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जानें इस साल क्यों 15 जनवरी को है मकर संक्रांति

जानें इस साल क्यों 15 जनवरी को है मकर संक्रांति

13 Jan 2020 | 1 min Read

मकर संक्रांति को हिंदुओं का सबसे खास त्योहार माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति का योग बनता है। इस वर्ष सूर्य की मकर संक्रांति 14 फरवरी को देर रात 2 बजकर 08 मिनट पर शुरू होगा और अगले 30 दिन यानी 13 फरवरी दोपहर 2 बजकर 04 मिनट तक रहेगा। जिसके कारण मकर संक्रांति का पुण्य काल 15 जनवरी को है। इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव की राशि मकर में प्रवेश करते ही खरमास या धनुर्मास भी समाप्त हो जायेगा। अब तक जो शादी- ब्याह आदि शुभ कार्यों पर रोक लगी थी, वो हट जायेगी और फिर से शादियों का सीज़न शुरू हो जाएगा।

क्या है मकर संक्रांति का कारण

एक साल में कुल बारह संक्रांतियां होती हैं, जिनमें मकर संक्रांति और कर्क संक्रांति का विशेष महत्व माना जाता है। इन दोनों ही संक्रांति पर सूर्य की गति में बदल जाती है। जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो मकर संक्रांति कहलाती है। इसमें सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण जाते हैं। उत्तरायण काल में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं। इसी तरह सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश करने पर कर्क संक्रांति होती है तब सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन जाते हैं। दक्षिणायन काल में रातें बड़ी और दिन छोटे होने लगते हैं।

छवि : hindi.oneindia

मकर संक्रांति का महत्व

मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व है। कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा करते हुए सभी असुरों के सिर को मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता के अंत का दिन भी माना जाता है। सूर्य के उत्तरायण के समय देह त्याग करने या मृत्यु को प्राप्त होने वाली आत्माएं कुछ काल के लिए ‘देवलोक’ में जाती हैं। जिससे आत्मा को ‘पुनर्जन्म’ के चक्र से छुटकारा मिल जाता है और इसे ‘मोक्ष’ प्राप्ति भी कहा जाता है। महाभारत के भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने के लिए, सूर्य के मकर राशि मे आने का इंतजार किया था। अतः इस पर्व को मनाने के पीछे यह मान्यता भी है।

 

कहा जाता है कि मकर संक्रांति पर गंगा स्नान करने पर सभी कष्टों का निवारण हो जाता है। इसलिये इस दिन दान जप तप का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन को दिया गया दान विशेष फल देने वाला होता है। यदि किसी के बस में दान करना नहीं है, तो वह केवल फल का दान करें, लेकिन कुछ न कुछ दान जरूर करें।

मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व

मकर संक्रांति का जितना धार्मिक महत्व है उतना ही वैज्ञानिक महत्व है।आइए जानते हैं मकर संक्रांति से जुड़े वैज्ञानिक कारण-

  • इस समय नदियों में वाष्पन क्रिया होती है। इससे तमाम तरह के रोग दूर हो सकते हैं इसलिए इस दिन नदियों में स्नान करने को कहा जाता है।
    – मकर संक्रांति के समय उत्तर भारत में ठंड का मौसम रहता है। इस मौसम में तिल-गुड़ का सेवन सेहत के लिए लाभदायक रहता है यह चिकित्सा विज्ञान भी कहता है। इससे शरीर को ऊर्जा मिलती है। यह ऊर्जा सर्दी में शरीर की रक्षा रहती है।
    – इस दिन खिचड़ी का सेवन करने का भी वैज्ञानिक कारण है। खिचड़ी पाचन को दुरुस्त रखती है। अदरक और मटर मिलाकर खिचड़ी बनाने पर यह शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है और बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करती है।
    – पुराण और विज्ञान दोनों में सूर्य की उत्तरायन स्थिति का अधिक महत्व है। सूर्य के उत्तरायन होने पर दिन बड़ा होता है इससे मनुष्य की कार्य क्षमता में वृद्धि होती है। मानव प्रगति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश में वृद्धि के कारण मनुष्य की शक्ति में वृद्धि होती है।
    – इस दिन से रात छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। दिन बड़ा होने से सूर्य की रोशनी अधिक होगी और रात छोटी होने से अंधकार कम होगा। इसलिए मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है।

