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शादी..... यानी एक लड़की की ज़िन्दगी का दूसरा पड़ाव और फिर माँ बनने का एहसास यानी उसका दूसरा जन्म.....

अब तक माता, पिता, भाई, बहन और फिर पति के साथ ज़िन्दगी की राहों को नापती आयी औरत के लिए जीवन का ये दूसरा सफ़र हर दिन ज़िन्दगी के मायने बदलता जाता है।

घबराहट है लेकिन ख़ुशी भी है, चिंता है तो सुकून भी, डर है तो एक माँ का हिम्मत और हौसला भी है। मैं आज ये सब इसलिए लिख पा रही हूँ क्योंकि उन नौ महीनों में इन सभी भावों को अनुभव किया है मैंने। जब भी कभी अपने उभरते पेट पर हाथ रखती और उस नन्हीं -सी जान से प्रार्थना करती कि बस एक बार मुस्कुराते हुए बाहर आ जाओ और बदले में वो अंदर से ही मेरे हाथों पर अपने छोटे-छोटे पैरों के निशान बना देता तो यकीन हो जाता कि उसे भी अपनी माँ से मिलने की उतनी ही बेचैनी है जितनी कि माँ को उसको देखने की। पर अभी तो हमारी ये यात्रा सिर्फ शुरू ही हुई थी। न जाने कितने बदलते मौसम, उबड़-खाबड़ रास्ते हम दोनों की ही हिम्मत को पस्त करने के लिए आने वाले थे........
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