✨ लंका-युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण-वध के लिए चंडीदेवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ 108 नीलकमल की व्यवस्था की गई, वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया। यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुंचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासंभव पूर्ण होने दिया जाए। इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा। भय इस बात का था कि देवी मां रुष्ट न हो जाएं। दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग कमलनयन नवकंच लोचन कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राज जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी ने प्रकट हो, हाथ पकड़कर कहा- राम, मैं प्रसन्न हूं और विजयश्री का आशीर्वाद दिया। ✨ रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धरकर हनुमानजी सेवा में जुट गए... नि:स्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमानजी से वर मांगने को कहा। इस पर हनुमानजी ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए। ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया। मंत्र में जयादेवी... भूर्तिहरिणी में 'ह' के स्थान पर 'क' उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है। 'भूर्तिहरिणी' यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और 'करिणी' का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया। हनुमानजी ने श्लोक में 'ह' की जगह 'क' करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी। 🌷🌿🌸🌺🍃💖🍃🌺🌸🌷🌿💖🌺🌸🌷🌿🌷🌿🌷🌿Jai Shri Ram 🌷🌸🌿🌷🌸🍃💖🍃🌺🌸🌷🌿💖🍃🌺