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मुस्लिम महिलाओं की आज़ादी और बदलाव की इबारत लिखेगा ट्रिपल तलाक बिल

मुस्लिम महिलाओं की आज़ादी और बदलाव की इबारत लिखेगा ट्रिपल तलाक बिल

1 Aug 2019 | 1 min Read

मंगलवार, 30 जुलाई 2019 का वह ऐतिहासिक दिन था जब तीन तलाक बिल  पास कर दिया गया जिसके लिए मुस्लिम महिलाएं 1986 से इंसाफ का इंतजार कर रही थीं। मुस्लिम महिला को एक साथ तीन तलाक देने को अपराध करार देने के लिए 1986 में शाहबानो से शुरू हुई ये हक की लड़ाई 2019 में सायराबानो पर आकर पूरी हुई।

 

स्रोत छवि: jagran

मुस्लिम महिलाओं से एक साथ तीन तलाक को अपराध करार देने वाले ऐतिहासिक विधेयक को बुधवार, 31जुलाई 2019 देर रात राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपनी मंजूरी दे दी। राष्‍ट्रपति के इस विधेयक पर हस्‍ताक्षर करने के साथ ही मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक अब कानून बन गया है। इस कानून को 19 सितंबर 2018 से लागू माना जाएगा।

सालों से मुस्लिम महिलाएं एक साथ तीन तलाक देने को कानूनी अपराध करार देने के लिए संघर्ष कर रही थीं, मगर उनकी यह लड़ाई हमेशा तुष्टिकरण की भेंट चढ़ती रही है। आखिर 33 सालों की लंबी लड़ाई के साथ जब यह बिल राज्यसभा में भी बहुमत से पारित हो गया तो तीन तलाक से पीड़ित देश भर की मुस्लिम महिलाओं और उनके परिवार ने पटाखे फोड़ कर जश्न मनाया।

मौजूदा सरकार ने अपने चुनावी वादे के अनुसार तीन तलाक बिल को राज्यसभा से पास करा लिया है। अब सिर्फ तीन तलाक बिल पर राष्ट्रपति की मुहर का इंतजार है, जिसके बाद यह कानून बन जाएगा। बहुप्रतिक्षित ‘मुस्लिम वुमन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज बिल 2019’ को 24 जुलाई को लोकसभा में ध्वनि मत से पास कर दिया गया था। बाद में उसे राज्यसभा में भेजा गया जहां साढ़े चार घंटे की बहस के बाद राज्यसभा में बिल के पक्ष में 99 वोट पड़े थे वहीं इसके विपक्ष में 84 वोट पड़े। इस बिल पर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की तुच्छ राजनीति भी जनता के सामने बेनकाब हुई।

ट्रिपल तलाक बिल के पास होने से मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ मिलने के दरवाजे खुल गए। बरसों से चली आ रही कुप्रथा का अंत हो जाएगा। खौफ़ के साए में डर-डर कर जीने से आज़ादी मिल जाएगी। इस बिल पर चर्चा करते हुए कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा था कि यह विधेयक लैंगिक समानता और न्याय के लिए जरूरी है। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि तीन तलाक से पीड़ित मुस्लिम बहनों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी। इसके बाद कोर्ट ने फैसला देते हुए तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया था। कानून मंत्री ने बताया कि 24 जुलाई 2019 तक ट्रिपल तलाक के 345 मामलें आ चुके हैं।

तीन तलाक बिल के पक्ष में चर्चा

गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि यह विधेयक मुस्लिम महिलाओं की गरिमा को सुनिश्चित करने और उसे अक्षुण्ण रखने के लिए उठाया गया एक ऐतिहासिक कदम है। यह मुस्लिम महिलाओं के जीवन में आशा और सम्मान का एक नया युग लाएगा। शिवसेना के संजय राउत ने कहा कि इस विधेयक के पारित होने से देश की उन महिलाओं को खुशी मिलेगी जो ‘तीन तलाक’ की कैद में हैं। मनोनीत संसद सदस्य और नृत्यांगना सोनल मानसिंह ने कहा कि यह सामाजिक बदलाव और न्याय की दिशा में उठाया गया कदम है।

