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पैर गवां कर भी देश के लिए गोल्ड मेडल जीतने  वाली मानसी जोशी की कहानी

पैर गवां कर भी देश के लिए गोल्ड मेडल जीतने वाली मानसी जोशी की कहानी

4 Sep 2019 | 1 min Read

जीवन चलने का नाम… मगर जब एक पैर ही न हो तो मुसाफिर क्या करें…

कोई और हो तो थक-हार कर बैठ जाए मगर मानसी जोशी हारने वालों में से नहीं। वह तो किसी और ही मिट्टी की बनी है। दुर्घटना में अपना बायां पैर खोने के बाद मानसी न सिर्फ चली बल्कि सात समंदर पार जाकर बैडमिंटन खेलकर देश के लिए गोल्ड मेडल लेकर आई।
सोमवार, 2 सितंबर को घर पहुंचने पर पड़ोसियों ने पहला विश्व पैरा बैडमिंटन खिताब जीतने पर मानसी जोशी का धूमधाम से स्वागत-सत्कार किया।

 

छवि: iforher

पैरा वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में गोल्ड

जब खबरों में मानसी जोशी का नाम आया कि स्विटज़रलैंड में आयोजित बी डबल्यू एफ (बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन) के मैच में पैरा वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में गोल्ड जीता तो पूरे देश के साथ-साथ मेरा भी सिर गर्व से उंचा हो गया। मानसी हमारे कवि मित्र और साइंटिस्ट गिरीश जोशी की बेटी हैं। दिसंबर 2011 में मानसी के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद सभी परिचितों के दुख का ठिकाना नहीं था। मगर 24 अगस्त 2019 को मानसी ने जिन ऊंचाइयों को छुआ उसने सबकी धारणाओं को बदलकर रख दिया।

 

चल सके तो तू मेरे साथ चल जिंदगी…

मानसी की जीत पर बात करने के लिए जब उनके पिता गिरीश जोशी से फोन पर बात की तो उन्होंने बड़े संयत से मानसी के संघर्षों की दास्तान सुनाई। गिरीश जी से बात करते हुए लग रहा था कि मानसी ने धैर्य का पाठ अपने पिता से सीखा है।
अपनी बेटी मानसी के फौलादी जज़्बे की दास्तान उन्होंने इस तरह बयां की-
चल सके तो तू मेरे साथ चल जिंदगी,
नहीं तो अपना रस्ता खुद बदल जिंदगी।

 

पैर खोने के बाद भी हिमम्त नहीं हारी

…और मानसी ने अपना रास्ता खुद ही चुना। दिसंबर 2011 में मानसी रोज की तरह स्कूटी से अपने ऑफिस जा रही थी मगर सामने से एक ट्रक ने गलती से मानसी को कुचल दिया। इस एक्सीडेंट में मानसी ने अपना बायां पैर खो दिया। 45 दिनों तक अस्पताल में तकलीफ झेलने के बाद मानसी ने हिम्मत नहीं हारी। शरीर से लाचार होने पर भी मानसी ने अपने मन की मजबूती बनाए रखी। पैर के जख्म भरने के बाद आर्टिफिशियल लिंब के सहारे चलना शुरू किया। धीरे-धीरे मानसी ने अपनी चाल बढ़ानी शुरू की।
मानसी ने अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ा तो दिए मगर यह रास्ता इतना भी आसान नहीं था। वैसे भी जीत का रास्ता कठिनाइयों से गुज़र कर निकलता है। मानसी के पिता गिरीश जोशी ने बताया कि अस्पताल में मानसी के दोस्त और रिश्तेदार उससे मिलने आया करते थे और हमेशा उसका हौसला बढ़ाया। पूरी तरह से ठीक हो जाने के बाद मानसी को नकली पैर लगाए गए। मानसी ने हिम्मत और अभ्यास से नकली पैरों की भी आदत डाल ली।

 

