9 May 2022 | 1 min Read
Tinystep
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आप के घर में छोटे बच्चे है तो आप उनके माता पिताओं को एक बात के लिए हमेशा आवर्तीय और छिद्रान्वेषी होते देखेंगे | वो विषय दरअसल बच्चों के प्रतिरक्षा / इम्यूनाइजेशन की बारे में होती है | बच्चों को जो टीकाकरण करवाया जाता है , क्या वह न्यायसंगत है, बच्चों पर वह किस तरह का प्रभाव डालेगा , क्या वह बिल्कुल सुरक्षित है और अगर है भी तो उसका सही दाम कितना होगा , ऐसे ही सवाल हर माँ बाप के मन में कभी न कभी ज़रूर आते हैं | डॉ. नवीन किणी के ही शब्दों में हम यहाँ कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों को एक के बाद एक करके लेंगे और जानकारी हासिल करने की कोशिश करेंगे |
हम सबसे पहले टीके / वैक्सीन कैसे काम करते है, इसे सरलता से समझने की कोशिश करेंगे | मानव शरीर के अंदर एक शानदार क्षमता बनी होती है, जो बाहरी चीज़ो को पहचान कर उनके खिलाफ एक रक्षा कवच खड़ी कर देता है | इसे हम शरीर की रक्षात्मक प्रतिक्रिया या प्रतिरक्ष प्रणाली ( इम्यून सिस्टम ) के नाम से पुकार सकते हैं | आपको अधिक विवरण में न फसाकर यह बता देता हूँ कि हमारे इम्यून सिस्टम सबसे पहले बाह्य पदार्थों को पहचानने का काम करता है | इन बाह्य पदार्थों को हम एंटीजेन कहते है, जिन्हें पहचानने के बाद इम्यून सिस्टम उसे एक प्रक्रिया में डालता है | इस प्रक्रिया के बाद शरीर में रक्षा कवच के रूप में एम्म्युनिशन या एंटीबॉडी को एंटीजेन के ख़िलाफ़ उत्पन्न किया जाता हैं | अगली बार अगर यहीं एंटीजेन शरीर के अंदर प्रवेश करता है तो पहले से तैयार एंटीबॉडी उसपर हमला करता है और उसके हानिकारक प्रभावों से शरीर को बचाता है |
अब इम्म्यूनाईज़ेशन की प्रसंग में इसे देखते है | बैक्टीरिया और वायरस जैसे सूक्ष्म जीव हमारे शरीर के एंटीजेन होते है, जिनके ख़िलाफ़ एंटीबॉडी तैयार होते हैं | आइये अब इम्म्यूनाईज़ेशन के सिद्धांतों पर नज़र डालते हैं | इस सिद्धांत के अनुसार बैक्टीरिया या वायरस को मार कर या तनु (अटेन्युएट) कर शरीर के अंदर घुसाया जाता है | अटेन्युएट करने का मतलब है कि बैक्टीरिया या वायरस की क्षमता को शरीर के अंदर दबाया जाता है पर इम्यून सिस्टम की शक्ति वैसी ही रहती हैं | इम्म्यूनाईज़ेशन के एक और सिद्धांत के अनुसार बैक्टीरिया या वायरस के उप-घटक को ही शरीर के अंदर प्रवेश किया जाता है | हमारे शरीर में एंटीबॉडी उत्पन्न होने के लिए लगभग १ महीना लग जाता है | कम से कम २ , ३ या ४ बार एंटीजेन की मात्रा प्राप्त होने के बाद ही एंटीबॉडी हमारे शरीर में सुरक्षित स्तर पहुँच पाते है | इसी वजह से एंटीजेन को हमारे शरीर से काफी पहले ही परिचित किया जाता है | जब बढ़ते बच्चे सचमुच बैक्टीरिया या वायरस से सामना करते हैं , तब शरीर में एंटीबॉडी की उत्पत्ति पहले से ही शुरु हो गयी होगी | बैक्टीरिया और वायरस जैसे सूक्ष्म जीवों के शक्ति ख़तम कर ये एंटीबॉडी बच्चों को हानी पहुँचने से बचाते हैं | दूसरे शब्दों में कहे तो आपका बच्चा बैक्टीरिया या वायरस के साथ लड़ने के लिए एकदम तैयार हैं |
आइये अब कुछ आम मुद्दों के बारे में चर्चा करते हैं :
अपने बच्चे को एक के बाद एक इंजेक्शन का प्रहार मिलते देख कोई भी माता पिता खुश नही हो सकते | पर सच मानिए , ये टीकाकरण असल में आपके बच्चे की सुरक्षा के लिए ही है | नन्हे बच्चों की बीमारी उन पर अत्यंत विनाशकारी असर छोड़ जाते हैं , इसीलिए उन्हें इन इन्फेक्शन/ संक्रमिक रोगों से लड़ने के लिए हर वो मुमकिन कदम लेने चाहिए | लगभग छे महीने पहुँचते ही माँ बाप अपने बच्चों को घर से बाहर ले जाना शुरु करते है और तभी बच्चे सामाजिक जीवन के अनेक चपेटों से पहली बार अवगत हो सकते हैं | इसी समय में आप अपने बच्चे का अत्यंत ख़याल रखें और उन्हें सामान्य संक्रमिक रोगों से बचाये – यही हमारा मूल उद्देश्य है |
