निमोनिया छाती और फेफड़ों का ऐसा संक्रमण, जिसमें सांस लेने में तकलीफ होती है। निमोनिया में छाती में तरल पदार्थ भर जाता है। जिसकी वजह से खांसी, बुखार जैसी समस्या गंभीर रूप लेती है। अगर निमोनिया नवजात शिशु में हो तो यह बहुत ही घातक बन जाता है। शिशुओं में निमोनिया से बचाव और रोकथाम करना बहुत आवश्यक है। अगर शिशुओं में निमोनिया का समय पर पता नहीं लगाए जाए तो स्थिति गंभीर हो सकती है।
शिशुओं में निमोनिया के लक्षण
- नवजात शिशु को बहुत ज्यादा खांसी आ रही हो।
- छाती की पसलियां ऊपर नीचे हो रही हो।
- सांस लेने में तकलीफ।
- तेज बुखार।
- शिशु ठीक तरह से सो नहीं पा रहा हो।
- होंठ और उंगली के नाखून नीले रंग के नजर आ रहे हैं।
- शिशु की नाक से आवाज आना।
इसके अलावा निमोनिया के और भी लक्षण हो सकते हैं। अगर आपके शिशु को ऐसे कोई भी लक्षण हैं तो फौरन डॉक्टर से संपर्क करे। क्योंकि शुरुआत में निमोनिया का पता लगाने से इस पर काबू पाया जा सकता है।
शिशुओं में निमोनिया के कारण क्या है
- बैक्टीरियल इंफेक्शन के कारण।
- वायु में प्रदूषण के कारण।
- छाती में संक्रमण।
- लंबे समय तक खांसी जुकाम होना।
- शिशु को ठंड लगने की वजह से।
- अन्य संक्रमण।
- बहुत ज्यादा खांसी आना।
- छाती में कफ जमा रहना।
निमोनिया से बचाव
- शिशुओं में निमोनिया से बचाव के लिए एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती है।
- नवजात शिशु को गहन चिकित्सा कक्ष में रखा जाता है।
- शिशुओं को निमोनिया टीकाकरण देना।
नवजात शिशु को निमोनिया के शुरुआती संक्रमण से बचाव के लिए आप कुछ घरेलू नुस्खे अपनाएं।
- शिशु में निमोनिया के शुरुआती लक्षण दिखने पर आप सरसो के तेल में अजवाइन, मेथी, हींग, लहसुन मिलाकर तेल को गर्म कर ले। जब तेल का तापमान एकदम सामान्य हो जाए तो तेल को शिशु की छाती में लगाएं।
- नवजात शिशु को निमोनिया में कफ की बहुत शिकायत होती है। ऐसे में शिशु की नाक के आस-पास भाप दे। क्योंकि शिशु को भाप दिलाना बहुत मुश्किल होता है। ऐसी स्थिति में आप एक तौलिए को गर्म पानी में भिगो दे। फिर शिशु की नाक से दूर रखकर भाप दिलाने की कोशिश करे। अगर आपके पास स्टीमर है तो शिशु को गोद में लेकर स्टीमर के पास कुछ समय के लिए बैठ रहे। क्योंकि भाप दिलाने से काफी हद तक बलगम निकलता है।
अगर शिशु को जरा सी भी सांस लेने में तकलीफ है तो डॉक्टर को तुरंत दिखाए।
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