ई डी डी कैलकुलेटर नवजात शिशु के आगमन की तैयारी में आपकी मदद करता है
भावी अभिभावकों के लिए बच्चे का आना रोमांचक और तनावपूर्ण दोनों होता है | यदि बच्चे के पैदा होने की तिथि पहले पता चल जाए तो उसके आगमन की तैयारी करने में थोड़ी मदद मिल जाती है | डॉक्टरों के पास विभिन्न तरीके होते हैं बच्चा पैदा होने की संभव तिथि बताने के लिए | उस संभावित तिथि को (EDD अथवा ई डी डी ) कहते हैं, मतलब एक्सपेक्टेड डेट ऑफ़ डिलीवरी | इसके लिए आमतौर पर एक ई डी डी कैलकुलेटर का इस्तेमाल होता है जो कि काफी हद्द तक सटीक होता है |
ई डी डी कैलकुलेटर बच्चा पैदा होने का समय पता करने में मदद करता है, जैसे कि जन्म पूर्ण अवधि पर होने है (40 हफ्ते ), अवधि से पहले (37 हफ्ते ) या अवधि के बाद (40 हफ़्तों के बाद )| लगभग सभी मामलों में बच्चे ई डी डी से 2 हफ्ते पहले या बाद ही जन्म ले लेते हैं | सिर्फ 4 से 5 प्रतिशत बच्चे ई डी डी अथवा संभावित तिथि पर पैदा होते हैं |
ई डी डी कैलकुलेटर से क्या उम्मीद रखें ?
इंटरनेट पर मौजूद ई डी डी कैलकुलेटर एक आसान सा यन्त्र है जिससे आप फटाक से जानकारी प्राप्त कर सकती हैं |
यहाँ संभावित तिथि जानने के लिए दो तरीकों का इस्तेमाल आमतौर पर होता है :
1. ई डी डी कैलकुलेटर एल एम् पी (LMP और लास्ट मेंस्ट्रुअल पीरियड अथवा आखिरी माहवारी का समय )
यह तरीका नीचे लिखे मापदंडों पर काम करता है:
गर्भावस्था की पूरी अवधि को 280 दिन (40 हफ्ते) दिए जाते हैं जो की साधारण अवधि है |
गर्भधारण करने से पहले की माहवारी का पहला दिन
आप संभावित तिथि को बिना किसी यन्त्र के नैगेले के नियम (Naegele’s rule )से भी पता कर सकते हैं: पिछली माहवारी के पहले दिन से 7 दिन जोड़िये, गर्भधारण करने के वर्ष में एक वर्ष जोड़िये और फिर पिछली माहवारी के महीने से 3 महीने घटा दीजिये |
यह तरीका उन महिलाओं के लिए कारगर है जिनको समय पर माहवारी आती रहती है | परन्तु यदि माहवारी असामयिक होती है तो इस तरीके से गलत तिथि निकलने की सम्भावना बहुत अधिक बढ़ जाती हैं | यदि पिछली माहवारी की सटीक तिथि ना पता हो उस स्तिथि में इस तरीके से गलत तिथि निकलने की सम्भावना बनी रहती है |
2. अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट पर आधारित ई डी डी कैलकुलेटर
एल एम् पी तरीके के विपरीत अल्ट्रासाउंड स्कैन (यू एस जी) को आधार बना कर ई डी डी का पता लगाना काफी हद तक सटीक परिणाम देता है |
इस तरीके में संभावित तिथि का आंकलन कोख में पालते हुए बच्चे के आकर को देख कर लगाया जाता है | अलग अलग माँपों को भ्रूण की आयु के हिसाब से मापदंड बना कर तिथि का आंकलन किया जाता है | बच्चे के क्राउन रम्प, बाईपैरीटल डाईमीटर और फीमर लेंथ का मांप लिया जाता है | इन सब का प्रयोग करके बच्चे के सर की लम्बाई और आकार को मांपा जाता है |
अल्ट्रासाउंड स्कैन की मदद से जन्म की संभावित तिथि गर्भावस्था के शुरुआत में (पहले 12 हफ्ते तक ) ही पता की जा सकती है | गर्भावस्था के पांचवे महीने के बाद तिथि पता करने का कोई फायदा नहीं होता | अल्ट्रासाउंड स्कैन की मदद से आप शुरू से लेकर वर्त्तमान तक गर्भावस्था की अवधि भी पता कर सकते हैं |
ई डी डी की गणना और उसको सनद गर्भावस्था की पहली तिमाही में करना ज़रूरी है | गर्भावस्था की तैयारी, उसका प्रबंध और जन्म की तैयारी दोनों तरीकों से करना आवश्यक है |
कुछ मामलों में दूसरी तिमाही में LMP और USG द्वारा लगाए गए अनुमान में फ़र्क़ होता है | ऐसे समय में, संभावित तिथि को दूसरी तिमाही की USG रिपोर्ट के हिसाब से बदल दिया जाता है |
यदि असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (ART ) द्वारा कृतिम रूप से गर्भधारण करवाया गया है तो जन्म की संभावित तिथि जानने के लिए भ्रूण की आयु और गर्भावस्था की अवधि में कुछ संशोधन करने होते हैं |
IVF (आई वी ऍफ़ ) अथवा इन विट्रो फर्टिलाइजेशन में कृतिम गर्भाधान से उत्पन्न हुए भ्रूण की आयु और गर्भाशय में कृतिम गर्भाधान की तिथि जैसे मापदंडों को माना जाता है |
अस्वीकरण : यहाँ पर मौजूद सभी जानकारी पेशेवर सलाह, निदान और उपचार का विकल्प नहीं है | कुछ भी करने से पहले अपने डॉक्टर से जानकारी अवश्य लें |