26 Mar 2019 | 1 min Read
preet sanghu
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सच मायने में ज्यादातर इसके लिए माता – पिता स्वयं जिम्मेदार होते हैं | वे अपने बच्चों में खानपान सम्बन्धी सही आदतें समय पर नहीं डालते हैं | पेश हैं सबसे पहले एक उदाहरण और उसके बाद उसको सही करने का तरीका –
एक 8 वर्ष बच्ची जिया को कभी तरह-तरह की चीजें खाने का बड़ा शौक था। लेकिन अब खाने के नाम से ही उसका मूड बिगड़ जाता है। इसकी वजह उसके माता-पिता है, जो हर वक्त उस पर कुछ न कुछ खाते रहने का दबाव बनाए रखते हैं। स्कूल जाते समय मां उसे जबरदस्ती कुछ ना कुछ ठोस चीज खिला-पिला देती है। उसके टिफिन में भी इतना खाना होता है, कि वह खत्म नहीं कर पाती, घर लौटते ही मां उसे फिर खाना खाने बिठा देती है। पापा भी ऑफिस से लौटते ही कितना खाया, क्या खाया, जैसे सवालों की झड़ी लगा देते हैं। इसी वजह से वह भोजन से दूर होती जा रही है।
ज्यादातर बच्चे इस समस्या से परेशान हैं। कामकाजी माता पिता अपने बच्चे को पूरा समय नहीं दे पाते हैं, इसलिए उनका सारा ध्यान बच्चे के भोजन की ओर केंद्रित हो जाता है और गड़बड़ी यहीं से शुरू होती है। वह बच्चे पर भोजन के लिए अनावश्यक दबाव डालते हैं, लिहाजा बच्चे का मन भोजन से हट जाता है।
बच्चे के स्वास्थ्य के लिए कितना भोजन आवश्यक है, माता-पिता को इकी सही जानकारी होना जरूरी है। आमतौर पर छह माह का होने पर अन्नप्राशन के बाद ही बच्चे को अनाज खिलाया जाता है, मगर अब बाल विशेषज्ञ चार माह की उम्र से ही शिशु को ठोस आहार देने की सलाह देते हैं। 4 महीने की उम्र से ही बच्चे में खानपान की सही आदत विकसित करना जरूरी है। शुरू के 3 महीने बच्चा पूरी तरह मां के दूध पर निर्भर रहता है ,4 महीने का होने पर उसे दूध के अलावा फलों का रस और थोड़ा अनाज देना शुरू करें।
4 या 6 महीने की उम्र से बच्चे को दाल का पानी, सूजी की पतली खीर , मसला हुआ केला, उबला सेब, संतरा खिलाने से उसकी सेहत अच्छी रहती है। अनाज में चावल से इसकी शुरुआत की जा सकती है। चावल सुपात्र होता है और इसमें सबसे कम एलर्जी के तत्व होते हैं.
पांच या छह महीने का होने पर उसे सब्जियों का सूप, चावल दाल का पानी, या घुटी हुई पतली खिचड़ी दी जा सकती है।
दो-ढाई साल के बच्चे को नई नई रेसिपी बनाकर खिलाएं, ताकि भोजन में उसकी रुचि बनी रहे। दिन में तीन बार उसे कुछ ठोस खाने को दें। बच्चे में भोजन करने की आदत का विकास तभी होता है, जब उसे वक्त पर सही मात्रा में भोजन दिया जाता हो। हर समय खाते रहने की आदत ठीक नहीं होती।
3 से 5 साल के बच्चे को रात में सोते समय दूध पीने को ना दें , उसे सुबह और शाम दो बार ही दूध दें। 3 साल के बच्चे को तीन बार दूध दिया जा सकता है, लेकिन धीरे-धीरे दूध पर उसकी निर्भरता को कम करते जाना चाहिए। उसे ठोंस चीजें खाने की आदत डालें और दूध की मात्रा कम कर दें। उम्र बढ़ने के साथ-साथ उसकी खुराक बढ़ाएं , बच्चे को थाली में भोजन लगा कर दें, भोजन में थोड़ी थोड़ी मात्रा में दाल, चावल, सब्जी, दही, रोटी आदि रखें। ऐसा करने से बच्चा खुद खाना-खाना सीखता है, कई बार मांयें बच्चे को अपने आप इसलिए भोजन नहीं करने देती कि वह खाना गिराएगा , लेकिन ऐसा करना उचित नहीं है.
उनको बाहर का खाना और जंग फूड कम से कम दे। भोजन के बीच में कम से कम 3 से 4 घंटे का अंतराल रखें। उसका भूख को महसूस करना जरूरी है। भूख लगने पर किया गया भोजन ही स्वास्थ्यवर्धक होता है।
अक्सर माता-पिता शिकायत करते हैं कि उनका बच्चा दाल और सब्जी नहीं खाता है, बच्चे में सब कुछ खाने की आदत डाली जा सकती है और हां, इसके लिए काफी प्रयास करना पड़ सकता है।
अनाज, रेशेदार फल और सब्जी न खाने वाले बच्चों में कब्ज की शिकायत पाई जाती है। जिससे उनकी सेहत प्रभावित होती है। माता पिता को यह वहम भी होता है कि उनका बच्चा कुछ नहीं खाता है, जबकि बच्चा अपनी जरूरत भर खा लेता है। बच्चे का पूर्ण शारीरिक विकास तभी संभव है जब वह संतुलित आहार ले रहा हो। 3 से 10 साल के बच्चे का वजन साल भर में 2 किलो और लंबाई 2 इंच बढ़ने का मतलब है कि उसका पोषण ठीक हो रहा है। बच्चे को वक्त पर पौष्टिक भोजन देना उसकी सेहत के लिए सबसे अच्छा होता है।
घर पर अनुशासन बहुत जरूरी है ,अकेले माता पिता के प्रयासों से बच्चे में खाने की सही आदत नहीं डाली जा सकती है. इसके लिए पूरे परिवार को सहयोग करना होगा। यह ना हो कि माता-पिता तो उसे अनुशासित करें, मगर दादा-दादी या नाना-नानी उसकी चॉकलेट या कोल्ड ड्रिंक की फरमाइशें पूरी करते रहें। कई बार बच्चा जिद की वजह से सचमुच ही कुछ नहीं खाता।
ऊपर दिए कुछ आसान तरीकों को अपनाकर आप अपने बच्चों में समय से भोजन करने और सतुंलित आहार का सेवन करने की आदत डाल सकते हैं।
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