 

भारत में मकर संक्रांति के रूप

भारत के अलग-अलग राज्यों में मकर संक्रांति के पर्व को अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। हर प्रांत में इसका नाम और मनाने का तरीका अलग-अलग होता है।
-आंध्रप्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे संक्रांति कहा जाता है और तमिलनाडु में इसे पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है।
-पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फसल का स्वागत किया जाता है और इसे एक दिन पहले लोहड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है।
-उत्तर प्रदेश और बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी के नाम से पुकारा जाता है। उत्तरप्रदेश में मकर संक्रांति के दिन को दान के पर्व के रूप में देखा जाता है।
-महाराष्ट्र में माना जाता है कि मकर संक्रान्ति से सूर्य की गति तिल−तिल बढ़ती है और इसलिए लोग इस दिन एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं। इतना ही नहीं, तिल गुड़ देते समय वाणी में मधुरता व मिठास की कामना भी की जाती है ताकि संबंधों में मधुरता बनी रहे।
-राजस्थान में मकर संक्रांति के दिन सुहागन महिलाएं अपनी सास को बायना देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
-गुजरात में मकर संक्रांति को उत्तरायण कहकर पुकारा जाता है। गुजरात में इस दिन पतंग उड़ाने की प्रथा है।
-वहीं असम में माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के रूप में इस पर्व को उल्लास के साथ मनाया जाता है।
-पश्चिम बंगाल में इस दिन गंगासागर मेले के नाम से धार्मिक मेला लगता है और सभी लोग इस संगम में स्नान अवश्य करते हैं।
-कर्नाटक में इसे एक फसल के त्योहार के रूप में देखा जाता है। वहां पर लोग मकर संक्रांति के दिन बैलों और गायों को सजा−धजाकर शोभा यात्रा निकालते हैं और तरह-तरह के खेल खेलते हैं।
-तमिलनाडु में इस त्योहार को बेहद अलग तरीके से मनाया जाता है। यहां पर लोग इसे पोंगल के रूप में मनाते हैं। यह एक चार दिवसीय अवसर है। जिसमें पहले दिन भोगी−पोंगल, दूसरे दिन सूर्य−पोंगल, तीसरे दिन मट्टू−पोंगल अथवा केनू−पोंगल, चौथे व अंतिम दिन कन्या−पोंगल मनाया जाता है। पोंगल मनाने के लिए सबसे पहले स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहा जाता है। इसके बाद सूर्य देव की पूजा की जाती है और अंत में उसी खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

अलग-अलग मान्यताओं के अनुसार इस पर्व के पकवान भी अलग-अलग होते हैं, लेकिन दाल और चावल की खिचड़ी इस पर्व की प्रमुख पहचान बन चुकी है। विशेष रूप से गुड़ और घी के साथ खिचड़ी खाने का महत्व है। इसेक अलावा तिल और गुड़ का भी मकर संक्राति पर बेहद महत्व है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर तिल का उबटन कर स्नान किया जाता है। इसके अलावा तिल और गुड़ के लड्डू एवं अन्य व्यंजन भी बनाए जाते हैं।

इस तरह मकर संक्रांति के अवसर पर पूरा देश तिल-गुड़ के मिठाई बनाकर मुंह मीठा करते हैं।

 

बैनर छवि: assets-news-bcdn

कृपया इसे भी पढ़ें: मकर संक्रांति पर ऐसे तैयार करें दान की थाली, त्वानूं लोहरी दी लख-लख वधाइयां!!!

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