का सही तरीका है।

मैंने अपनी कुंठा की पराकाष्ठा पर ही सही पर ये सवाल खुद से किया।

क्या इसे समस्याओं का पलड़ा हल्का हो जाएगा??

नहीं ना!!

बेचारे इस शरीर की क्या खता है??

ये तो सबसे अनमोल तोहफा है जो ईश्वर ने हमें दिया है।

परिस्थितियों में घिर कर हम सबसे पहले इसी तोहफ़े का तिरस्कार करते हैं।

अच्छा बुरा लगा रहेगा। गलत सही एक क्रम है। लोग ट्रैन की तरह रक स्टेशन पर चढ़ेंगे और उतरेंगे। समय बदलता रहेगा लेकिन ज़िन्दगी का फलसफा खुश रहने में है।

जो है उसको स्वीकारने में है।

अपने पर भरोसा और आत्मविश्वास हर मर्ज की दवा है।

और फिर मैंने सोचा...दुखी रह कर भी हम ऐसा कुछ खास नहीं कर लिया😂😉😉

#मेरासफ़र
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Anonymous

Madhavi Cholera

very nice

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Isha Pal

Wow ... Bahut Acha likha h Aapne

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