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कैसे फिल्मों ने मुझमें जगाईं प्यार की अवास्तविक उम्मीदें

कैसे फिल्मों ने मुझमें जगाईं प्यार की अवास्तविक उम्मीदें

7 Jan 2020 | 1 min Read

 

किसी भी रिश्ते की जड़ मजबूत होती है अगर वह सच्चे प्यार से बंधी हो। हमारे समाज में प्रेम पर हिंदी फिल्मों का  बड़ा प्रभाव है। 80 के दशक में पैदा हुए लोग इस बात को जानते हैं कि इन दशकों में कैसे टीवी और सिनेमा बदल गए हैं और प्रेम के मामले में युवाओं को कितना प्रभावित किया है! बरसों से लोगों के लिए मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय माध्यम सिनेमा ही था। आज इंटरनेट की वजह से हम चौबीस घंटे सिनेमा और गाने देख-सुन सकते हैं। इन सबका प्रभाव हमारी युवा पीढ़ी पर पड़ता है। वे जो फिल्मों में हीरो-हीरोइन को करते देखते हैं उसे अपनी जिंदगी में उताकने की कोशिश करते हैं। अक्सर देखा गया है कि जो फिल्म हिट हो जाती है लोग उसकी नकल करते हैं। इसी तरह ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ में शाहरुख और काजोल की जोड़ी ने जो जादू दिखाया था युवाओं में उसका काफी गहरा असर पड़ा। सिनेमा में हीरो-हीरोइन को प्रेम करते देखकर उसका असर रिश्तों पर भी पड़ता है। अक्सर लोग फिल्मी प्रेम कहानियों और फिल्मी प्रेम को निजी जिंदगी में पाने की कोशिश करते हैं। कपल्स को लगता है कि उनका प्यार भी  उस फिल्म जैसा हो मगर सच्चाई हमेशा फिल्मों से अलग होती है। 

 

क्या हकीकत में भी ऐसा होता है?

 

मुझे याद है कि जब मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी, तो मेरे आसपास के लड़के और लड़कियां हमेशा किसी न किसी तरह से एक-दूसरे को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे थे। यह अक्षय कुमार की ‘खिलाड़ी’ फिल्म का ही असर था जिसने हमारे कॉलेज में ‘रोज़ डे’ को एक बड़ा त्योहार सा बना दिया था। हर लड़की सपने देखने लगी थी कि कॉलेज के सारे लड़के उसे लाल गुलाब के फूलों से ढंक देंगे। हर लडकी खुद को ‘रोज़ क्वीन’ बनने के ख्वाब देखती थी। और लड़के ‘दिल’ के आमिर खान की नकल करते हुए भड़कीले रंगों की शर्ट पहनकर लड़कियों को इंप्रेस करने की कोशिश करते रहते थे। लड़कियों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए मोटरसायकिल को हवा में लहराते, सिगरेट का धुंआ उड़ाते… ऐसी ही कई ऊल-जलूल हरकतें करते।

 

किसी लड़की को फिल्मी तरीके से प्रभावित करना एक ऐसे रिश्ते की शुरुआत है जिसमें आगे चल कर इसी तरह के प्यार और रोमांस की उम्मीद की जाती है। …और मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। मेरा बॉयफ्रेंड भी शाहरुख खान की तरह कपड़े पहन कर मुझे इंप्रेस करता था, किताबों में ग्रीटिंग कार्ड्स छुपा देता था और कभी-कभी सरप्राइज़ गिफ्ट्स भी दिया करता था। फिर एक दिन उसने मुझे प्रपोज़ किया और मैंने भी जिस तरह ‘हां’ कहा, वह सब किसी फिल्मी ड्रामे से कम नहीं था। दो साल के रोमांस के बाद हमने शादी कर ली और उसके बाद असल जिंदगी की शुरुआत हुई। मेरा ‘शाहरुख’ टाइप वाला बॉयफ्रेंड इन दो सालों में ‘मनोज कुमार’ टाइप का हसबैंड बन चुका था। रोमांस की गाड़ी अब गृहस्थी की पटरी पर आ चुकी थी। सारा रोमांस हवा हो चुका था। अब न तो सरप्राइज़ वाला बर्थडे था, न कैंडल लाइट डिनर। प्यार जताने वाले गिफ्ट और चॉकलेट गुजरे जमाने की बात बन चुके थे। अब थीं तो केवल गृहस्थी की जिम्मेदारियां, घर के काम निपटाने और घर के खर्चे चलाना।

 

मैंने उम्मीद की थी कि मेरा हीरो ताउम्र मुझसे रोमांस करता रहेगा मगर बच्चे पैदा होते ही सारा रोमांस धुंआ हो गया। जब मैं नए प्रेमी जोड़ों को देखती तो जैसे मुझे उनसे जलन होने लगती थी। जब मैं प्रेम कहानियां पढ़ती थी तो उदास हो जाती थी। इन सबसे तो मुझे डिप्रेशन ही हो जाता अगर मैं अपनी कॉलेज वाली सहेली से न मिली होती। उससे बातें करने के बाद मुझे ऐसा लगा कि सबको दूसरों की जिंदगी सुहानी लगती है, मगर हकीकत कुछ और ही होती है। सिनेमा में प्रेम के केवल एक ही पहलू को दिखाता है जो सिर्फ ख्वाब होते हैं। सिनेमा में शादी के बाद पति-पत्नी के रिश्तों की सच्चाई नहीं दिखाई जाती जो हकीकत में कुछ और ही होती है। शादी के बाद प्रेम की परिभाषा ही बदल जाती है।

 

उपहार खरीदना और सरप्राइज देना ही केवल प्यार नहीं होता जैसा कि नए-नए प्रेमी जोड़े करते हैं। ये जिंदगी का एक हिस्सा हो सकते हैं पर शादी के बाद प्राथमिकताएं और जरूरतें बदल जाती हैं। पति-पत्नी के लिए प्यार अब जिम्मेदारियां बन जाती हैं। जिंदगी के अनुभवों के साथ उनका रिश्ता और भी प्रगाढ़ होता जाता है, वे अब परिपक्व और समझदार हो जाते हैं। छोटी-छोटी बातें, जैसे एक-दूसरे का हाथ बंटाना, मिलजुलकर बच्चों की परवरिश करना, बिना कहे ही एक-दूसरे के जज़्बात समझ जाना जैसी बातें रिश्ते में रोमांस को बरकरार रखती हैं।

 

तो आज के सभी जवान आमिर खान, रणबीर कपूर और सभी दीपिका पादुकोण और आलिया भट्ट! आप लोग मोहब्बत की हकीकत को समझें। अपने रिश्ते में फिल्मों जैसे बड़ी-बड़ी उम्मीदें न पालें। आप जैसे हैं, वैसे ही बने रहें और अपने साथी को भी उसी रूप में स्वीकार करें जैसा कि वह है। अपने साथी में फिल्मी हीरो-हिरोइन को न थोंपे। हकीकत का प्यार फिल्मी चमक-दमक से अलग होता है। 

 

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