13 Apr 2022 | 1 min Read
Vinita Pangeni
Author | 549 Articles
भारत के इतिहास में ऐसे अनेक किस्से हैं, जो कभी आंखों में पानी ले आते हैं, तो कभी गुस्से या जोश भर देते हैं। हर ऐतिहासिक घटना की अपनी अलग वजह रही है। बढ़ते बच्चों को इन ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में पता होना चाहिए। इसी वजह से हम यहां जलियांवाला बाग हत्याकांड से लेकर कारगिल युद्ध तक की सभी जरूरी घटनाओं की बात यहां करेंगे।
गुलाम भारत से लेकर आजाद भारत में कई ऐतिहासिक घटनाएं घटी हैं। इनमें से हम ऐसी 10 ऐतिहासिक घटनाओं का जिक्र यहां कर रहे हैं, जिनके बारे में आपके बच्चों को पता होना जरूरी है। आइए आगे पढ़ते हैं लेख।
भारतीय को जिंदगी भर का जख्म देने वाला जलियांवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रैल 1919 में हुआ था। इस दिन स्वर्ण मंदिर के पास जलियांवाला बाग में हजारों लोग रॉलेट एक्ट (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे अधिकारों का हनन करने वाला एक्ट) के विरोध में इकट्ठा हुए थे। यह बैसाखी का दिन था। अंग्रेजों के क्रूर व्यवहार के चलते वहां लाशे बिछ गईं थीं।
करीब शाम साढ़े चार बजे जनरल डायर ने वहां मौजूद हजारों निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया, वो भी कोई चेतावनी दिए बिना। दस मिनट तक गोलियां बिना रुके चलती रहीं। बताया जाता हैं कि उस दिन करीबन 1650 राउंड गोलियां चली थीं।
सरकारी आंकड़े तो बताते हैं कि उस दिन 379 लोगों की जान गई थी। मगर बताया जाता है कि उस दिन एक हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और हजारों घायल हुए थे।
इस घटना ने भारतीय स्वतंत्रता की लौ को और तेज कर दिया था और लोग अंग्रेजों की इस क्रूरता के कारण एकजुट होने लगे थे। इसी से असहयोग आंदोलन (नॉन कॉर्पोरेशन मूवमेंट) शुरू हुआ था।
असहयोग आंदोलन की शुरुआत 1920 में हुई। कांग्रेस ने इसे कलकत्ता में 4 सितंबर को पारित करके औपचारिक स्वीकृति दी। इस आंदोलन को पूरी तरह से अहिंसक आंदोलन रखने का फैसला लिया गया था। इसमें बच्चों ने स्कूल व कॉलेज जाने से, वकीलों ने अदालत जाने और मुकदमा लड़ने से, लोगों ने अंग्रेजों से सामान खरीदने से, श्रमिकों ने काम करने से मना कर दिया।
गांधीजी का कहना था कि अगर हम अंग्रेजों का सहयोग ही नहीं करेंगे, तो वो अपनी हुकूमत आगे नहीं बढ़ा पाएंगे। इसके सिद्धांतों का ठीक तरीके से पालन करने पर अंग्रेज जल्द भारत छोड़ देंगे।
चौरी चौरा घटना 4 फरवरी 1922 को ब्रिटिश भारत में गोरखपुर के चौरी चौरा में हुई थी। इस दौरान असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले कांग्रेस प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने मुंडेरा बाजार में मारा था। इस बात का पता लगने पर लोगों का एक बड़ा समूह पुलिस से भिड़ गया और चौकी पर आग लगा दी।
इस घटना में 23 पुलिस वालों और 3 नागरिकों की मौत हुई थी। लोगों द्वारा की गई इस हिंसा के परिणामस्वरूप महात्मा गांधी ने 12 फरवरी को असहयोग आंदोलन रोक दिया। हिंसा के खिलाफ होने के कारण महात्मा गांधी ने ये फैसला लिया था, लेकिन कई आंदोलनकारी गांधी जी के इस फैसले के खिलाफ थे।
16 फरवरी 1922 में महात्मा गांधी ने ‘चौरी चौरा का अपराध’ नामक लेख लिखा। उसमें उन्होंने कहा कि अगर मैं यह आंदोलन वापस नहीं लेता, तो ऐसी हिंसक घटनाएं और भी होतीं। घटना के लिए पूरी तरह से पुलिस को जिम्मेदार बताते हुए बापू ने लिखा था कि पुलिस ने भीड़ को हिंसक कदम लेने के लिए उकसाया है।