बचपन का शौक बैडमिंटन
एक बार नकली पैरों की आदत पड़ जाने के बाद मानसी ने नौकरी भी फिर से शुरू की। बचपन से मानसी अपने पिता के साथ बैडमिंटन खेला करती थी। मानसी ने पुराने शौक को फिर से जिंदा किया। जब कॉर्पोरेट टूर्नामेंट में मानसी ने दो पैरों पर खेलने वालों को हरा कर चैंपियनशिप जीती तो जैसे मानसी को अपने जीवन की दिशा मिल गई। पहली ही बार में मानसी को महाराष्ट्र के पैरा बैडमिंटन एसोसिएशन में चुन ली गई। उसके बाद तो मानसी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब तो उसके हौसले बुलंद थे और उड़ान आसमान की ओर थी। पहली बार में ही इंटरनेश्नल लेवल पर मानसी का सिलेक्शन हो गया। इसके लिए मानसी अकेले ही उड़ीसा गई। मानसी के पिता बताते हैं कि अब सबने मिलकर यह तय किया कि मानसी के आगे पूरा जीवन पड़ा है और उसे आत्मनिर्भर बनना चाहिए। इसलिए टूर्नामेंट्स खेलने के लिए मानसी अकेले ही जाया करेगी। इस तरह मानसी ने देश भर में अकेले ही कई टूर्नामेंट्स खेले।

 

बैडमिंटन में कई पुरस्कार
मानसी के पिता इस बीच परिवार के साथ अहमदाबाद शिफ्ट हो गए। मानसी मुंबई में नौकरी और बैडमिंटन टूर्नामेंट्स खेलती रही। मानसी को अब अपने जीवन की मंज़िल मिल चुकी थी। नौकरी के साथ वह अपने खेल से न्याय नहीं कर पा रही थी और एक दिन वह अपनी नौकरी छोड़कर मुंबई से अहमदीबीद अपने परिवार के पास पहुंच गई। अहमदाबाद पहुंच कर मानसी पूरी तरह बैडमिंटन में लग गई। वहां स्पोर्ट सेंटर में वह कोचिंग लेने लगी। इसी बीच मानसी ने कई पुरस्कार भी जीते। मानसी ने 2015 में इंग्लैंड में हुई पैरा वर्ल्ड चैंपियनशिप में मिक्‍स्ड डबल्स का सिल्वर मेडल हासिल किया।

अब मानसी को सेमीनारों में लेक्चर देने भी बुलाया जाता था कि वह अपने जीवट और लगन की कहानी सुनाकर दूसरे लोगों को प्रेरित कर सके। यहीं किसी सेमीनार में मानसी की मुलाकात जाने-माने बैडमिंटन कोच गोपीचंद पुलेला से हुई। मानसी ने उनसे उनकी एकेडमी ज्वॉइन करने की ख्वाहिश जताई। गोपीचंद ने वादा भी कर दिया। मगर यह इतना भी आसान न था। मानसी ने ट्रेनिंग के लिए स्पांसरशिप के लिए दी गुजरात राज्य को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड में अर्जी दी। बैंक अधिकारियों ने मानसी का प्रोफाइल देख कर उसे अपने बैंक के आई टी विभाग में असिस्टेंट मैनेजर की नौकरी दे दी। साथ ही बैंक ने मानसी को पूरी तरह अपने खेल में ध्यान देने को कहा और रोज ऑफिस न आने की भी सुविधा दी। इन दिनों मानसी भारत पेट्रोलियम में कार्यरत हैं।

 

पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन एकेडमी

अब मानसी ने अपना पूरा ध्यान अपने खेल को निखारने और बैडमिंटन टूर्नामेंट्स खेलने में लगा दिया। फिर मानसी ने पिता से साथ हैदराबाद की राह पकड़ी जहां उसके सपनों को उड़ान भरनी थी। पर क्या कोई भी रास्ता इतना आसान होता है जितना कि इंसान सोचता है। हैदराबाद पहुंचकर भी मानसी को पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन एकेडमी में एडमिशन के लिए उसका नंबर नहीं आया था। पिता ने वहीं के एक स्पोर्ट्स एकेडमी में एडमिशन में मानसी को दाखिला दिला दिया और एक गेस्टहाउस में उसके रहने-खाने का प्रबंध कर वे घर लौट आए। अब आगे का संघर्ष अकेले मानसी का था। फिर लगभग एक महीने बाद मानसी को पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन एकेडमी में एडमिशन मिल ही गया। अब मानसी को कोई चीज आगे बढ़ने से रोक नहीं सकती थी। मानसी ने जी-जान से अपनी तैयारी शुरू कर दी। मानसी ने डेढ़ साल अकेले रह कर ट्रेनिंग ली। इन डेढ़-दो सालों में मानसी ने कई मेडल भी जीते। उसने अपनी वर्ल्ड रैंकिंग भी सुधारी।

 

