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विश्व स्तनपान सप्ताह – पुरस्कृत कहानियां

विश्व स्तनपान सप्ताह – पुरस्कृत कहानियां

7 Aug 2019 | 1 min Read

Medically reviewed by

Author | Articles

विश्व स्तनपान सप्ताह पर बेबीचक्रा ने ऐप पर मां-पिताओं से अपने बच्चे के साथ स्तनपान से संबंधित उनके अनुभव #MyBreastfeedingStory के नाम से साझा करने के लिए अनुरोध किया था। इस पर हमारे पास ढेरों कहानियां आईं। जिनमें से कुछ चुनी हुई कहानियां हम यहां दे रहे हैं।

 

“मेरा बच्चा दूध ही नहीं पी पा रहा था।” – प्रीति तिवारी

“मेरा बेबी 5 महीने का होनेवाला है। मेरी डिलीवरी ऑपरेशन से हुई। शुरू में डॉक्टर ने लेक्टोजन मिल्क पिलाने को कहा। पर जब मेरा दूध होने लगा तो मैंने बेबी को अपना दूध पिलाना चाहा। पर वह दूध पी ही नहीं पा रहा था। मैं उसके मुंह में निपल देती मगर वह पकड़ नहीं पा रहा था। मैं बहुत परेशान हो जाती थी। मेरे ऑपरेशन को तीन दिन हो गए थे और मैं अपने ससुराल में ही थी। मैं पूरा दिन उसे ब्रेस्टफीडिंग कराने की कोशिश कर रही थी लेकिन वह अपने मुंह से निपल चूस ही नहीं पा रहा था। बेचारा रोने लगता। उसके साथ-साथ मैं भी खूब रोती थी। इस पर मेरी सास मुझे खूब डांटती। ये मेरा पहला बेबी है, मुझे क्या पता बच्चे को स्तन कैसे पकड़ाना है? सास ने डांटने के सिवा कुछ समझाया नहीं। मैंने अपनी मां को फोन करके रोते-रोते पूछा कि बेबी को कैसे दूध पिलाऊं? मैं खूब रो रही थी। मां ने मुझे फोन पर समझाया, मेरी हिम्मत बंधाई। उन्होंने कहा कि बेटा कोशिश करो, वह पकड़ेगा। परेशान मत होओ। तुम रोओ मत, तबियत खराब हो जाएगी। फिर मैंने बेबी को स्तनपान कराना शुरू किया। चार दिन- रात लगातार बैठ कर कोशिश करती रही। अंत में पांचवे दिन सुबह वह मेरा स्तनपान करने लगा, मुझे बहुत ही अच्छा लगा। इतनी खुशी मिली कि मैं क्या बताऊं! इस सबमें मेरे पति ने मेरा पूरा सहयोग किया। वे कहते थे कि तुम परेशान मत होओ। ठीक से पकड़ाओ, अगर तुम्हारा दूध नहीं पिएगा तो ऊपर का दूध पीएगा। … सच अपने अनुभव से मैं तो यही कहूंगी कि मां आखिर मां होती है।”

 

“बच्चे को स्तनपान कराने का सफर आसान नहीं था”- सोनम पटेल

 