तीन तलाक बिल के विपक्ष में तर्क

अपनी तुष्टीकरण की राजनीति के चलते ज्यादतर मुस्लिम सांसदों ने — का जमकर विरोध किया। सांसद ओवैसी ने सबसे ज्यादा इस बिल की मुखालफत की। उन्होंने कहा कि इस्लाम मे शादी एक कॉन्ट्रेक्ट की तरह है, इसे जन्मों का साथ मत बनाइए। ओवैसी ने यह भी बताया कि कि इस्लाम में 9 किस्म के तलाक होते हैं। सदन में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि इस विधेयक का मकसद मुस्लिम परिवारों को तोड़ना है। यह घर के चिराग से घर को जला डालने की कोशिश है।उन्होंने कहा कि मुस्लिम धर्म में शादी एक अनुबंध है और अब इसको आपराधिक पहलू से संबद्ध किया जा रहा है। उन्होंने जानना चाहा कि पति के जेल में होने पर पीड़िता और उसके बच्चों की देखभाल का खर्च कौन देगा? माकपा के इलामारम करीम, राजद के मनोज कुमार झा, द्रमुक के तिरुचि शिवा आदि ने अपने राजनीतिक स्वार्थों के चलते इस बिल का कड़ा विरोध किया।

आखिरकार लंबी बहस के साथ यह बिल पास हो गया और यह खबर सुनते ही देश भर में खुशी की लहर दौड़ गई। सबने समाचार चैनलों पर देखा कि किस तरह मुस्लिम महिलाओं ने ढोल-ताशे बजाकर जीत की खुशी मनाई और नए बदलाव का स्वागत किया। मुस्लिम महिलाओं ने उसी रात कानून मंत्री से मिलकर बधाई दी। दूसरे दिन प्रधानमंत्री को देशभर से बधाइयां मिलीं। इस तरह बरसों से तीन तलाक की कैद में जीने वाली महिलाओं को कानून के सहारे इस कैद से आजादी मिल गई।

क्या है इस कानून में

  • कानून के जानकारों ने के अनुसार मुस्लिम महिला को मिले कानूनी अधिकार इस प्रकार हैं-
  • मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक में यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि कोई मुस्लिम पति अपनी पत्नी को मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रानिक रूप से या किसी अन्य विधि से तीन तलाक देता है तो उसकी ऐसी कोई भी उदघोषणा शून्य और अवैध होगी।
  • इसमें यह भी प्रावधान किया गया है कि तीन तलाक से पीड़ित महिला अपने पति से स्वयं और अपनी आश्रित संतानों के लिए निर्वाह भत्ता प्राप्त पाने की हकदार होगी।
  • पीड़ित महिला को निर्वाह भत्ते के रूप में कितने पैसे दिए जाने चाहिए, इस रकम को मजिस्ट्रेट निर्धारित करेगा।
  • तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत को रद्द करना और गैर कानूनी बनाना।
  • इंस्टैंट तीन तलाक को संज्ञेय अपराध मानने का प्रावधान। इसका मतलब यह हुआ कि पुलिस बिना वारंट के तीन तलाक देने वाले शख्स को गिरफ़्तार कर सकती है.
  • तीन तलाक बिल के मुताबिक, इसमें तीन तलाक देने वाले शख्स के लिए तीन साल तक की सजा का प्रावधान है।
  • तीन तलाक देने वाले आरोपी को जमानत के लइए मजिस्ट्रेट का दरवाजा खटखटाना होगा। यानी मजिस्ट्रेट ही उसे जमानत दे सकता है। हालांकि, इसके लिए दोनों पक्ष की दलील सुनना अनिवार्य है।
  • अगर तीन तलाक देने वाला समझौता करना चाहता है, तो पहले इसके लिए पीड़िता की रजामंदी की जरूरत होगी। यानी पीड़ित मुस्लिम महिला के अनुरोध पर ही मजिस्ट्रेट समझौते की मंजूरी दे सकता है।