कोई भी टीकाकरण शत प्रतिशत प्रभावशाली नहीं हो सकता | लगभग ८० प्रतिशत तक वह बिलकुल प्रभावी होते हैं , कुछ उनसे ज़्यादा भी और कुछ उनसे कम भी हो सकते हैं | ये भी संभव है कि लगभग २० प्रतिशत बच्चे टीकाकरण के बाद भी उन्हीं रोगों से बीमार पड़े जिनके लिए टीकाकरण किया गया हो, पर उनका असर बच्चे पर बहुत ज़्यादा नहीं होगा | हम यहीं कह सकते है कि थोड़ी मात्रा में भी सुरक्षित होना आख़िर असुरक्षित रहने से सौ गुना ज़्यादा बेहतर है |
हम फिर से यहीं बात दोहरा देते हैं कि कोई भी टीकाकरण शत प्रतिशत सुरक्षित नहीं हो सकता | कई बच्चों में टीकाकरण के बाद प्रतिकूल प्रतिक्रियाएँ भी देखे जा सकते हैं | हमें धन्यवाद इस बात के लिए देना चाहिए कि इनके गंभीर दुष्प्रभाव बहुत ही दुर्लभ है | इनके सामान्य विक्षुब्ध प्रभाव केवल ज्वर , बदन दर्द और कभी – कभी उल्टी और रैशेस तक ही सीमित है | टीकाकरण से संबंधित घातक प्रतिक्रियाओं के बारे में मीडिया विस्फोटों को अगर आपने कहीं देखा या पढ़ा है तो याद रखिए कि यह केवल इंसान की गलती से ही मुमकिन है | टीकाकरण को सही तरह प्रशासित न किया जाए तो उसका बुरा असर पड़ सकता है , पर टीकाकरण अपने में ही हानिकारक नहीं है | टीकाकरण से मिलनेवाली लाभ उसकी प्रतिकूल प्रभावों से काफ़ी अधिक हैं और इसी वजह से कोई भी बच्चा टीकाकरण से पीछे छूटना ना चाहिए |
एक टीकाकरण को विकसित करने के पीछे दशकों की मेहनत छिपी होती है | जो कंपनियाँ इन्हे उत्पादित करते हैं , वे इन वैक्सीन के विकास के लिए अरबों डॉलरों का ख़र्चा करते हैं | इनके सही उत्पादन के लिए भी कई साल लग जाते हैं | यही कारण है कि वैक्सीन उत्पादन करनेवाली कंपनियाँ बहुत कम मिलते है क्योंकि इस उद्यम में कई वैक्सिनों के दाम अधिक मेहेंगी है | वैक्सीन से रोके जानेवाले रोग से अगर कोई बच्चा अनुबंधित हुआ है , तो उसकी इलाज के लिए खर्च अवश्य बड़ी मात्रा में ही होगी | इससे बेहतर यहीं है कि हम अपनी विवेक से बच्चों के टीकाकरण यानी स्वास्थ्य देखभाल में सही निवेश करें | असल में अमरीकी देशों में किए गए लागत लाभ विश्लेषण के अनुसार हर डॉलर जो वैक्सीन के लिए निवेशित हुआ है , उससे स्वास्थ्य ख़र्चों में २ से लेके २७ अमरीकी डॉलरों का बचाव हुआ है | भारत में भी तेज़ी से आजकल यहीं हालात मौजूद हो रहे हैं |
भारत जैसे देशों में कई वैक्सीन इतने अधिक मेहेंगे होते है कि वो जनसंख्या के एक बड़े हिस्से के पहुँच के बाहर होती है | इसी कारण से इन्हें पहले न अनिवार्य वैक्सीन वर्गीकृत भी किया गया था | आम तौर पर सारे वैक्सीन सुरक्षित और काफी प्रभावशाली होते है जिसकी वजह से पश्चिमी देशों में इन्हें नियमित रूप से प्रशासित किया जाता है | अगर पैसा आपके लिए बाधा नहीं है , तो में यहीं सिफ़ारिश करता हूँ कि वर्तमान में उपलब्ध सारे वैक्सीन से अपने बच्चे का टीकाकरण अवश्य करवाए | कोई भी बीमारी पीड़ा सहने लायक नहीं होता और बाद में पछतावे और बुरा महसूस करने के लिए कोई गुंजाईश ना छोड़े |
वैक्सीन की यह ख़ासियत होती है कि वह जीव विशिष्ट होते है | इसीलिए अलग तरह के बैक्टीरिया या वायरस के कारण हुए समान लगने वाले बीमारियों के खिलाफ़ यह वैक्सीन कोई भी रक्षा कवच नहीं दिलाता | एक उदाहरण लेते है – न्यूमोकॉकल वैक्सीन न्यूमोनिया और मेनिनजैटिस को रोकने में सुरक्षा कवच दिलाते है , पर केवल उन चुने हुए न्यूमोकॉकस बैक्टीरिया के खिलाफ जिनके उप-भेद वैक्सीन में शामिल किया हुआ हो | इसके बावजूद भी अनेक प्राण घातक बीमारियाँ जैसे मलेरिया , डेंगू आदि को टीकाकरण से रोकना मुमकिन नहीं हुआ है | इसी वजह से हमारे देश में कई बच्चे अपने जान गवाँते हैं और ऐसे मरनेवालों की संख्या भारी महसूस होती है |
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