“स्तनपान कराना हर मां के लिए एक अद्भुत एहसास होता है। मां का दूध ही बच्चे के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। किसी-किसी का सफर काफी आसान होता है वहीं कुछ संघर्ष कर के सफल हो पाते हैं। मैं उन लोगों में से हूं, जहां मुझे पर्याप्त से अधिक दूध बन रहा था लेकिन मैं स्तनपान नहीं करा पा रही थी। फिर भी मैंने अपने बच्चे को कम-से-कम 6 महीने तक दूध देने का फैसला किया। मेरे बेटे को जन्म से ही कुछ कंप्लीकेशन्स थे। पैदा होते ही वह इंसेंटिव केअर यूनिट में 17 दिनों तक भर्ती था। वह स्तनपान नहीं कर सकता था इसलिए मैं हर 2 घंटे पर ब्रेस्ट पंप की मदद से दूध एक्सप्रेस कर के दिया करती थी। डिलीवरी के कारण मुझे काफी कमजोरी रहती थी। डॉक्टर ने मुझे बी आराम करने के लिए कहा था मगर मेरा मन ही नहीं मानता था। मैं बार-बार आई सी यू में पहुंच जाया करती थी। मैं अपने बच्चे का अपना दूध पिलाना चाहती थी पर वह तो मुझसे दूर था। सोचो उस मां के दिल पर क्या गुजरती होगी कि जिसका दो दिन का मासूम-सा बच्चा उससे दूर आई सी यू में भर्ती हो। जब वह रोता तो मेरी छातियों से दूध उमड़-उमड़ कर बहने लगता। मैं बेबस होकर रह जाती। तब मैं एक्सप्रेस करके अपना दूध उसे पिलाती थी। मैं अपने बच्चे को जी भर कर सीने से भी नहीं लगा पाती थी। मुझे ऐसा लगता कि जैसे कोई मेरा दिल मुट्ठियों में भींच रहा हो। मेरी ममता तड़प-तड़प के रह जाती थी। जब हम उसे घर ले कर आए उस समय भी मैं स्तनपान नही करा पाई क्योंकि बच्चे के हार्ट में कुछ तकलीफ थी। उसका वजन नहीं बढ़ रहा था और वजन बढ़ना बहुत ही जरूरी था तभी हम उसके हार्ट के आपरेशन के लिए जा सकते थे। हर बार दूध के साथ सप्लीमेंट देने के लिए कहा गया था। इस कारण मुझे दूध एक्सप्रेस करके ही देना पड़ा। मेरे दिल पर क्या बीतती थी कि मैं अपने बच्चे को सीधे अपना दूध नहीं पिला सकती। मैं रो-रोकर रह जाती। मगर बच्चे को संभालने के लिए मैं अपने दुख पर काबू रखती। आज भी जब मैं उन दिनों को याद करती हूं तो मेरी आंखों से आंसू बहने लगते हैं।”

 

“घूंघट में बेबी को स्तनपान करवाना पड़ता था।” – ऋतु राठौड़

“हर माँ के लिए स्तनपान अपनी जिंदगी के अनमोल पलों में से एक होता है। डिलीवरी से पहले मुझे स्तनपान के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और ना ही मैंने कभी कुछ जाने की कोशिश की। जब डिलीवरी हुई तो हॉस्पिटल में नर्स ने कहा आधे घंटे में बच्चे को स्तनपान करवाना है। वहां मेरी मां और सासू मां मेरे साथ थीं जो स्तनपान करवाने में मेरी मदद कर रही थी। वहीं से यह सुहाना सफर शुरू हुआ।
हमने देखा कि मेरे स्तन फ्लैट थे, निपल्स नहीं बने थे। बेबी का भी जन्म के बाद पहला अनुभव था, वह दूध पी नहीं पा रहा था। अब क्या किया जाए? मैं बहुत परेशान थी। मुझे पता था कि बेबी के पेट में कोलस्ट्रम (मां का पहला दूध) जाना बहुत जरूरी है, पर मैं नहीं कर पाई। मेरी डिलीवरी दिन में तकरीबन 1:50 पर हुई थी और मुझे 4:00 बजे तक बेड पर शिफ्ट किया गया था। उस दिन बेबी ने स्तनपान नहीं किया।