अनेक देशों में बैन है तीन तलाक

अधिकतर मुस्लिम देशों में एकसाथ देने वाला तीन तलाक अवैध माना गया है। वहां इस पर पाबंदी है। यहां तक कि हमारे पड़ोसी मुस्लिम देशों- पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी तीन तलाक पर कब का बैन लग चुका है। इजिप्त, इराक श्रीलंका, सीरिया, ट्यूनीशिया, मलेशिया, इंडोनेशिया के अलावा साइप्रस, जॉर्डन, अल्जीरिया, इरान, ब्रुनेई, मोरक्को, कतर और यूएई में भी ट्रिपल तलाक को बैन किया गया है। यह विडंबना ही मानी जाएगी कि भारत के पंथनिरपेक्ष होते हुए भी यहां पर तीन तलाक धड़ल्ले से चल रहा है और इसने लाखों मुस्लिम औरतों की जिंदगी को जहन्नुम बना दिया है।

तीन तलाक बिल का इतिहास

स्रोत छवि: feminisminindia

तीन तलाक के खिलाफ सबसे पहले 1986 में शाहबानो ने अदालत में केस किया था। शाहबानो के पति मोहम्मद अहमद खान खुद सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते थे। मोहम्मद अहमद खान ने दूसरी शादी कर ली थी और दो सौतनों के झगड़ों से आजिज़ आकर एक दिन मोहम्मद अहमद खान ने अपनी पुरानी बीवी शाहबानो बेगम के मुंह पर तीन तलाक मार कर उसे घर से निकाल दिया। तब अपने शौहर के खिलाफ गुज़ारे भत्ते के लिए पहली बार कोई मुस्लिम महिला अदालत के दरवाजे पर पहुंची थी। इस मुकदमे को शाहबानो केस के नाम से जाना जाता रहा है। शाहबानो केस सालों से मीडिया में काफी चर्चित रहा क्योंकि यह पहला इतना बड़ा और चर्चित मुकदमा था, जिसने पूरे देश को आंदोलित कर दिया था।

मसला-ए-ट्रिपल तलाक़

मुस्लिम मजहब के मामलों के जानकार अभिजीत सिंह के अनुसार इस्लाम के अंदर निकाह एक समझौता है और इसलिए इस समझौते को तोड़े जाने की गुंजाइश भी रखी गई है जिसे तलाक़ कहा जाता है। अब तलाक़ दिया कैसे जाए इसको लेकर मुस्लिम समाज के अंदर कई तरह के चलन हैं।

मुसलमानों की बीच समान्यतया तलाक की तीन किस्में वजूद में हैं-

1. तलाके-बिदअत- जिसमें तीन तलाकें एक बार में दी जाती है।
2. तलाके-हसन- इसमें तलाक देकर एक महीने रुका जाता है (हैज के लिए) फिर तलाक दी जाती है, फिर एक महीना रुका जाता है और फिर तीसरा बार तलाक दी जाती है।
3. तलाके-अहसन- ये तलाक देने का वो तरीका है जो कुरान और हदीस में उल्लिखित है। इसमें ये है कि अगर कोई शौहर तलाक दे देता है तो उसे तीन माह तक रुकना चाहिए और अगर उस तीन महीने के अंदर उसे लगता है कि उसने गलती की या उसे तलाक़ नहीं देना चाहिए था तो वह अपनी बीबी के साथ रुजु (प्रायश्चित) हो सकता है। इस तीन महीने के अंदर अगर वो रुजु न हुए फिर वो मियां-बीबी नहीं रहते। लेकिन उसके बाद भी अगर शौहर चाहे तो वो अपनी पुरानी बीबी से दुबारा निकाह कर सकता है। कुरान में आता है- “और जब तुम औरतों को तलाक दे चुके हो और वो इद्दत पूरी कर लें तो फिर उन्हें उनके शौहर के साथ निकाह करने से न रोको।” (सूरह बकरह, 2:232) मगर इस निकाह में फिर से नया मेहर तय किया जाएगा। दुबारा निकाह होने के बाद फिर से कोई समस्या हुई और तलाक देना पड़ गया तो फिर से तीन महीने की मुद्दत है जिसमें वो बीबी के साथ रुजु कर सकता है। तीन बार ऐसा जायज है, उसके बाद फिर से उसे अपनी बीबी से निकाह करने के लिए हलाला विधि का सहारा लेना पड़ेगा जिसके अंदर ये है कि उसकी बीबी किसी और मर्द के साथ निकाह में रहेगी (अरबी में निकाह का एक मतलब “विवाह” है और दूसरा मतलब है “जिस्मानी-ताल्लुकात) और फिर अगर वो मर्द उसे तलाक़ दे देता है तभी वो अपने पहले शौहर से फिर से निकाह कर सकेगी। तलाके-हसन का तरीका भी वही है, फर्क बस इतना है कि वहां (तलाके-अहसन) रुजू की मुद्दत तीन महीने की है और यहां एक महीने की।

