10 Jan 2022 | 1 min Read
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नीता और प्रीति दोनों सहेलियां के बीच पक्की दोस्ती थी। लेकिन नीता की एक आदत खराब थी, वह हमेशा प्रीति की बेटी की तुलना अपनी बेटी से करती थी। जो कि महज 5 साल की थी, यह प्रीति को बिल्कुल नहीं पसंद था। लेकिन प्रीति यही सोचती कि कहीं इस बात का बुरा नीता को ना लग जाए। एक दिन प्रीति को किसी जरुरी काम से 2 दिन के लिए अपनी मां के घर जाना था। इत्तेफाक की बात यह थी कि प्रीति के पति भी ऑफिस के काम से शहर के बाहर थे। ऐसे में प्रीति ने सोचा कि नीता के घर अपनी बेटी को छोड़ देती हूं।
हालिकी नीता प्रीति की बेटी का ध्यान बहुत अच्छे से रखती थी। लेकिन उसकी तुलना करने की आदत बहुत खराब थी। प्रीति ने अपनी बेटी को समझाया कि बेटा आप नीता मौसी के साथ ही सोना। अकेले कहीं मत जाना उनकी बेटी के साथ खेलना। मैं जल्दी ही आ जाउंगी, प्रीति अपनी मां के घर इसलिए बेटी को नहीं ले जाना चाहती क्योंकि उसकी मां की तबियत खराब थी। वहां सिर्फ प्रीति की मां ही अकेली रहती थी।
नीता ने बहुत अच्छे से ध्यान रखा प्रीति की बेटी का। लेकिन उस दिन नीता ने कहा देखो बेटा चुनमुन कितने अच्छे से खाती है तुम तो ऐसी की ऐसी ही हो। कुछ खाती पीती नहीं हो तुम्हारी मां कितनी परेशान रहती है। उसी बात पर तपाक से प्रीति की बेटी ने कहा मौसी आप खुद को देखो आप क्यों इतना खाती हो। इतनी मोटी जो हो मेरी मम्मा को देखो कितनी फिट है।
एक पेरेंट्स होने के नाते हम यह सोचते है कि हमारा बच्चा सबसे परफेक्ट है। या फिर हम दूसरे बच्चों से तुलना करने लगते है। लेकिन बच्चे हर बात को समझते है, उनको यह पता होता है कि उनकी तुलना की जा रही है। किसी भी बात को तपाक से बोलने में जरा भी हिचकिचाते नहीं है। इसलिए बच्चों की तुलना नहीं करे, बल्कि उनको समझाए कि बेटा ऐसा करने से तुम और बेहतर हो सकते हो। क्योंकि बहुत ज्यादा तुलना की वजह से बच्चों में आत्मविश्वास की भी कमी आती है। बल्कि बच्चे के अंदर गुस्सा, डर की भावना भी पनपती है। इसलिए चाहे वह आपके बच्चों हो या फिर किसी और के तुलना कभी भी मत कीजिए।
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