18 Jun 2018 | 1 min Read
Ruth Malik
Author | 11 Articles
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि हॉस्पिटल एक सा तरीका नहीं अपनाते हैं. हर जगह अपना अलग हिसाब होता है. प्रेगनेंसी में ज़रूरी सही प्रक्रियाओं को कई जगह फॉलो नहीं किया जाता, जबकि ग़लत चीज़ें चलन में आ जाती हैं, इसलिए जागरूक होना ज़रूरी है. जब आप पहले से ही जानकारी रखेंगे, तो फ़ैसले लेने में आसानी होगी।
मेडिकल मॉडल
इस मॉडल के हिसाब से प्रेगनेंसी और डिलीवरी दो मेडिकल इवेंट्स हैं. इसमें आपको विटामिन दिए जाएंगे, प्रोजेस्टेरोन दिए जाएंगे। इस इवेंट में डॉक्टर अलग-अलग टेस्ट और स्कैन के लिए लिखते हैं. महिलाओं को चाहे ज़रूरत हो या न हो, उन्हें 2 सोनोग्राफ़ी के लिए बोला जाएगा। जन्म का समय नज़दीक आने से पहले ही डिलीवरी की डेट दी जाएगी और लेबर शुरू कर दिया जाएगा। ज़रूरत के बिना ही Episiotomy कर दी जाएगी, क्योंकि इनके अनुसार महिला का शरीर प्रेगनेंसी झेल नहीं सकता और ये एक खतरनाक इवेंट होता है. नॉर्मल डिलीवरी थोड़ी देर में C सेक्शन में बदल जाएगी।
नॉर्मल और नेचुरल मॉडल
इस मॉडल में एक्सपर्ट्स माँ और बच्चे की केयर करते हैं और उनका ध्येय नॉर्मल डिलीवरी ही होता है. इस दौरान बेवजह के टेस्ट, स्कैन, दवाईयां और सर्जरी तब तक नहीं दी जाती, जब तक ज़रूरत न पड़े. अमूमन पूरी प्रेगनेंसी में 1 या 2 सोनोग्राफ़ी माँ के लिए की जाती है, ताकि शिशु से जुड़ी किसी भी तरह की प्रॉब्लम का पहले से पता चल सके. महिलाओं के शरीर को जन्म देने के लिए आईएसएम मॉडल के तहत फ़िट माना जाता है. इससे माँ और बच्चे की हेल्थ पर
जीवन भर का असर पड़ता है. भारत में बहुत कम हॉस्पिटल नॉर्मल मॉडल फॉलो करते हैं, लेकिन जितने भी करते हैं उनका सक्सेस रेट 97 तक रहता है.
ब्रिटैन, हॉलैंड, न्यूज़ीलैंड जैसे देश नॉर्मल मॉडल फॉलो करते हैं. वहाँ बच्चे और माँ की देखभाल के लिए दाई या मिडवाइफ होती हैं. इसलिए इन जगहों का सक्सेस रेट बेहतर होता है. अमेरिका मेडिकल मॉडल फॉलो करता है और वहाँ जन्म के दौरान शिशु और माँ की मृत्यु दर सबसे ज़्यादा है.
आपका कौन सा मॉडल बेहतर मानते हैं?
A
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