22 Feb 2022 | 1 min Read
Vinita Pangeni
Author | 549 Articles
शिशु जैसे-जैसे बड़े होने लगते हैं, उन्हें नई बातें बताना और सही-गलत का फर्क समझाना जरूरी हो जाता है। ऐसा ही एक फर्क जो बच्चों को समझाना चाहिए, वो गुड टच और बैड टच का है। इस बात की जानकारी होने से बच्चों को गलत हरकतों का शिकार होने से बचाया जा सकता है। बस तो गुड टच और बैड टच में क्या अंतर है और बच्चों को यह अंतर कैसे समझाया जाए, ये सब इस लेख में जानिए। इस आर्टिकल की मदद से पैरेंट्स अपने बच्चों की ग्रोथ ईयर में उन्हें आसानी से गुड और बैड टच सीखा सकते हैं।
गुड टच और बैड टच में क्या अंतर है, यह समझाना बच्चों को जरूरी है। इससे यौन शोषण की घटनाएं, छेड़छाड़ से बच्चों को बचाया जा सकता है। इससे बच्चे खराब लोगों के बुरे बर्ताव से भी सतर्क रहते हैं। चलिए, आगे समझते हैं कि गुड टच और बैड टच क्या है।
गुड टच का मतलब है अच्छा स्पर्श। इससे बच्चों को अच्छा महसूस होगा। अच्छे स्पर्श में प्यार, देखभाल और दोस्ती झलकती है। जैसे कि मां का प्यार से पुचकारना, भाई का गले लगा लगाना, दोस्तों का खेलते हुए हाथ पकड़ना, दादा-दादी और नाना-नानी का बच्चे के गालों और बालों को सहलाना आदि।
बैड टच का अर्थ बुरा व गलत स्पर्श है। ऐसी जगह को छूना, जिससे असहज और अजीब महसूस हो। शरीर की ऐसी जगहों पर हाथ लगाना जहां स्पर्श होने पर बुरा लगने लगे। बुरा स्पर्श करने वाले शरीर के निजी अंगों को छूकर कहते हैं कि किसी को मत बताना।
बच्चों को गुड टच और बैड टच सिखाने की सही उम्र चार से पांच साल की मानी जाती है। रिसर्च के अनुसार, बच्चे को इसी उम्र में लोगों के द्वारा खराब व्यवहार का सामना करना पड़ता है। इस उम्र में लोग बच्चों को गलत तरीके से छूते हैं, इसलिए चार से पांच साल की आयु तक बच्चों को गुड टच और बैड टच सिखाना चाहिए।
बच्चों को गुड टच और बैड टच समझाने के कुछ आसान तरीके माता-पिता अपना सकते हैं। इन तरीकों के बारे में आगे पढ़िए।
1. गुड टच बैड टच के बारे में खुलकर बात करें – बच्चे को बैड टच और गुड टच के बारे में बताने और समझाने का सबसे आसान तरीका, इसके बारे में खुलकर बात करना है। उन्हें समझाएं कि अच्छे स्पर्श और बुरे स्पर्श के बारे में। कोशिश करें कि आप उन्हें उदाहरण दें। जी हां, उदाहरण देना जरूरी है, क्योंकि इस मामले में संकोच करना एकदम सही नहीं है।
2. अंग के अधिकार के बारे में बताएं – बच्चे को यह समझाना जरूरी है कि वो अपने शरीर के मालिक हैं। उनके साथ कोई जोर-जबरदस्ती नहीं कर सकता है। उन्हें बताएं कि उनकी इजाजत के बिना उनके शरीर के किसी भी अंग को कोई भी नहीं छू सकता है। अगर कोई ऐसा जबरदस्ती करता है, तो उसका विरोध करना भी सिखाएं। बच्चे को समझाएं कि किसी का जबरदस्ती गोद में उठा लेना, शरीर को छूना और किस करने की कोशिश करना, यह सब गलत है।
3. खेल-खेल में बताएं गुड टच – बैड टच क्या है – बच्चों को खेल-खेल में कुछ भी सिखाना सबसे आसान होता है। इसी तरह से बच्चे को खेल-खेल में अच्छे स्पर्श और बुरे स्पर्श के बारे में भी बताया जा सकता है। खेलते समय बच्चे को छूकर कहें बैड टच है और फिर हाथों को छूकर कहें गुड टच। इसी तरह शरीर के विभिन्न अंगों को छूकर बच्चे को गुड और बैड टच के बारे में बताया जा सकता है।
4. स्विम सूट नियम की मदद लें – बच्चे को गुड टच और बैड टच के बारे में समझाना मुश्किल लग रहा है, तो स्विम सूट नियम की मदद ले सकते हैं। स्विम सूट पहनाकर या दिखाकर बच्चे को बताएं कि जो भी अंग इस कपड़े से ढके हुए हैं या ढके जाते हैं, उन अंगों को छूना और छूने की कोशिश करना बैड टच है।
बच्चों को बताएं कि उन अंगों को छूने का अधिकार सिर्फ उन्हें हैं। इन जगहों को छूने की इजाजत किसी अन्य व्यक्ति को नहीं देनी चाहिए। अगर कोई इन्हें छुए या छूने की कोशिश करे, तो तुरंत परिवार वालों को बताना जरूरी है।
5. ‘ना’ बोलना सिखाएं – बच्चों को ‘ना’ कहना सिखाएं। जी हां, बच्चे भोले होते हैं और वो चुपचाप सारी बातें मान लेते हैं, यह सोचकर लोग बच्चों के साथ गलत हरकत कर लेते हैं। ऐसे में बच्चे को ‘ना’ कहना सिखाएंगे, तो बच्चों को गलत हरकतों से बचाया जा सकता है। किसी की हिम्मत नहीं होगी कि वो बच्चों को गलत तरीके से छुएं।
बच्चे बड़े ही भोले-भाले होते हैं, जिस वजह से उन्हें अच्छे और बुरे स्पर्श को समझना मुश्किल होता है। उनका मन इतना साफ होता है कि वो सामने वाले की खराब नियत को समझ नहीं पाते हैं। इसी वजह से बच्चों को गुड टच और बैड टच के बीच का फर्क समझाना जरूरी हो जाता है। इसलिए इस लेख की मदद सें और बच्चों को इसको लेकर सचेत और जागरूक करें।
A
Suggestions offered by doctors on BabyChakra are of advisory nature i.e., for educational and informational purposes only. Content posted on, created for, or compiled by BabyChakra is not intended or designed to replace your doctor's independent judgment about any symptom, condition, or the appropriateness or risks of a procedure or treatment for a given person.