15 May 2019 | 1 min Read
सुमन सारस्वत
Author | 60 Articles
मेरे पास सबकुछ था। प्यार करने वाला पति, अच्छे ससुराल वाले। मगर मेरी ज़िंदगी में कोई तो कमी थी जो मुझे अखर रही थी। मेरे मन में कितना कुछ चलता रहता था! मैं इन्हें किसी से तो शेयर करना तचाहती थी। …और एक दिन मुझे बेबीचक्रा ऐप के बारे में पता चला। जितना मैं सक्रिय होती गई इस ऐप पर मेरी सहेलियों की संख्या बढ़ती गई। इन सहेलियों को पाकर मेरा अकेलापन दूर हो जाता है।
शादी के बाद सचमुच ज़िंदगी कितनी बदल जाती है! जब मैं शादी कर इस घर में आई तो लगा कि एक परिवार छोड़ कर दूसरे परिवार में ही आई हूं। मेरे सास-ससुर और मेरा देवर सब मुझसे बहुत प्यार करते हैं। एक लड़की को और क्या चाहिए, प्यार करने वाला पति और अपने मायके जैसे ससुराल वाले। फिर भी अब मैं एक अल्हड़ लड़की से एक ज़िम्मेदार बहू बन चुकी थी और किसी की पत्नी। जहां मायके में सब मेरे पीछे घूमते थे वहीं अब ससुराल में मुझे सभी का ध्यान रखना पड़ता है। जहां पहले सिर्फ मुझे अपना ही ध्यान रखना रखना पड़ता था अब वहां पूरे परिवार को संभालने लगी हूं, बिल्कुल अपनी भाभी की तरह।
भाभी ने भी आते ही पूरे परिवार को संभाल लिया था। और कुछ ही दिनों में वो मेरी प्यारी सहेली भी बन गईं। जब मैं अपनी ससुराल आई तो मैंने भी अपनी भाभी की तरह सारी ज़िम्मेदारियां उठा लीं। जहां मैं पहले केवल अपनी जिंदगी में मस्त थी तो अब मुझे अपने परिवार के लिए काम करना अच्छा लगता है। उनकी खुशी में ही अब मेरी खुशी है। वे सभी मुझे भी उतना ही प्यार करते हैं जितना मैं उन्हें अपना समझती हूं। उन्होंने मुझे कभी अपने मम्मी-पापा की कमी महसूस नहीं होने दी। मेरे पति पवन भी मुझे बहुत प्यार करते हैं। मेरी हर इच्छा का ध्यान रखते हैं।
छोटे-मोटे कामों में पवन भी मेरी मदद कर देते हैं। महीने में कम-से-कम एक रविवार को हम दोनों अकेले घूमने जाते ही हैं। कभी-कभी पूरे परिवार के साथ भी बाहर निकलना हो जाता है। शुरू-शुरू में इतना सब संभालना मुश्किल होता था लेकिन धीरे-धीरे वो भी मैनेज कर लिया।
शादी के तीन साल बीतते-बीतते मैं प्रेगनेंट हो गई। गर्भावस्था की परेशानियां मुझे घेरने लगीं। अब मैं पहले की तरह काम नहीं कर पाती थी। हर समय थकावट तारी रहती। बदन में हरारत भरी रहती। बच्चे के आने की खुशी घर में छाई रहती लेकिन मेरी तबियत भारी रहती। मेरा किसी काम में जी नहीं लगता था। मुझे ऐसा लगता कि कोई ये न समझे कि बहू काम से जी चुरा रही है। मॉर्निंग सिकनेस के कारण उठ नहीं पाती तो पवन नाश्ते के बिना ही ऑफिस चले जाते। उनके लौटने तक मेरा मन उदास रहता। जितना मैं इस बारे में सोचती उतना मेरे मन में गिल्ट बढ़ता जाता। मेरी सास किचन में जातीं तो मेरा मन और खराब हो जाता था। न चाहते हुए भी मैं बात-बात में चिढ़ने लगी थी। मेरे सोए रहने पर अगर पवन कोई काम करते तो मैं खीज उठती थी। मुझे