27 Mar 2019 | 1 min Read
Roop Tara
Author | 15 Articles
अगर किसी बच्चे के कपड़े खरीदने की बात होती हैं तो हमारे मन में पहले से रंगों को लेकर एक आम धारणा बरसों से बनी हुई है। हमें पता होता है कि अगर लड़का हैं तो नीले रंग के कपड़े और यदि लड़की है तो गुलाबी रंग के कपड़े लेने चाहिए| यह बिल्कुल आम बात हैं कि हम में से ज्यादातर लोग लड़कों के लिए नीला और लड़कियों के लिए गुलाबी या इससे मिलते-जुलते रंग को प्राथमिकता देते हैं। परंतु क्या आपने कभी इसके पीछे की असली वजह के बारे में सोचा हैं?
शायद इसका जवाब आपके पास नहीं होगा। लेकिन आज हम आपके लिए इसका सही जवाब लेकर आए हैं, लिंग के आधार पर रंगों के चयन की वजह अभी से नहीं बल्कि कई सालों से चली आ रही है| लोगों का मानना हैं कि लिंग के आधार पर रंगों का चुनाव हमारे दिमाग में पीढ़ी-दर-पीढ़ी से चलती चली आ रही है| कई लोगों का कहना हैं कि यह अवधारणा पेरिस /फ्रेंच सभ्यता की देन हैं।
पेरिस को दुनिया भर की फैशन राजधानी कहा जाता हैं| 1940 के दशक में यहां के फैशन जगत में महिलाओं के लिए गुलाबी और पुरुषों के लिए नीले रंग को प्राथमिकता दी जाती थी। कहते हैं कि फिर ये चलन फ्रांस से निकलकर दुनियाभर में पहुंच गया| इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता हैं कि तब यह फैशन से जुड़े किसी प्रयोग का हिस्सा था जो लोकप्रिय होने के बाद एक प्रचलित मान्यता बन गया|
1. यदि हम बच्चों के लिए कोई भी चीज़ लेने जाते हैं तो सुपर मार्केट में हमें दो तरह के गलियारों देखने को मिलते हैं, एक गुलाबी और दूसरा नीला| अगर आप लड़कियों वाले गलियारे में जाएँगी तो आपको गुड़िया, रसोई सेट या कोई मेकअप का सामान गुलाबी बक्से में रखा मिलेगा और यदि लड़के वाले में जाएँगी तो कार, ट्रक या फिर रिमोट वाले खिलोने आदि का सामान नीले बॉक्स में रखा मिलेगा।
2. कई मार्केटिंग एक्सपर्टस का मानना हैं कि बाजार भी रंगों के मनोविज्ञान के हिसाब में अपनी रणनीति तैयार करता हैं, इसमें सामान बेचने वाले की दिखावट भी महत्वपूर्ण होती हैं| बाजार का मनोविज्ञान कहता हैं कि नीला रंग पहनने वाला ईमानदार और भरोसेमंद होने का प्रभाव पैदा करता हैं और गुलाबी रंग को मातृत्व भाव से जोड़ कर देखा जाता हैं| इस मनोविज्ञान के आधार पर कहा जा सकता हैं कि आपके रंगों का चयन जितना सामाजिक मान्यताओं से प्रभावित होता हैं उतना ही बाजार भी उसे प्रभावित करता हैं| विज्ञापन जगत के एक जानकार, दूसरे शब्दों में कहते हैं कि बाजार समाज के हिसाब से ही काम करता हैं, इसलिए वह हमेशा आपको आपके सामाजिक परिवेश के हिसाब से चीजें उपलब्ध करवाता हैं|
3. इसका सबसे खास तर्क यह माना जाता हैं कि लड़कियां नाजुक होती हैं और गुलाबी रंग को भी नाजुक चीजों की पहचान के रूप में देखा जाता हैं| यह भी माना जाता हैं कि गुलाबी आंखें, गुलाबी गाल या गुलाबी मिजाज यह सारी चीजें हमेशा से लड़कियों से जुडी होती हैं| दूसरी तरफ लड़के नीले या इससे मिलते-जुलते रंगों से प्रभावित होते हैं क्योंकि इस रंग को गंभीरता और औपचारिकता से जोड़ा गया हैं| आपने अक्सर यह देखा होगा कि गुलाबी रंग के कपड़े पहनना पुरुषों के लिए मजाक का विषय बन जाता हैं, इसलिए माँ-बाप बचपन से ही लड़कियों के लिए गुलाबी और लड़कों के लिए नीला रंग के कपड़े और अन्य उत्पाद लेने शुरू कर देते हैं।
वैसे आपको बता दें कि पुराने समय से ही रंगों का ऐसा बंटवारा होता रहा है| 20वीं सदी की शुरुआत में रंगों का विभाजन बिल्कुल उल्टा था| हांगकांग में छपने वाली महिलाओं की पत्रिका होम जनरल के अनुसार उस समय गुलाबी रंग लड़कों का और नीला रंग लड़कियों का माना जाता था क्योंकि गुलाबी रंग कहीं ज्यादा साहित्य और मजबूती का प्रतीक माना जाता था और यह रंग आरामदायक और आंखों में ना चुभने वाला रंग माना जाता हैं| दूसरी तरफ नीले रंग को औरतों के नाजुक और कोमल होने के साथ जोड़ा जाता था और नीला रंग चटक होने के कारण औरतें उसे ज्यादा पसंद भी करती थी|
लेकिन 1940 तक आते-आते रंगों का बंटवारा एकदम उल्टा यानी वर्तमान की तरह ही हो गया| ऐसा क्यों हुआ इसकी कोई ठोस वजह तो कोई इतिहासकार भी नहीं बता पाए। लोगों का मानना है कि जेंडर कलर पेयरिंफ की अवधारणा फ्रेंच फैशन की देन हैं और यह चलन फ्रेंच से निकलकर धीरे-धीरे पूरी दुनिया में प्रचलित हो गया और हमारे इस रूढ़िवादी समाज ने यह तय कर लिया हैं कि गुलाबी सिर्फ लड़कियों के लिए और नीला लड़कों के लिए। कई माँ-बाप इस बात का खंडन भी करते हैं कि वे लिंग के आधार रंगों के चयन को सही नहीं मानते हैं।
अपने बेटे और बेटी के लिए चाहे कोई भी रंग का चुनाव करें , एक बात हमेशा ध्यान रखें इन रंगों का अंतर बच्चे की मानसिकता पर न हो। लड़का हो या लड़की माता पिता और परिवार के लिए दोनों ही बराबर होने चाहिए।
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