हाँ जी, तो सब बढ़िया चल रहा था और तभी मेरी बिटिया रानी के आने की खुशखबरी हमें मिली और क्या बताऊँ हम दोनों तो सातवें आसमान पर थे ही, कि हमारी बैस्ट फ्रैंड्स की टीम में बढ़ोतरी जो होने वाली थी, पर हमसे भी ज्यादा हमारे घर वाले खुश थे। यूँ समझिए कि बस मेरे सास-ससुर ने पलकों पर बिठा कर रखा था मुझे पूरी प्रैग्नेंसी में ,और पतिदेव तो थे ही हर पल साथ। बस सबके साथ और प्यार से वो नौ महीने कब निकले पता ही नहीं चला बस खुशियाँ ही थीं चारों ओर। ऐसा लगता था पूरी दुनिया ही बदल गई थी मेरी जो भी चाहा था सब मिला था। हम दोनों ही बेटी चाहते थे पर फिर भी यही मन में प्रार्थना करते जो भी हो स्वस्थ हो। थोड़ी बहुत परेशानियां आईं पर इतने सारे प्यार दुलार के आगे परेशानियां कहाँ टिकतीं भला, सो वो समय पार कर लिया। नौ महीने बाद एक सुंदर, गोरी, गुलाबी सी परी जैसी बिटिया को मैंने जन्म दिया और हॉस्पिटल में सबकी खुशी बस देखते ही बनती थी। मेरे हसबैंड और देवर दोनों भाई हैं कोई बहन नहीं और देवर के होने के बाद करीब इक्कीस बाईस साल बाद मेरी गुड़िया रानी आईं थीं तो ऐसा स्वागत तो बनता ही था। दस दिनों के बाद लखनऊ में शानदार पार्टी मेरी बिटिया के बाबा-दादी नें दी और सबने परी को खूब आशीर्वाद दिया। अब थोड़ा सा स्ट्रगलिंग पीरियड था जब नये नये में कभी कभी समझ नहीं आता था कि क्या जिंदगी हो गई है बेटू पूरी रात तो जगाती और सवेरे सोती और मुझे तो काम होता। मेरे पतिदेव को भी अब कम समय दे पाती। धीरे धीरे बेटी को पालने में इतनी बिजी हुई कि कुछ होश ही नहीं रहता था बस एक ही धुन बेटू की सबसे अच्छी तरह परवरिश करनी है कोई कमी नहीं करनी है मुझे। पर इस सबमें मैं कब पोस्टपार्टम डिप्रेशन की ओर जाने लगी और डिप्रेशन में पूरी तरह डूब भी गई मुझे खुद भी पता नहीं चला। सबसे दूर होती जा रही थी यहाँ तक कि खुद से भी। कहते हैं जब खुशियाँ ज्यादा मिल जाएं तो फिर अपनी ही नज़र लग जाती है, शायद वही मेरे साथ हुआ था। बहुत मुश्किल समय था सच में वो पर हाँ अपनों के साथ, प्यार और सपोर्ट से वो मुश्किल समय भी निकल ही गया। पर दुआ करती हूँ कि किसी को भी ना हो डिप्रेशन ( मैंने पोस्टपार्टम डिप्रेशन पर इंग्लिश में लिखा है ताकि अगर कोई भी इसका शिकार हो तो पढ़े और समझे कि इससे जिंदगी खत्म नहीं होती, रुकती भी नहीं, इलाज है बस आप बात करें अपनों को अपनी तकलीफ जरूर बताएं, यही इससे निजात पाने का एक रास्ता है, अगर किसी एक को भी पढ़कर फायदा हो तो मेरा लिखना सार्थक होगा, अगर कोई भी पढ़ना चाहे तो बताए मैं लिंक कमेंट्स बॉक्स में पोस्ट कर दूँगी); खुद को भी समझ नहीं आता कि खुद को ही क्या हो रहा है, कभी रोना आता है तो कभी इतनी उदासी छा जाती कि क्या बताऊँ। बस अपनी बेटू का मासूम चेहरा देखकर जीने का मोह छूटता ही नहीं था। खैर जैसे खुशियाँ हमेशा नहीं रहतीं हैं वैसे ही दुख और परेशानियों भी हमेशा नहीं बनी रहती इनका भी अपना ही महत्व है इनसे बाहर निकल कर ही तो हम जिंदगी कितनी अनमोल है ये जान पाते हैं।
चलिए अब थोड़ी सी देर में ही अगला और अंतिम भाग लेकर हाजिर होती हूँ।
anita
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28 Nov 2019