24 Jun 2022 | 1 min Read
Ankita Mishra
Author | 409 Articles
कहते हैं धरती पर डॉक्टर ईश्वर के रूप हैं। बीमारी चाहें छोटी हो या गंभीर हो, हर तरह की बीमारी के इलाज और उससे बचाव में डॉक्टर ही हमारी उम्मीद होते हैं। यहां तक की डॉक्टर की भूमिका सिर्फ शारीरिक बीमारियों तक ही सीमित नहीं है। मानसिक बीमारियों को दूर करने में भी डॉक्टर ही उम्मीद ही किरण होते हैं। डॉक्टर की इतनी अहम भूमिका और उनकी महत्व को देखते हुए हर साल 1 जुलाई के दिन देश में डॉक्टर्स डे (National Doctors Day) मनाया जाता है।
वहीं, दूसरी तरफ आज के बच्चे ही कल का भविष्य हैं। ऐसे में बच्चों को डॉक्टर्स डे की अहमियत और इतिहास को समझाना जरूरी हो जाता है। यहां हम राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस का इतिहास व उनकी अहमियत बता रहे हैं, जिनकी मदद से आप अपने बच्चों को इस दिन की और डॉक्टर्स की अहमियत को समझा सकते हैं।
भारत सरकार ने सबसे पहली बार नेशनल डॉक्टर्स डे (National Doctors Day) का दिन 1991 में 1 जुलाई को मनाया था। यह दिन चुनने की एक सबसे बड़ी वजह यह भी है कि इस दिन देश के महान चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉक्टर बिधान चंद्र रॉय का जन्मदिन और पुण्यतिथि दोनों ही होती है।
ऐसे में उनके सम्मान व देश के लिए उनके योगदान को याद करने के लिए हर साल 1 जुलाई के दिन राष्ट्रीय चिकित्सा दिवस को मनाया जाता है। साथ ही, यह बता दें कि इंडियन मेडिकल असोसिएशन (IMA) ने इस दिन को मनाने की शुरुआत की थी।
बच्चों को डॉक्टर्स डे की अहमियत समझाने के कई तरीके हैं। इनमें से कुछ तरीके हम यहां बता रहे हैंः
बच्चों को डॉक्टर बिधानचंद्र रॉय की जीवनी के बारे में बताएं। जब भी बच्चा सोने जाए, तो उसे डॉक्टर बिधानचंद्र रॉय की जीवनी के कुछ किस्से सुना सकते हैं। एक बार में बच्चे को एक ही किस्सा सुनाएं। ताकि हर दिन बच्चों को डॉक्टर बिधानचंद्र रॉय के बारे में एक नई जानकारी दे सकें। ऐसा करने से बच्चे के मन में डॉक्टर बिधानचंद्र रॉय के प्रति सम्मान की भावना बढ़ सकती है। इससे बच्चा जीवन में डॉक्टर्स डे (National Doctors Day) की अहमियत को आसानी से समझ सकता है।
राष्ट्रीय चिकित्सा दिवस (National Doctors Day) का दिन डॉक्टर बिधान चंद्र राय को क्यों समर्पित किया गया है, इसकी भी अपनी एक विशेषता है। डॉक्टर बिधान चंद्र राय अपनी सारी कमाई राशि दान कर देते थे। एक तरह जहां महान क्रांतिकारी देश को गुलामी से बचाने के लिए लड़ाई लड़ते, वहीं दूसरी तरफ डॉक्टर बिधान चंद्र राय फ्री में उनका इलाज करते और दवा का इंतजाम करते थे। इसकी वजह से वे आज भी लोगों के बीच एक रोल मॉडल के रूप में जाने जाते हैं।
वैसे तो भारत में प्राचीन काल से ही वैद्य परंपरा की शुरुआत हो चुकी थी, जिसे आए दिन तकनीक व अन्य अध्ययनों के जरिए और भी बेहतर किया जा रहा है। एक तरफ जहां आज अधिकतर लोग कम खर्च में अधिक आय अर्जित करने वाले रोजगार की तलाश में रहते हैं। तो वहीं, दूसरी तरफ डॉक्टर एक ऐसा पेशा है, जहां पर सालों-साल अधिक लागत की पढ़ाई करनी होती है।
कोरोना के शुरुआती दौर में एक तरफ जहां लोग घरों से बाहर निकलने में भयभीत होते थे, वहीं डॉक्टर दिन-रात बीमार लोगों का इलाज करते हैं। यहां तक की ऐसे कई डॉक्टर्स भी हैं, जो खुद इलाज करते हुए कोरोना की चपेट में आ गए।
भारत की बात करें, तो यहां धर्म और जाति के कई रूप और उनके साथ लोगों का अलग-अलग व्यवहार देखने के लिए मिल सकता है। वहीं, डॉक्टर के पास जब भी कोई बीमारी के इलाज के लिए जाता है, तो डॉक्टर सिर्फ उस व्यक्ति को उसकी बीमारी के आधार पर ही देखते हैं। वे सभी तरह के लोगों को एक ही तरह का इलाज मुहैया कराते हैं। जो हमें सभी मनुष्यों के प्रति बराबरी का नजरिया सिखाने का पाठ भी पढ़ाते हैं।
राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस का इतिहास अपने आप में एक महान यादगार पल है। हालांकि, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि अन्य दिनों की तरह हर कोई इस दिन से पूरी तरह से वाकिफ नहीं है। यही वजह है कि नेशनल डॉक्टर्स डे (National Doctors Day) के बारे में अपने बच्चों को जरूर बताएं।
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