6 Apr 2022 | 1 min Read
Tinystep
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राम, पांडव, जारसंध और अन्य लोगों को जन्म।
भारतीय पौराणिक कथाओं में जन्म की दिलचस्प कहानियों की चर्चा की गई है। हमने ऐसे उद्धरण ढूंढ़े है, जहां महान पात्र धरती में अलग तरीके से आए थे। इसमें सबसे सामान्य तरीका था कुछ मीठा या फल खाने के परिणामस्वरूप जन्म देना। हम यह एक बार रामायण के काल और एक बार महाभारत के काल में देखते हैं।
दशरथ अयोध्या के राजा थे, उनकी तीन रानियां थीं लेकिन वह संतान-सुख से वंचित थे। उन्होंने तपस्या की शरण ली और बहुत प्राथना और तपस्या के बाद ब्रह्मा जी के दूत ने उन्हें दैवीय मिष्ठान दिया,जो दशरथ जी को पुत्र देने वाला था। उन्होंने वह मिष्ठान अपनी तीनों रानियों को दिया और वह गर्भवती हो गई और बाद में राम, लक्षमण,भरत और शत्रुघ्न की माता बनीं।इस प्रकार विष्णु जी के दस अवतारों में से एक राम जी का जन्म हुआ।
जयद्रध मगध के राजा थे। जयद्रध के पिता ने पुत्र प्राप्ति के लिए बहुत तपस्या की थी। उनके पिता को ऋषि द्वारा एक जादुई आम मिला। यह कहा गया की उनकी रानी उस फल को खाकर गर्भवती हो जाएंगी। उनके पिता ने फल को दो हिस्सों में बांट दिया और अपनी दोनों रानियों को दे दिया, इसके बाद दोनों रानियों ने आधे-आधे शिशु को जन्म दिया जो,मृत थे।राजा ने दोनों हिस्सों को फेंकने का आदेश दिया। जरा नामकी राक्षसी वहां घूम रही थी, उसने उन दो टुकड़ों को देखा और उन्हें जोड़कर एक कर दिया और शिशु जीवित हो उठा। जरा राक्षसी के सम्मान में शिशु का नाम जयद्रध रखा गया था। शिशु बहुत बलशाली पुरुष बना। उसने 86 राजाओं को हराया और उन्हें कैदी बनाया,सौ की संख्या पूरी होने पर वह उनकी बलि देने वाला था, ताकि वह अमर हो सके और पूरे संसार पर राज करे। राजसोया यज्ञ की सफलता के लिए कृष्ण, अर्जुन और भीम ब्राह्मण का वेश धारण कर के जयद्रध के पास गए और उनमें से किसी एक को चुनकर युद्ध करने की चुनौती दी। उसने श्री कृष्ण को नीच जन्मा कहकर ठुकरा दिया, साथ ही अर्जुन को भी बच्चा समझ कर ठुकरा दिया। उसने भीम को लड़ाई के उपयुक्त समझकर उसे चुना।यह युद्ध 13 दिन से ज्यादा चला और आखिरकार श्री कृष्ण जी के सुझाव पर,भीम ने जयद्रथ को दो टुकड़ों में चीरा और दोनों हिस्सों को विपरीत दिशा में फेंक दिया। इस प्रकार जयद्रथ की मृत्यु भी वैसे ही हुई जैसे उसका जन्म हुआ था।इस प्रकार मगध के राजा को मारकर राजशोया यज्ञ का मार्ग साफ हुआ। इसके बाद युधिष्ठिर ने यह यज्ञ पूरा किया। यह कहानी महाभारत के काल की है।
द्रोण का जन्म एक पोत से हुआ था। ऋषि भारद्वाज ने अप्सरा घृतच्छी को देखकर प्रजनन द्रव उत्पादित किया। उन्होंने इसे एक पोत में संरक्षित किया, इसके बाद द्रोण इस द्रव से विकसित हुए। द्रोण ने बाद में यह दावा किया की वह बिना किसी गर्भ के ऋषि भारद्वाज से जन्मा था। यहां तक की द्रोण की पत्नी कृपी भी गर्भ के बाहर ही जन्मी थी।कृपी और उनका भाई महान धनुर्धर शारदवान के बच्चे थे।इंद्र उससे बहुत डर गया था और अपनी सत्ता को बचाने के लिए उसने अप्सरा को भेजा उनका ब्रह्मचर्य का व्रत तोड़ने के लिए। यह कहानी भी महाभारत से है।
बहुत ही कम लोग जानते हैं की कौरवों का जन्म भी प्राकृतिक नहीं था। गांधारी के सौ पुत्र थे, एक व्यास ने उन्हें सौ पुत्रों का वरदान दिया था।वह काफी समय तक मां बनने में असमर्थ थी और आखिरकार वह गर्भवती हुई लेकिन दो वर्ष तक उन्हें जन्म देने में असमर्थ थी आखिरकार उन्होंने मांस के लोथड़े को जन्म दिया।व्यास ने इस लोथड़े को एक सौ एक टुकड़ों में काटा और बाद में इसमें से सौ पुत्र और एक पुत्री दुश्हाला का जन्म हुआ।
कुंती तीन पांडवों की मां थी।जब वह किशोरी थी , ऋषि दुर्वासा ने उन्हें एक मंत्र दिया जिसके उच्चारण से वह किसी भी देवता से पुत्र प्राप्त कर सकती थी। जब कुंती ने पूछा की उसे यह मंत्र क्यों दिया जा रहा है, तो उन्होंने कहा की यह बाद में उसके जीवन में बहुत काम आयेगा आयेगा। कुंती ने जिज्ञासा के कारण मंत्र पढा और वह विवाह से पूर्व कर्ण की माता बन गई। उसे अपने पुत्र को छोड़ना पड़ा और बाद में उसका पालन-पोषण अधीरथ ने किया था। शादी के बाद कुंती ने इसी प्रकार तीन और पुत्रों को जन्म दिया और यह मंत्र माद्री के साथ बांटा,जो नकुल और सहदेव की मां बनी।
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