14 Nov 2021 | 1 min Read
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बचपन यानी कि वह समय जब दुनिया की कोई फर्क नहीं। रिश्तों का कोई बोझ नहीं, बेफ्रिक सा मन, दोस्तों का साथ। मम्मी-पापा की डांट वाला प्यार, स्कूल नहीं जाने की जिद। सारे नखरे उठाने के लिए मम्मी पापा जो है, कब यह बचपन निकल जाता है पता ही नहीं चलता।
एक बचपन सबका एक जैसा होता है। लेकिन अगर 80 और 90 दशक की बात करें। उस समय का बचपन बहुत अलग था। तब कोई स्मार्टफोन नहीं था, कार्टून चैनल के नाम पर एक समय तय था। तब इतवार की छुट्टी होती थी, जिसका इंतजार हम सोमवार से करना शुरू करते थे। संडे को रंगोली और मोगली देखने के लिए सुबह ही उठ जाते थे। तब सोसाइटी के पार्क नहीं होते थे, तब एक ऐसा पार्क होता था। जहां पर ठंड के दिनों में पूरा शहर पिकनिक मनाने आता था। बुधवार के दिन सफेद स्कूल यूनिफार्म और सफेद जूते होते थे। तब गर्मी की छुट्टियां नानी के घर में बीतती थी। छतों पर मां से छुपकर खेलते रहते थें। तब परीक्षा के दिन सुबह जल्दी उठकर रीवजन करते थे। उस समय ऐसा था बचपन, जो आज के बचपन से एकदम अलग था।
आज हमारे बच्चों का बचपन डिजिटल हो चुका है। बच्चों की दुनिया स्मार्टफोन तक सीमित हो गई है। लैपटॉप कंप्यूटर अब बच्चों के दोस्त बन गए है। अब हर दिन वीकेंड जैसा लगता है, एक क्लिक पर पिज्जा कुछ मिनटो में आ जाता है। कार्टून चैनल के नाम पर अगिनत विकल्प हो गए है। अब छुट्टी के नाम पर वाटर पार्क, फॅारने ट्रिप, रिसोर्ट रह गए है। बच्चों के लिए इतने सारे आप्शन हो गए है। कि वह बोर हो नहीं सकते है।
बचपन हमेशा एक जैसा नहीं रहता है। बस रहती हैं थोड़ी सी मासूमियत और चंचल पन, क्योंकि बच्चों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इसलिए अपने अंदर के बचपन को भी बना कर रखिए। बचपन कभी दोबारा नहीं आता है, बस बचपन की यादें रह जाती है।
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