लेख में उन्होंने चौरी चौरा कांड के लिए जिम्मेदार लोगों से खुद को पुलिस के हवाले करने की अपील भी की। इसी दौरान महात्मा गांधी पर राजद्रोह का मुकदमा चला था। पुलिस ने राजद्रोह के लिए बापू को मार्च 1922 में गिरफ्तार किया।
काकोरी कांड व षडयंत्र, स्वतंत्रता संग्राम द्वारा अंजाम दी गई महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है, जो 9 अगस्त, 1925 को हुई थी। इसका मकसद सरकारी खजाने को लूटना और आजादी पाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधि को अंजाम देना था।
यात्रियों की मौत का कारण बताकर क्रांतिकारियों पर लूट और हत्या का मामला चलाया गया। इसमें राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्लाह खान, जैसे कुल 10 लोग शामिल थे। इस ट्रेन लूट मामले में कई महीनों तक केस चलने के बाद इन लोगों को फांसी हो गई। हंसते-हंसते सभी वीर देश के लिए कुर्बान हो गए।
नमक सत्याग्रह व दांडी मार्च मार्च 1930 में शुरू हुआ। इस सत्याग्रह का मकसद दांडी गांव में समुद्र से नमक उत्पादन करके नमक कानून को तोड़ना था। दरअसल, अंग्रेजों ने नमक पर बहुत ज्यादा कर लगा दिया था, जिससे भारतीय परेशान थे।
गांधी जी ने इस सत्याग्रह के साबरमती आश्रम से दांडी तक की पैदल यात्रा शुरू की थी, जो लगभग 386 किमी थी। इस यात्रा की शुरुआत में महात्मा गांधी के साथ उनकी पत्नी और कुछ ही सहयोगी थे। फिर रास्ते में सैकड़ों लोग इसमें शामिल होते गए। दांडी पहुंचकर महात्मा गांधी और अन्य लोगों ने नमक का उत्पादन किया। नमक कानून तोड़ने के लिए गांधी जी को जेल जाना पड़ा था।
इससे पहले गांधी जी ने नील की खेती के खिलाफ 1917 में बिहार के चंपारण में सत्याग्रह चलाया था। यह सबसे पहला सत्याग्रह था। उसके बाद रुई कर्मचारियों को प्लेग महामारी के लिए बोनस दिलाने के लिए अहमदाबाद सत्याग्रह सन् 1918 में चलाया था। फिर गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों के लिए खेड़ा सत्याग्रह शुरू हुआ।
इसी तरह लोगों को आंतकवाद के शक पर गिरफ्तार करने और लोगों की बोलने-घूमने फिरने की आजादी के खिलाफ रॉलेट सत्याग्रह छिड़ा। साथ ही किसानों से कर वसूली के खिलाफ बारडोली सत्याग्रह 1928 शुरू हुआ।
भारत के लिए यह आंदोलन टर्निंग प्वॉइन्ट से कम नहीं था। यह अंग्रेजों के खिलाफ छेड़ी गई आखिरी मुहिम थी, जिसकी शुरुआत अगस्त, 1942 में हुई। मुम्बई (उस समय बम्बई) में अखिल भारतीय कांग्रेस की बैठक में इस प्रस्ताव में मुहर लगी और आंदोलन की शुरुआत हो गई। आंदोलन शुरू होते ही अंग्रेजों ने कांग्रेस के सभी नेताओं को जेल में भेज दिया।
सभी नेताओं के गिरफ्तार होने के साथ ही गांधी जी को भी नजरबंद कर दिया गया था। बावजूद इसके यह आंदलोन अच्छे से चला। इस आंदोलन में करीब 940 लोगों की जान गई और 1630 लोग जख्मी हुए थे। इस दौरान छह हजार से अधिक लोगों ने अपनी गिरफ्तारी दी थी।
आंदोलन के अंत में ब्रिटिश सरकार ने यह संकेत दे दिया था कि वो भारत को आजाद कर देंगे। तभी महात्मा गांधी ने इस आंदोलन को रोक दिया। इसके परिणामस्वरूप पुलिस ने जेल में कैद किए गए करीब दस हजार लोगों को रिहा किया था।
30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने शाम 5 बजे महात्मा महात्मा गांधी को गोली मारी थी। इस दौरान महात्मा गांधी बिड़ला भवन के प्रार्थना सभा से बाहर निकल रहे थे। नाथूराम गोडसे ने उनपर लगातार फायरिंग की और उसी वक्त बापू ने अपना दम तोड़ दिया। महात्मा गांधी के मुंह से निकलने वाला आखिरी शब्द ‘हे राम’ था।
