anonymous
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This poem has a fresh perspective on marriage rituals. What do you ladies think about it?

:- कन्यादान नहीं करूंगा जाओ ,

;;;;;;;;;;;;;;; मैं नहीं मानता इसे ,

क्योंकि मेरी बेटी कोई चीज़ नहीं ,जिसको दान में दे दूँ ;

मैं बांधता हूँ बेटी तुम्हें एक पवित्र बंधन में ,

;;;;;; पति के साथ मिलकर निभाना तुम ,

मैं तुम्हें अलविदा नहीं कह रहा ,

आज से तुम्हारे दो घर ,जब जी चाहे आना तुम ,

; जहाँ जा रही हो ,खूब प्यार बरसाना तुम ,

सब को अपना बनाना तुम ,पर कभी भी

; न मर मर के जीना ,न जी जी के मरना तुम ,

तुम अन्नपूर्णा , शक्ति , रति सब तुम ,

;;;;;;; ज़िंदगी को भरपूर जीना तुम ,

न तुम बेचारी , न अबला ,

;;;;;; खुद को असहाय कभी न समझना तुम ,

मैं दान नहीं कर रहा तुम्हें ,

;;;;;;; मोहब्बत के एक और बंधन में बाँध रहा हूँ ,

उसे बखूबी निभाना तुम .................

*एक नयी सोच एक नयी पहल*
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