जिस हॉस्पिटल में मेरी डिलीवरी हुई थी, वहां ब्रेस्टफीडिंग सेशन होते थे। मॉर्निंग में नर्स एंड डॉक्टर्स की टीम आई। वह हमें ब्रेस्टफीडिंग के पोश्चर बता रहे थे। उनमें से एक ने नोटिस किया कि मेरे निप्पल फ्लैट हैं। तब उन्होंने मुझे ब्रेस्ट पंप दिया और कहा कि इससे दूध निकालो और बेबी को ड्रॉपर से पिलाओ, ऐसा करने से निप्पल भी बनेंगे और बेबी की फीडिंग भी हो जाएगी। यकीन मानिए मैं बहुत डिप्रेशन मे थी, कि सभी बच्चे ब्रेस्टफीडिंग कर रहे हैं और मेरे बेबी को ड्रॉपर से फ़ीड करवाना पड़ रहा है। दूसरा दिन भी ऐसे ही निकल गया। फिर रात में भी यही प्रक्रिया चल रही थी। ब्रेस्ट पंप से दूध निकालने की पर बेबी इससे संतुष्ट नहीं था। अगले दिन हमें डिस्चार्ज मिल गया और घर आ गए।

सच कहो तो मैं,मां तो बन गई पर बिना स्तनपान के मातृत्व का एहसास बिल्कुल भी नहीं हो रहा था। जो भी मिलने आता ब्रेस्टफीडिंग के टिप्स देकर चला जाता पर अंदर से मैं जिन भावनाओं से जूझ रही थी। वह कोई नहीं समझ पाता। फिर मैंने निश्चय किया कि बस अब और नहीं मैं हर 15:20 मिनट में ब्रेस्ट पंप यूज करती, जिससे निप्पल भी थोड़े बाहर आने लगे और बेबी को भी फ़ीड मिलता रहा। ब्रेस्ट पंप से मिल्क निकालना बहुत पीड़ाजनक था। अगले दिन से मैंने बेबी को अपने ब्रेस्ट से दूध पिलाना शुरू कर दिया वह भी मुझे पूरा सपोर्ट कर रहा था। कभी-कभी छूट भी जाता फिर मैं मुँह देती और वह फिर सक करने लगता। जब पहली बार बेबी ने निप्पल सक किया तब ऐसा महसूस हुआ, जैसे मैंने कोई बहुत बड़ी जीत हासिल कर ली है। अब हम दोनों खुश थे मैं भी समय-समय पर उसे स्तनपान कराने लगी। रात मैं भी उसका पूरा ख्याल रखती।

इस दौरान मुझे एक और बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। मेरे पति राजस्थानी हैं और कुछ पारिवारिक कारणों से मेरी मां को वापस घर जाना पड़ा। अब मेरे साथ केवल सासु मां थी। वह भी मेरा पूरा ख्याल रखती थी। मैं रात में उठती मुझे जैसे कंफर्ट महसूस होता मैं बेबी को ब्रेस्ट फीडिंग करवाती।

एक दिन मेरा मजाक बनाया गया कि मैं रात में इस posture में बैठकर स्तनपान करवाती हूँ, और मेरे सिर पर पल्लू भी नहीं रहता। यह उस वक्त की बात है जब रात में सब सो रहे होते हैं, और रूम में केवल मैं और सासू मां रहते हैं। मेरे दिल को बहुत ठेस पहुंची उनकी इस बात से मैंने बड़ी ही विनम्रता से उनसे कहा कि मम्मा मुझे आपकी इस बात का बुरा लगा रात में सिर्फ आप और मैं ही तो होते हैं। घर में और मेरी जगह आपकी बेटी होती तो क्या आप उसका भी ऐसे ही मजाक बनातीं। मुझे जवाब में यह मिला कि अब से कुछ नहीं कहूंगी जो कपड़े पहने हैं वह भी खूंटी पर टांग दो।

मैं जिस जीत की खुशी मना रही थी वह तो ना जाने कहां गई। अब मुझे रात में भी घूंघट करके स्तनपान करवाना था। मेरे लिए यह सफर बहुत ही चुनौतीपूर्ण रहा पर मैंने हर एक का सामना डटकर किया, क्योंकि यहां सवाल मेरी हार या जीत का नहीं बल्कि मेरी नन्ही-सी जान के पोषण का था। इस प्रकार मैंने परंपराओं के बंधन में रहते हुए अपने स्तनपान के सफर को जारी रखा।”

 

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