17 Feb 2022 | 1 min Read
Ankita Mishra
Author | 279 Articles
जब तक बच्चा दुनिया में मां के गर्भ से बाहर नहीं आ जाता है तब तक सभी का ध्यान आने वाले बच्चे पर रहता है और शिशु के इस दुनिया में आ जाने का पता तभी चलता है जब वो रोए। जैसा कि आप जानते हैं कि डिलिवरी के बाद शिशु का रोना बेहद जरूरी माना जाता है पर क्या सभी नवजात बच्चे रोते हैं? क्या वो काफी देर तक रोते रहते हैं या कुछ देर बाद चुप हो जाते हैं? डिलिवरी के बाद उनके रोने का क्या मतलब होता है? इन सभी सवालों के जवाब को जानना हर मां के लिए बहुत जरूरी है ताकि वो बच्चे के हेल्दी नेचर के बारे में जान सकें।
जैसे ही बच्चे का जन्म होता है डॉक्टर सबसे पहले शिशु का पहली बार रोना सुनते हैं। अगर इस दौरान नवजात शिशु का रोना नहीं सुनाई देता है, तो वे उसकी पीठ को थपथपाते हुए उसे रूलाने की कोशिश करते हैं। जन्म के बाद बच्चे का पहली बार रोना शुरू होने के बाद ही उसे साफ किया जाता है और मां के पास दिया जाता है।
दरअसल, जन्म से पहले शिशु मां के गर्भ में एम्नियोटिक द्रव से भरे एक थैली में रहता है। जन्म लेने के बाद सबसे पहले गर्भनाल को काटकर बच्चे के कान, नाक, आंख और मुंह को साफ किया जाता है, ताकि एम्नियोटिक द्रव बच्चे के शरीर में न जाए। अगर यह शरीर में प्रवेश कर गया, तो बच्चे का फेफड़ा काम करना बंद कर सकता है।
इसी की जांच करने के लिए जन्म के तुंरत बाद बेबी का पहली बार रोना बहुत जरूरी माना जा सकता है। बच्चे का रोना यह पुष्टि कर सकता है कि उसके फेफड़े तक ऑक्सीजन सही से पहुंच रहा है और फेफड़े सही तरीके से कार्य कर रहे हैं। इस तरह जन्म के बाद बच्चे का पहली बार रोना यह भी बता सकता है कि शिशु पूरी तरह से स्वस्थ है।
गर्भावस्था के दौरान मां के गर्भ में एम्नियोटिक सैक नामक एक थैली होती है, जिसमें एम्नियोटिक द्रव भरा होता है। यह एक तरह का तरल पदार्थ है। मां के गर्भ में शिशु इसी द्रव से भरी थैली में विकसित होता है। एम्नियोटिक द्रव मां के गर्भ में शिशु को आराम देने, उसे विभिन्न संक्रमणों से सुरक्षित रखने व उसे चोट लगने से बचाए रखने में मदद कर सकता है।
इसके अलावा, यह द्रव गर्भवती महिलाओं के पेट के अंदर का तापमान भी स्थिर बनाए रखने में मदद कर सकता है। साथ ही, शिशु के शरीर की विकासित हो रही मांसपेशियों, हड्डियों, त्वचा व आंतरिक अंगो के उचित विकास में भी मददगार माना जा सकता है।
ऐसा कई बार होता है कि कुछ बच्चे जन्म के तुरंत बाद नहीं रोते हैं। कुछ बच्चों की जन्म के बाद हृदय गति भी कुछ मिनटों के लिए बंद पाई जाती है। हालांकि, प्राथमिक सामान्य चिकित्सा के जरिए इसे आसानी से ठीक किया जा सकता है। आमतौर पर ऐसी स्थिति में शिशु खुद ही अगले 1 से 5 मिनट में रोना और हाथ-पैर हिलाने की हरकतें करना शुरू कर सकता है।
ऐसे में अगर डिलिवरी के बाद तुरंत बाद शिशु पहली बार नहीं रोता है, तो घबराए नहीं। इसके अलावा, कुछ अन्य स्थितियों में डॉक्टर बच्चे के हृदय गति व फेफड़ों की जांच करके उसे आईसीयू में रखकर ऑक्सीजन भी दे सकते हैं। इससे बच्चे के शरीर में सांस लेने की दर सामान्य हो सकती है।
जन्म के समय शिशु का पहली बार रोना शिशु के लिए अच्छा माना जा सकता है। इसके अलावा, एक नवजात शिशु के सामान्य तौर पर 24 घंटे के अंदर 2 से 3 घंटे के लिए भी रोना चाहिए। इस तरह रोना एक स्वस्थ नवजात शिशु के स्वास्थ्य को दर्शा सकता है। हालांकि, अगर नवजात शिशु दिनभर में 4-5 घंटे से अधिक रोता है या उसका रोना लगातार जारी रहता है, डॉक्टर से सलाह लें।
जिस क्षण आपका बेबी आपके शरीर से निकलकर दुनिया में आने की शुरुआत करता है, उस समय लेबर रूम में मौजूद सभी लोग यानी डॉक्टर, नर्स और यहाँ तक कि आप भी बेसब्री से उसकी उपस्थिति दर्ज कराने का इंतजार करते हैं। बच्चे का पहली बार रोना इस बात का संकेत है कि वह दुनिया में आ गया है। लेकिन क्या सभी बच्चे जन्म के समय रोते हैं? क्या वे रोते रहना जारी रखते हैं या वे कुछ मिनट के लिए ही रोते हैं और फिर चुप हो जाते हैं? बच्चे के रोने का क्या अर्थ है? इस प्रकार के और भी कई प्रश्न हैं, जो बच्चे के हेल्दी नेचर को समझने के लिए आवश्यक हैं।
उम्मीद है कि शिशु का पहली बार रोना कितना जरूरी है, इससे जुड़ी जानकारी आपको पसंद आई होगी। एक मां जब प्रसव के बाद अपने बेबी का पहली बार रोना सुनती है, तो यह उसके लिए दुनिया की सबसे बड़ी खुशियों में से एक होती है। आखिर उसने नवजात शिशु के इसी रोने की आवाज को सुनने के लिए उसने नौ माह का लंबा सफर तय किया होता है।