18 Apr 2022 | 1 min Read
Tinystep
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सी सेक्शन से डिलीवरी करवाने के बाद महिलाओं में अनेक मुसीबतें आती हैं। इस पोस्ट में हम सी सेक्शन करवाने के बाद महिलाओं में आने वाले कष्टों के बारे में बात करेंगें।
सी सेक्शन के कारण माँ पर होने वाला असर:
1. इसमें महिला को ठीक होने में ज़्यादा समय लगता है।
2. उनमें संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है क्योंकि उनकी रोग-प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है।
3. उनमें डिलीवरी के दौरान अधिक रक्त स्त्राव होता है।
4. पैर या फेफड़ों में रक्त संचार थमने के कारण खून जमा हो सकता है। पैर या फेफड़ों में गाँठ पड़ सकती है।
5. उनमें सी सेक्शन ऑपरेशन में प्रयोग किये जाने वाले एनेस्थेसिया और निचली प्रक्रिया के चलते अधिक चक्कर, उल्टियां और गम्भीर सर दर्द हो सकता है।
6. काफी ज्यादा कब्ज़ हो जाता है।
7. सर्जरी के दौरान मूत्राशय को हानि पहुँच सकती है।
8. कॉम्प्लीकेशन्स के कारण मौत।
सी सेक्शन से शिशु पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
1. शिशु को ऑपरेशन के वक्त चोट पहुँच सकती है।
2. उसकी गम्भीर स्थिति के कारण नियो-नेटल (नवजात शिशु देखभाल केंद्र) में रखने की ज़रूरत पड़ सकती है।
3. शिशु के फेफड़े अल्पविकसित हो सकते हैं और उन्हें साँस लेने में दिक्कत आ सकती है। ऐसा तब होता है जब शिशु के जन्म की तारीख गलत गिनती जाती है और उसे 39 हफ़्तों से पहले निकाल लिया जाता है।
सिजेरियन सर्जेरी से भविष्य में होने वाले खतरे:
महिलाओं में टांक के निशाँ रह जाते हैं। यह टांकें भविष्य में होने वाली सर्जेरी में और भी गहरे हो जाते हैं।
टांक को ठीक से न सिला जाये तो यह खुल भी सकती है।
हालाँकि अधिकतर महिलाएं सिजेरियन सर्जेरी और प्राकृतिक प्रसूति के बाद ठीक होने लगती हैं परन्तु सी-सेक्शन वाली महिलाओं को अधिक देखभाल और एहतियात बरतने चाहिए। उनको नेचुरल डिलीवरी वाली महिलाओं की तुलना 3 दिन तक रुकना पड़ता है जबकि नेचुरल डिलीवरी वाली महिलाएं 2 दिन में डिस्चार्ज हो जाती हैं।
नेचुरल डिलीवरी में महिलाएं 1 से 4 हफ्ते में ठीक हो जाती हैं जबकि सी-सेक्शन वाली महिलाओं को 4 से 6 हफ्ते लग जाते हैं।
ऑपरेशन चाहे कोई भी हो लेकिन अपना ध्यान आप ज़रूर रखें और इस पोस्ट को अपने दोस्तों में शेयर करें
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