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जानिए सिंदूर खेला की रस्म से जुड़ी कुछ खास बातें

जानिए सिंदूर खेला की रस्म से जुड़ी कुछ खास बातें

14 Oct 2021 | 1 min Read

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नवरात्रि के त्यौहार की बात ही अलग होती है अगर शारदीय नवरात्रि की बात करे तो इसमें सबसे ज्यादा खास है, शारदीय नवरात्रों को अलग-अलग तरीके से मनाना। पश्चिम बंगाल में सिंदूर खेला की रस्म का अलग ही महत्व है आइये जानते हैं सिंदूर खेला की रस्म से जुड़ी कुछ खास बातें।

  • उत्तर भारत में नवरात्रि के आखिरी दिन दशहरा मनाया जाता है। वहीं बंगाल में दुर्गा पूजा के साथ दशहरे के दिन सिंदूर खेला की रस्म मनाई जाती है।
  • इस दिन सभी महिलाएं आपस में एक दूसरे को सिंदूर लगाती है। यह त्यौहार बंगाली समाज में मनाया जाता है लेकिन आज सभी जगह सिंदूर खेला की रौनक ही अलग होती है।
  • सिंदूर खेला की रस्म सालों से चली आ रही है। माना जाता है कि मां दुर्गा साल में एक ही बार अपने मायके आती है। और मायके में 10 दिन तक रुकती है, इन्हीं 10 दिनों को दुर्गा पूजा के रूप में लोग मनाते है।
  • सिंदूर खेला की रस्म के दौरान महिलाएं पान के पत्तों से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श करते हुए उनकी मांग का सिंदूर अपने माथे में लगाती है। इस दिन मां दुर्गा को पान और मिठाइयों का भोग भी लगाया जाता है।
  • इस रस्म को विवाहित महिलाएं या फिर जिन युवतियों की शादी होने वाली है वह भी इसमें शामिल होती है।
  • नौ दिन के पूजा पाठ के बाद दशमी के दिन सिंदूर खेला की रस्म की बहुत ही धूम होती है। सिंदूर खेला की रस्म के साथ धुनुची नृत्य करने का भी रिवाज है। धुनुची मिट्टी से बना एक तरह का बर्तन होता है। कहा जाता है कि धुनुची नृत्य असल में शक्ति का प्रतीक है और मां दुर्गा ही शक्ति है। धुनुची नृत्य की शुरुआत सप्तमी से लेकर नवमी तक रहती है।
  • मां दुर्गा के पंडाल की भी रौनक अलग ही होती है। इसके अलावा शारदीय नवरात्रि में गर्भवती महिलाओं के लिए भी गोद भराई की रस्म की जाती है। साथ ही मां का आशीर्वाद लिया जाता है।
  • सिंदूर खेला की रस्म की रौनक हर जगह अलग ही होती है। भारत के हर राज्यों में आज किसी ना किसी रूप में मां दुर्गा की आराधना होती है। लेकिन असल मायनों में मां की पूजा का मतलब है महिलाओं का सम्मान, कन्याओं को अच्छी शिक्षा देना।
  • आज भले ही नवरात्री को मनाने का तरीका बदल गया हो लेकिन कुछ परंपराएं ऐसी है जो सालों से चली आ रही हैं। उसी परंपरा में से एक है सिंदूर खेला की रस्म जो कि 450 साल से चली आ रही। सिंदूर खेला की रस्म महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए भी करती है।
  • इस रस्म में दुर्गा पूजा पंडाल की रौनक ही अलग होती है। इसी दिन विसर्जन का समय भी आता है मां का आशीर्वाद लेते हुए गीत गाते हुए मां को विदाई दी जाती है साथ ही जल्द ही मां के आगमन की प्रार्थना की जाती है।

आप सभी को नवरात्रि और दुर्गा पूजा और दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं।

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