बिल की ज़मीनी हकीकत

संसद ने जिस तलाक को खत्म किया है उसे कहा जाता है “तलाक़े-बिदअत”। उसमें केवल और केवल एक बात है कि इकट्ठे दी गई तीन तलाक़ (यहां तीन तलाक़ माने “एक साथ एक ही वक़्त” में दी गई तीन तलाक़) को असंवैधानिक घोषित किया गया है। यानि इस विधयेक ने तलाक़ के एक विधि जिसे “तलाके-बिदअत” कहा है, को खत्म किया है। इसका मतलब ये है कि तलाक़ की बाकी दो किस्में यानी तलाके-हसन और तलाके-अहसन का तरीका अभी भी मौजूद है। मुस्लिम महिलाओं को केवल फौरी तलाक़ से राहत मिली है जिस तरीके को पाकिस्तान समेत दुनिया के कई मुस्लिम देश पहले ही नकार चुके हैं। इन तीनों ही किस्मों में एक बात कॉमन है कि तलाक़ देते वक़्त औरत से उसकी मर्जी पूछना जरूरी नहीं है।

‘तलाक़ दे तो रहे हो इताब-ओ-क़हर के साथ, मिरा शबाब भी लौटा दो मेरी महर के साथ।’ साजिद सजनी का ये शेर तलाक दी हुई औरतों की आज भी कड़वी सच्चाई है।
…खैर, देर आयद दुरुस्त आयद। तीन तलाक बिल से अब किसी महिला को प्रताड़ित नहीं किया जा सकेगा। तलाक की मारी महिला के बच्चों के साथ भी अब इंसाफ होगा। गुज़ारा-भत्ता मिलने से बच्चे अब परवरिश और तालीम से महरूम नहीं हो पाएंगे। हालांकि इस बिल में कुछ कामियां रह गई हैं, उम्मीद है कि जो आने वाले मुकदमों की रोशनी में दूर कर ली जाएंगी।

इस ऐतिहासिक निर्णय से मोदी सरकार ने देश की मुस्लिम महिलाओं के लिए अभिशाप बने तीन तलाक से उन्हें मुक्ति देकर समाज में सम्मान से जीने का अधिकार दिया है। यह विधेयक मुस्लिम महिलाओं की गरिमा को सुनिश्चित करने और उसे अक्षुण्ण रखने के लिए उठाया गया एक ऐतिहासिक कदम है। यह मुस्लिम महिलाओं के जीवन में आशा और सम्मान का एक नया युग लाएगा। ‘मुस्लिम वुमन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज बिल 2019’ पारित होने से मुस्लिम महिलाओं के लिए असीम संभावनाओं के द्वार खुलेंगे जिससे वे ‘न्यू इंडिया’ के निर्माण में प्रभावी भूमिका अदा कर सकेगी।

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बैनर छवि: jagranjosh

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