इस घटना से 10 दिन पहले ही गांधी जी पर बम से हमला हुआ था, लेकिन वो उस दिन बच गए। हत्या से करीब 6 साल पहले महात्मा गांधी ने इच्छा जाहिर की थी कि वो 125 साल की उम्र तक जिंदा रहना चाहते हैं। लेकिन गोडसे ने उन्हें गोली से भून डाला। नाथू राम को उसी दिन गिरफ्तार कर लिया गया था। साल 1949 में जज आत्माचरण ने नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को गांधी की हत्या के जुर्म में फांसी की सजा सुनाई थी।
चिपको भारत का वन संरक्षण आंदोलन था। यह आंदोलन 1973 में उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र (तब उत्तर प्रदेश का हिस्सा) में शुरू हुआ और दुनिया भर के पर्यावरण आंदोलन का हिस्सा बन गया।
पेड़ बचाने के इस आंदोलन की नींव 1970 में ही पड़ गई थी। जंगलों की अंधाधुंध और अवैध कटाई के लिए इस आंदोलन को पर्यावरणविद सुंदरालाल बहुगुणा, कामरेड गोविंद सिंह रावत, चंडीप्रसाद भट्ट और श्रीमती गौरदेवी ने शुरू किया था।
इस आंदोलन को सबसे ज्यादा पहचान 26 मार्च 1974 में मिली। इस वक्त चमोली के रैणी गांव में करीबन ढाई हजार पेड़ों को काटने के लिए निलाम कर दिया गया। जब मजदूर पेड़ काटने के लिए इलाके में पहुंचे, तो महिलाओं ने उन्हें समझाने की कोशिश की। जब ठेकेदार और मजदूर नहीं माने, तो महिला मंडल की प्रधान गौरा देवी समेत अन्य महिलाएं पेड़ों से चिपक गईं। इसी वजह से इस आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन पड़ गया।
खास बात यह थी कि इस आंदोलन में सबसे ज्यादा भागीदारी महिलाओं की थी। पेड़ से चिपकर महिलाओं ने एलान कर दिया था कि पेड़ काटने से पहले उन्हें काटना होगा। फिर इस आंदोलन की गूंज पूरे भारत में सुनाई दी। धीरे-धीरे विदेश में भी इसकी बातें होने लगी। आखिर में इस आंदोलन के चलते कई पेड़ों को कटने से बचाया गया। खुद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसका संज्ञान लिया था।
सन् 1999 में कारगिल पर कब्जा करने के लिए घुसपैठ होने लगी। एक ग्वाले से मिली सूचना से यह बात आर्मी को पता लगी थी। पहले इसे मामूली घुसपैठ समझा जा रहा था। बाद में बड़े पैमाने में होती घुसपैठ को देखने के बाद पता चला कि इसमें सिर्फ जिहादियों का नहीं, बल्कि पाकिस्तान का भी हाथ है। यह पता चलते ही तुरंत ‘ऑपरेशन विजय’ शुरू किया गया।
इस ऑपरेशन के तहत 18 हजार फीट की ऊंचाई पर कारगिल की लड़ाई शुरू हुई। इसके लिए तीस हजार सेना भेजी गई। इसके बाद दोनों पक्षों की ओर से तीन महीने तक लड़ाई होती रही। अंत में भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सेना को कारगिल से खदेड़ कर जीत हासिल कर ली। जीत हासिल करने वाले दिन यानी 26 जुलाई 1999 को कारगिल विजय दिवस के रूप में हर साल मनाया जाता है।
भारत में हुए नरसंहार, गांधी जी की हत्या और दूसरी घटनाएं इंसान को झकझोड़ कर रख देती हैं। लेकिन हमें और हमारे बच्चों को इन ऐतिहासिक बातों का पता होना जरूरी है। इतिहास से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। बच्चे को इतिहास में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड से लेकर कारगिल युद्ध तक यह समझने में मदद मिलेगी कि अमन और शांति कितनी जरूरी है।
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