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प्रेगनेंसी के आख़री तीन महीनों में ज़रूर करवाएँ ये टेस्ट

प्रेगनेंसी के आख़री तीन महीनों में ज़रूर करवाएँ ये टेस्ट

27 Jul 2018 | 1 min Read

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प्रेगनेंसी की तीसरी तिमाही में ज़्यादातर टेस्ट ये चेक करने के लिए होते हैं कि प्रेगनेंसी सही जा रही है या नहीं। आपकी उम्र, सेहत, मेडिकल हिस्ट्री के हिसाब से आपको टेस्ट की सलाह दी जाती है. ये लेख इन्हीं के बारे में विस्तार से बात करेगा।

 

क्योंकि तीसरी तिमाही तक महिला का शरीर माँ बनने और एक बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार हो रहा होता है, इसलिए आपको ये परेशानियाँ हो सकती हैं.

जैसे ज़्यादा दर्द, सूजन, डिलीवरी को लेकर घबराहट, बच्चे का ज़्यादा मूव करना भी होगा।

 

तीसरी तिमाही में होने वाले टेस्ट में प्रमुख है ब्लड टेस्ट, जिसमें STI, HIV का टेस्ट होता है. इसके अलावा ब्लड शुगर का टेस्ट ताकि डायबिटीज़ का पता लग सके.

 

ब्लड टेस्ट के अलावा तीसरी तिमाही में होने वाले टेस्ट:

 

टेस्ट ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस इन्फेक्शन

 

ये टेस्ट प्रेगनेंसी के 35-37 हफ़्ते में किया जाता है. ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस बच्चे को कई गंभीर इन्फेक्शन दे सकता है. अगर टेस्ट पॉजिटिव आते हैं, तो तुरंत एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं ताकि इन्फेक्शन बच्चे तक न पहुँचे।

 

नॉन-स्ट्रेस टेस्ट

 

प्रेगनेंसी के 26वें हफ़्ते में करवाया जाने वाला ये टेस्ट किसी मोशन से बच्चे के रिस्पांस को चेक करने के लिए होता है. ये तब किया जाता है, जब प्रेगनेंसी में रिस्क ज़्यादा होता है या जब बच्चे का मूवमेंट कम हो. बच्चा अगर रिस्पांस नहीं दे रहा तो आगे और टेस्ट के लिए कहा जाएगा, इसमें घबराने की बात नहीं।

बिओफिज़िकल प्रोफाइल (BPP)

 

BPP में एक अल्ट्रासाउंड और नॉन स्ट्रेस टेस्ट होता है, ये प्रेगनेंसी के 26 से 28वें हफ़्ते में किया जाता है. इसमें बच्चे का मूवमेंट, एमनीओटिक द्रव्य की मात्रा, बच्चे का हार्ट रेट देखा जाता है. इन टेस्ट के दौरान आप इन्हें या आपका चेकअप करने वाला इन्हें देख सकता है. इसका रिजल्ट फ़ौरन मिल जाता है और इसके नतीजा मान्य होते हैं.

 

कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट

 

डिलीवरी के समय महिला के शरीर से ऑक्सीटोसिन नाम का हॉर्मोन निकलता है. इसी हॉर्मोन की वजह से कॉन्ट्रैक्शन या लेबर होता है. इस टेस्ट की मदद से कॉन्ट्रैक्शन से बच्चे के हार्ट रेट पर होने वाले असर को देखा जाता है. जब नॉन स्ट्रेस टेस्ट या BPP कोई दिक्कत बताएँ तो ये टेस्ट होता है. ये कॉन्ट्रैक्शन के दौरान बच्चे का हार्ट रेट दर्शाता है. इसका इस्तेमाल लेबर शुरू करने के लिए भी करते हैं.

 

 

अल्ट्रासोनोग्राफ़ी

 

इसमें अल्ट्रासाउंड स्कैन की मदद से बच्चे की पोज़िशन और डिलीवरी की डेट का फ़ैसला होता है. इससे ये भी पता चलता है कि डिलीवरी नॉर्मल होगी या C-सेक्शन

 

अगर आपको इस दौरान कोई और लक्षण भी हैं, तो डॉक्टर  की सलाह पर आपके बाकी टेस्ट होने भी ज़रूरी हैं.

 

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