5 Dec 2019 | 1 min Read
Gunjan Sachdeva
Author | 6 Articles
पूर्ण गर्भावस्था लगभग 40 सप्ताह की होती है। 37 सप्ताह के अंत में बच्चे को पूर्ण रूप से विकसित माना जाता है और बच्चे के जन्म में अब कुछ ही समय शेष रह जाता है। दूसरी तिमाही के अंत तक एक माँ बनने वाली स्त्री पूर्ण गर्भवती दिखने लगती है और वह असहज महसूस करने लगती है। हालांकि अंतिम तिमाही में स्त्री को कुछ कठिनाइयों के साथ-साथ दर्द का सामना करना पड़ सकता है। तीसरी तिमाही में शिशु के अंग और शारीरिक विकास के कारण एक बड़ा बदलाव देखने को मिलता है।
माँ बनने वाली एक स्त्री के लिए तीसरी तिमाही शारीरिक और भावनात्मक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकती है। तीसरी तिमाही में शिशु की हड्डियाँ पूरी तरह से बन जाती हैं। शिशु अब अपनी आँख खोल और बंद कर सकता है और रोशनी को महसूस करने लगता है। शिशु का शरीर आयरन और कैल्शियम जैसे मिनरल्स का संग्रह करना शुरू कर देता है। जबकि यह महत्वपूर्ण यह है कि माँ बनने वाली स्त्री पौष्टिक आहार ग्रहण करे, यह भी आवश्यक है कि कुछ महत्वपूर्ण पोषक तत्वों जो शिशु के विकास, प्रसव के लिए और प्रसव के बाद महिला के शरीर को तैयार रखने में खास भूमिका निभाते हैं उनपर ध्यान दिया जाए।
तीसरी तिमाही में माँ बनने वाली स्त्री अपने आहार में महत्वपूर्ण पोषक तत्वों जैसे कि कोलिन, फॉलिक एसिड, विटामिन को शामिल करती है और इसी के साथ 25 महत्वपूर्ण तत्वों वाले मदर्स हॉर्लिक्स का एक गिलास अपने पोषण में शामिल करना बढ़ती हुई पोषण आवश्यकताओं की पूर्ति करने का एक बहुत अच्छा तरीका है।
हर एक पोषक तत्व जो माँ बनने वाली एक स्त्री अपने आहार के माध्यम से प्राप्त करती है वह उसके स्वास्थ्य और शिशु के विकास के लिए अहम भूमिका निभाता है। यहाँ प्रमुख 3 पोषक तत्वों की सूची दी गयी है जो आप गर्भावस्था की तीसरी तिमाही के दौरान अपने आहार में अवश्य शामिल करें।
ओमेगा 3 – डीएचए
तीसरी तिमाही के दौरान और बच्चे के जीवन के 18 महीनों तक शिशु के मस्तिष्क और रेटिना के विकास के लिए डीएचए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। ओमेगा 3 से भरपूर आहार का बच्चे के संवेदी, संज्ञानात्मक और मोटर विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। गर्भावस्था में अपने आहार और सप्लीमेंट्स के माध्यम से डीएचए लगातार लेने से समय प्रसवपूर्व और प्रसव के बाद के तनाव के जोखिम को कम करता है। यह प्रीक्लैम्प्सिआ और शिशु के जन्म के समय के वजन को बढ़ने के जोखिम को कम करने के लिए भी जाना जाता है।
आयरन
तीसरी तिमाही तक,गर्भ में शिशु और प्लेसेंटा को रक्त की आपूर्ति में बढ़ोतरी होने लगती है। इसका यह मतलब है की माँ बनने वाली स्त्री को अपने आहार में आयरन की मात्रा को बढ़ाने की आवश्यकता होती है क्योंकि आयरन अधिक रक्त के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह शिशु के फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंचाने में भी सहायक होता है। आयरन की कमी होने से एनीमिया हो सकता है, जिसके कारण बच्चे का वजन कम हो सकता है। डॉक्टर महिलाओं को अक्सर आयरन के पूरक आहार यानि आयरन सप्लीमेंट भी सुझाते हैं, आपको इसके लिए अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए।
प्रोटीन
तीसरी तिमाही के दौरान बच्चा सबसे तेजी से बढ़ता है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान प्रोटीन का सही मात्रा में होना महत्वपूर्ण होता है। प्रोटीन अमीनो एसिड से बनता है जो कि बच्चे के आकर्षक चेहरे और उसकी हर कोशिका का निर्माण करता है। तीसरी तिमाही में शिशु के मस्तिष्क को विशेष रूप से प्रोटीन की आवयश्कता होती है जो उसके मस्तिष्क को एक चमत्कारी अंग बनाने में सहायता करता है। मस्तिष्क के उचित विकास के कारण ही शिशु सांस लेने, चलने और बात करने में सक्षम होता है।
पूर्ण गर्भावस्था लगभग 40 सप्ताह तक रहती है। 37 सप्ताह के अंत में बच्चे को पूर्ण रूप से विकसित माना जाता है और बच्चे के जन्म में अब कुछ ही समय शेष रह जाता है। ऊपर दिए गए प्रमुख पोषक तत्वों के अलावा और भी कई अन्य महत्वपूर्ण पोषक तत्व हैं जिन्हें रोजाना आहार के रूप में शामिल करना चाहिए ।
तीसरी तिमाही गर्भावस्था का अंतिम पड़ाव होता है, जिसका अंत होने के साथ ही स्त्री का ‘माँ’ के रूप में एक नया जन्म होता है। इन नौ महीनों में एक गर्भवती महिला के लिए यह बहुत आवश्यक है के वह अपना और शिशु का अच्छे से ख्याल रखे और खुद को माँ बनने के लिए मानसिक रूप से तैयार करे। गर्भावस्था के दौरान स्वयं की अच्छी देखभाल और अच्छा पोषण एक स्वस्थ शिशु और माँ बनने के सुखद एहसास को सुनिश्चित करता है।
सूचना: यह महत्वपूर्ण है कि पोषण की सामग्री और उसकी खुराक निर्धारित करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श अवश्य करें।
इस लेख में बताये गए सभी विचार केवल लेखक के हैं और यह शैक्षिक सहायता के रूप में व्यक्त किए गए हैं।
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