पता ही न चला कि मुझमें ये सारे बदलाव गर्भावस्था के कारण आ रहे थे। उल्टियां कर-करके मैं निढाल हो जाती थी। मुझे खाने में कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। न जाने क्यों इस समय मुझे न सास की सलाह अच्छी लग रही थी और न ही मां की नसीहतें। और भाभी तो साल भर पहले ही भैया के साथ कनाडा चली गई थी। फिर इस समय मेरा किसी से भी बात करने का मन नहीं करता था।
गर्भ के तीन महीने पूरे होने पर जब अल्ट्रासाउंड कराया गया तो पता चला कि मेरे गर्भ में जुड़वा बच्चे पल रहे हैं। सबको तो मानो डबल खुशी मिल गई मगर मुझे लगा कि मेरी डबल मुसीबत। मैं एक साथ दो-दो बच्चों को पालने के ख्याल से ही सिहर गई। अब मुझे अपनी परेशानी समझ आने लगी थी। अब मुझे इस सोच को बदलना था कि गर्भावस्था कोई परेशानी या बीमारी होती है। धीरे-धीरे अपनी डॉक्टर और घरवालों की मदद से मैंने अपने आपको संभालना सीख लिया था। और फिर ठीक नौ महीने पूरे होते ही सी-सेक्शन से मेरे जुड़वा बच्चे पैदा हुए। उनके जन्म से जुड़े हर उत्सव मनाए गए। बड़े प्यार से दोनों के नाम तनय और मनन रखे गए।
तनय और मनन के पैदा होते ही मेरी जिम्मेदारियां और बढ़ गईं। डिलीवरी के तीन महीने मां के घर बिताने के बाद मैं ससुराल वापस आ गई। धीरे-धीरे सब सामान्य होता जा रहा था। ज़िंदगी पटरी पर आ गई। बच्चे अब तीन साल के हो चुके हैं। मेरा दिन सुबह पांच बजे जो शुरू होता है तो बच्चों और उनके बाप को सुलाने के बाद ही खत्म होता है। घर में सब मुझसे खुश हैं तो अब मुझे और क्या चाहिए! सब यही सोचते हैं … पर क्या मैं भी ऐसा ही सोचती हूं? नहीं।
किचन में खाना बनाते हुए या दोपहरी में सुस्ताते हुए कुछ तो कमी खलती है। जब बच्चों को पार्क में ले जाती हूं तो उन अकेले पलों में कोई कसक मन सा जाग जाती थी। एक दिन सोशल मीडिया पर मुझे एक ऐप दिखा- बेबीचक्रा, एक पैरेंटिंग ऐप। इसमें गर्भानृवस्था से लेकर बच्चों को पालने-पोसने से संबंधित अनेकों लेख-वीडियो शामिल हैं। मुझे तो जैसे जानकारी का खजाना मिल गया। मैंने सोचा- काश, यह मुझे मेरी प्रेगनेंसी के समय मिला होता तो शायद मेरी परेशानियां कम हुई होतीं। खैर कोई बात नहीं अब मुझे अपने दोनों बेटों की पैरेंटिंग में काफी मदद मिलेगी। … और तो और इसमें चैट ग्रुप भी हैं। इन छह महीनों में मेरी कई सहेलियां भी बन गई हैं। इनसे बातें करके कई समस्याओं का हल मिल जाता है। इनकी दिलचस्प एक्टीविटीज़ भी काफी काम की रहती हैं।
अब मन खुश और नई उर्जा से भरा लगता है। वो जो मेरे मन में कसक थी वो तो जैसे उड़न-छू हो गई। अब जब भी फुरसत मिलती है तो बेबीचक्रा पर सहेलियों से गपियाने बैठ जाती हूं। बेबीचक्रा तो मेरी सबसे अच्छी सहेली बन गई है। मेरे जीवन की कमी को पूरा करने के लिए बेबीचक्रा का तहे-दिल से शुक्रिया!
बैनर इमेज: aspeninstitute
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