कड़ी मेहनत का कठिन सफर

2017 में साउथ कोरिया मे हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में मानसी ने ब्रॉन्ज मेडल जीता। मगर मानसी की निगाहें गोल्ड पर लगी थीं। अब इसके लिए मानसी ने खुद को पूरी तरह झोंक दिया। मानसी बताती हैं, “मैंने बहुत कठिन ट्रेनिंग की है…मैंने एक दिन में तीन सेशन ट्रेनिंग की है। मैंने फिटनेस पर ध्यान केंद्रित किया था, इसलिए मैंने कुछ वजन भी कम किया और अपनी मांसपेशियों को बढ़ाया। मैंने जिम में अधिक समय बिताया, सप्ताह में छह सेशन ट्रेनिंग की।” मानसी ने बताया कि वह चलने के लिए अब नए वॉकिंग प्रोसथेसिस सॉकेट का उपयोग कर रही हैं। इससे पहले वह पांच साल से एक ही सॉकेट का इस्तेमाल कर रही थीं जिसके कारण वर्कआउट के दौरान उनकी रफ्तार धीमी हो रही थी।

 

पैरा वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में जीता गोल्ड मेडल

इस तरह कड़ी मेहनत और तैयारियों के बीच वह समय आ ही गया जब अगस्त 2019 में मानसी ने स्विटज़रलैंड के बासेल में पैरा वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप (Para World Badminton Championship) में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। मानसी के लिए यह जीत भी इतनी आसान नहीं थी। फाइनल में उनके सामने तीन बार वर्ल्ड चैंपियन रह चुकीं पारुल परमार थीं। मानसी इससे पहले पारुल से कई टूर्नामेंट्स में हार चुकी थीं और इस वजह से किसी को उम्मीद नहीं थी कि वे चैंपियनशिप जीत पाएंगी। पर 21-12 और 21-7 के स्कोर से मानसी ने पारुल को मात देकर महिला एकल SL3 के फाइनल में 21-12, 21-7 से जीत हासिल की। इस कैटिगरी में वे खिलाड़ी शामिल होते हैं जिनके एक या दोनों लोअर लिंब्स काम नहीं करते और जिन्हें चलते या दौड़ते समय संतुलन बनाने में परेशानी होती है।

 

जीत की खुशी

जीत के बाद मानसी ने अपने फेसबुक पेज पर खुशी जाहिर की। उन्होंने लिखा- ‘मैंने इसके लिए कड़ी मेहनत की है और मैं बहुत खुश हूं कि इसके लिए बहाया गया पसीना और मेहनत रंग लाई है। यह वर्ल्ड चैंपियनशिप में पहला गोल्ड मेडल है।’ मानसी ने इसके लिए गोपचंद अकादमी के अपने कोचिंग स्टाफ का भी शुक्रिया अदा किया। इसके साथ ही उन्होंने गोपीचंद का भी शुक्रिया अदा किया। उन्होंने लिखा- ‘गोपी सर मेरे हर मैच के लिए मौजूद रहने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।’
मैच जीत कर अपने सपने को सच करने के बाद मानसी को बधाइयां मिलने के सिलसिला जारी हो गया। देश के प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर इस तरह बधाई दी- ‘130 करोड़ भारतीयों को पैरा बैडमिंटन दल पर बहुत गर्व है। इस दल ने बीडब्ल्यूएफ पैरा वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप 2019 में 12 पदक जीते। पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई जिनकी कामयाबी काफी खुशी देने वाली और प्रेरणादायी है। इनमें से हर खिलाड़ी असाधारण है।’

जोशी ने कहा, “मैंने अपने स्ट्रोक्स पर भी काम किया, मैंने इसके लिए अकादमी में हर दिन ट्रेनिंग की। मैं समझती हूं कि मैं लगातार बेहतर हो रही हूं और अब यह दिखना शुरू हो गया है।” अपने सफर के बारे में बात करते हुए जोशी ने कह, “मैं 2015 से बैडमिंटन खेल रही हूं। विश्व चैम्पियनशिप में पदक जीतना किसी सपने के सच होने जैसा होता है।”

 

अगली मंज़िल- पैरा ओलंपिक्स में जीत

अब मानसी का अगला लक्ष्य टोक्यो, जापान में 2020 में होनेवाले पैरा ओलंपिक्स में जीत हासिल करना है।
जिस तरह मानसी जोशी ने अपनी लाचारी से हार न मानकर उसे अपनी कामयाबी की सीढ़ी बनाया और वह अपने सपनों की मंज़िल पर चढ़ती जा रही हैं उसके लिए देश को मानसी जैसी जीवट वाली महिलाओं पर नाज़ होता है। हमारी शुभकामनाएं मानसी के साथ हैं कि वह बिना थके, बिना हारे अपनी मंज़िल को ओर कदम बढ़ाती रहे।

 

बैनर छवि: mensxp

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