30 Apr 2018 | 1 min Read
Shantana Dutta
Author | 12 Articles
जब वंश 6 वर्ष का था तब मैं उसके लिए पहली किताब एक छोटी सी दूकान से लेकर आयी थी | वो सभी साधारण से 50 – 60 रूपए की किताबें थी, कुछ गाड़ियों के बारे में, कुछ फल और सब्ज़ियों, नर्सरी राइम्स, और कुछ कहानियों की | शुरुआत में वंश को तैयार करते समय और खाना खिलते समय राइम्स गा कर सुनाती थी, फिर धीरे धीरे सुलाते समय कहानी पढ़ कर सुनाने की हमारी आदत बन गयी | कुछ समय बाद मैंने ध्यान दिया कि जब भी मैं ऊंची आवाज़ में पढ़कर सुनाती तो वंश ख़ुशी से हाथ पैर ऊपर कर लेता था | हमारा पढ़ने पढ़ाने का सफर तभी से शुरू हुआ और आज जब वंश 4 वर्ष का है उससे किताबें बहुत पसंद हैं और पढ़ने की अच्छी आदत उसे लग चुकी है |
यदि आप चाहते हैं आपका बच्चा भी ऐसी ही आदतें बनाये तो बच्चे को पढ़कर सुनाने के बारे में कुछ उम्दा जानकारी आप यहाँ ले सकते हैं…
तो अपने बच्चे को पढ़ने शुरू करने के लिए सही उम्र क्या है?
ऐसा माना जाता है कि बच्चा गर्भ में भी अपनी माँ कि बात सुन सकता है, और यह बात गर्भ संस्कार में आती है | यदि आप बच्चे को संगीत सुनाने के पक्ष में हैं तो एक बार सोच कर देखिये कि यदि आपका बच्चा संगीत और कहानियां आपकी आवाज़ में सुनता है तो उसके लिए ज़्यादा बेहतर बात होती है | आप जब बच्चे को पढ़कर सुनाना शुरू करते हैं, उसे ध्वनि, लय और ताल के एहसास होता है जिससे बच्चों में बोलने और पढ़ने की विद्या जल्दी आती है |
क्या इसके लिए किसी समय सारिणी का पालन करना ज़रूरी है ?
बच्चे को पढ़कर या गा कर सुनाने के लिए कोई भी समय ठीक है | परन्तु जब आप एक समय निर्धारित करते हैं, जैसे के रात्रि में सोते समय, बच्चा में भी पैटर्न बनता है और वो स्वयं को उस समय के हिसाब से ढाल लेता है और जब उसे समय पता होता है तो वह उसका बेसब्री से इंतज़ार भी करता है और आनंद भी लेता है |
छोटे बच्चों को एक ही कहानी बार बार सुनने में बड़ा मज़ा आता है क्यूंकि वो उस कहानी को अच्छे से जानते हैं और उन्हें पता है कि आगे क्या होने वाला होता है |
अपने बच्चों को किस तरह पढ़ कर सुनाएं ?
यह काफी ज़रूरी है कि किताबें पढ़ना आनंदमयी हो | यदि किताबें और कहानियां मज़ेदार और रोचक होंगी तो उनसे भागने के लिए कोई वजह नहीं मिलेगी | क्यूंकि हर किसी को मज़ेदार कहानियां पसंद होती हैं |यदि आपकी तमाम कोशिशों के बाद भी बच्चा का रुझान किताबों की तरह नहीं जा रहा तो ज़बरदस्ती मत कीजिये, कोई भी थोपी हुई बात में मज़ा नहीं आता | बच्चे के पास यह स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वह कब और कौन सी किताब पढ़ना चाहता है |
बच्चे की आयु के हिसाब से कहानियां चुनें और यदि आपका बच्चा स्वयं से कोई सुझाव दे पाता है तो वही पढ़ाएं |
पढ़ने को मज़ेदार बनाने के कुछ सुझाव इधर दिए हुए है :
एक बार जब बच्चे ने कहानी का आनंद लेना शुरू कर दिया है, तो कुछ पढ़ने के कौशल को आजमाने और बनाने के लिए शब्दों को इंगित करना शुरू करें।
1. भारतीय संदर्भ में घर पर कई भाषाएं बोली जाती हैं। अक्सर, बच्चों को अंग्रेजी में पढ़ाये जाने पर कहानी का मतलब समझ में नहीं आता है और वे रुचि खोने लगते हैं। ऐसे मामलों में कृपया बच्चे की मातृभाषा में कहानी बताने की कोशिश करें और फिर लगातार पढ़ने के बाद कोई भी पुस्तक को अंग्रेजी में पढ़ सकते है और फिर इसका अनुवाद कर सकते हैं । इस्तेमाल की जाने वाली भाषा के स्तर पर निर्भर होता है कि बच्चा उस पर कितना ध्यान देगा ।
2. कहानी में रहस्य और नाटक डालते रहे | वयस्क और बच्चों दोनों को भावनात्मक संवाद बड़े अच्छे लगते हैं | कहानी के हिसाब से अपनी गति बनाएं और प्रयास करें कि आपकी आवाज़ कहानी का स्वर से मिलती रहे | इसीलिए कहानी कहना भी एक कला होती है |
किस तरह की किताबें लीं जाए ?
बच्चों को सिर्फ इस बात से मतलब है कि आप उनके साथ प्यार से साथ बैठ कर खेलते रहे | यही काम यदि किताब हाथ में लेकर किया जाए तो और भी अच्छा होगा |
बच्चों कि किताब कम शब्द और उजली चमकती छवियों, रचनात्मक, और बहुत सी आवाज़ों के साथ होनी चाहिए | यह अच्छा होगा कि भारतीय पुब्लिकेशन्स से बबल्स, पीपर, बैनी, ब्रूनो इत्यादि पात्रों कि किताबें ली जाएँ और विदेशी पब्लिकेशंस से मैसी, स्पॉट, पीपा पिग, क्यूरियस जॉर्ज इत्यादि जैसी | यदि बच्चों को उनके पसंदीदा पात्रों से जुड़ी कहानिया सुनने को मिलेगीं तो वो उनपर अधिक ध्यान देंगे | ऐसी किताबें बच्चों को बहुत भाँती हैं और वो कभी कभी इनके कई बार पढ़ना पसंद करते हैं | अभिभावक होने के नाते हमारा काम यह है कि हम उन्हें अलग अलग विषयों,लेखकों की किताबों से अवगत कराएं और उन्हें अपनी इच्छानुसार किताबें पढ़ने में मदद करें | यह बात याद रहे बच्चों की पसंद वक़्त के साथ बदलती जाएगी |
यदि आपको यह लेख रोचक लगा और पसंद आया और यदि आप कुछ और जानकारी चाहते हैं तो कृपया हमें बताएं |