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घर ,बच्चे, परिवार और नौकरी ! कैसे बनेगी बात ?

घर ,बच्चे, परिवार और नौकरी ! कैसे बनेगी बात ?

27 Mar 2019 | 1 min Read

Vavita Bhardwaj

Author | 44 Articles

सुबह के ५ पांच बजे के अलार्म के साथ मेरी आँख खुली। दो मिनट लेटे हुए बस यही सोच रही थी की बीते १० सालों में कितना कुछ बदल गया। घर , बच्चे और परिवार की ज़िम्मेदारियाँ निभाते हुए ,मैंने अपना कैरियर और नौकरी सब न्यौछावर कर दिया। बाबा ने बचपन से ही मेरी पढाई के लिए हर वो कोशिश की जिससे मैं अपने पैरों पर खड़ी हो सकूँ और कभी भी मुझे किसी पर निर्भर होने की आवश्यकता ना हो। शादी से पहले तक तो सब ठीक ही था , कॉलेज , दफ्तर की ज़िम्मेदारियाँ बहुत आसान लगती थी। शादी की बात चली तो बाबा ने सबसे पहले यही शर्त रखी थी ,की ऐसा घर परिवार हो जहाँ मेरी नौकरी करने की बात से किसी को कोई तकलीफ ना हो। हुआ भी बिल्कुल ऐसा ही , मेरे ससुराल में किसी को कोई दिक्कत नहीं थी मेरे ऑफिस जाने से।

 

कहना बहुत आसान है मगर शादी के बाद एक औरत के जीवन में आये ढेरों बदलाव और अनगिनत ज़िम्मेदारियाँ ,बाहर जाकर नौकरी करने को बहुत मुश्किल बना देती है। कहने को तो सयुंक्त परिवार मिला सुसराल में , मगर ज़िम्मेदारियाँ बांटने वाला कोई नहीं मिला। कुछ महीने कोशिश की घर और नौकरी दोनों सँभालने की , मगर ज़िम्मेदारियों के चलते और बच्चे के जन्म बाद मैंने नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया।

 

ये सोचते सोचते कब 15 मिनट बीत गए और दूसरे अलार्म की आवाज़ ने मेरा ध्यान ,सोते हुए मेरे दो प्यार बच्चे और पति की तरफ आकर्षित किया और एक मुस्कराहट मेरे चेहरे पर बिखर गयी। देखते देखते बाहर से रीनू की आवाज़ आ गयी , रीनू (मेरी छोटी ननद ) कॉलेज में पढ़ती है। सुबह ६ बजे ही घर से निकलना पड़ता है उसे। उसके पहले ही उसका नाश्ता ,लंच सब तैयार होना चाहिए। घर में हम आठ सदस्य रहते हैं। माँ बाबूजी , मैं मेरे पति , हमारे दो बच्चे ,मेरी ननद और देवर जी। ये घर में सबसे बड़े हैं तो घर की सारी ज़िम्मेदारियाँ मेरे और इनके कन्धों पर ही हैं।

 

रीनू का चाय नाश्ता और लंच पैक करने के बाद ,माँ बाबूजी के चाय का समय हो गया। उनकी चाय से फुर्सत हुई तो बच्चे को स्कूल के लिए तैयार करने की घड़ी की टिक टिक शुरू हो गयी। दोनों उठने में ही आधा घंटा लगा देते ही। उन्हें उठाकर , स्कूल के लिए तैयार किया। इतने में इनकी भी आवाज़ गयी ; अरे सुनती हो ज़रा चाय लाना। बच्चों से फुर्सत होकर अब पतिदेव और माँ बाबूजी और देवर जी की सेवा में लगना था। किसी को नाश्ते में आलू का पराठा खाना था तो किसी दलिया। सब निपटाते निपटाते दोपहर के साढ़े बारह बज गए थे। और सिर्फ एक घंटा था बच्चों के स्कूल से लौटने में। सोचा अब २ मिनट सारे काम छोड़कर एक सुड़की चाय की मैं भी सुकून से भर लूँ। चाय लेकर बैठी ही थी की दरवाज़े की घंटी बजी , पड़ोस में रहने वाली सुषमा आंटी थी। अकसर वो सुबह अपना काम खत्म करके माता जी के पास बैठने आतीं हैं। मैंने अपना चाय का कप रसोई में वापस रखा और दूसरी चाय बनने रख दी।

 

माँ और सुषमा आंटी को चाय देकर मैंने घडी की तरफ नज़र दौड़ाई साढ़े बारह बज चुके थे। मैं फटाफट नहाने चली गयी , बच्चों के आने का समय हो गया था। बच्चो को खाना खिलाकर , उन्हें सुलाया और खुद खाना खाने के लिए बैठी। २ बज गए थे , आधी भूख जा चुकी थी। पहला निवाला हाथ में लिया तो आँखों में आंसूं आ गये , माँ की याद गयी ,कैसे मेरे आगे पीछे घूमकर वो मुझे सबसे पहले खाना खिलाया करती थी। अब तो अपना ख्याल खुद ही रखना है , साथ में बाकि सबका भी। खाना खाकर मैं भी बच्चों के साथ आंख बंद करके लेट गयी। पांच मिनट की हल्की सी झपकी आने लगी थी , मेरे फ़ोन की घंटी बजी ; इनका फ़ोन था। मैंने घड़ी की तरफ नज़र दौड़ाई ३ बजे थे , इस समय उनका फ़ोन अक्सर आता है। मैंने फ़ोन उठाया और बात की , उधर से बस कुछ चंद शब्द बोलने की आवाज़ आयी ” सुनो आज ४ बजे तक बैंक खुला है , तुम उससे पहले ही जाकर चैक जमा करके आओ , अभी चली जाओ ” ….. और फ़ोन कट गया। मैं तो कुछ बोल ही नहीं पायी , सर दर्द कर रहा था , आँखे भी दुःख रही थी। फिर भी हिम्मत करके मैं बैंक गयी और काम खत्म कर वापस लौटी। आँखों की नींद अब जा चुकी थी। बच्चो के उठने का समय हो गया था। शाम को जब ये ऑफिस से लौटे तब मैं रसोई में रात के खाने की तैयारी कर रही थी।

 

ज़रा चाय बनाओगी , बहुत थक गया ; जैसे शब्द मेरे कान में पड़ें। और मैंने चाय का पतीला गैस पर चढ़ाया ,और मन ही मन माँ को याद किया और सोच रही थी एक औरत को थकने का कोई हक़ नहीं खासकर की जब वो एक पत्नी , बहु और माँ बनती है। चाय की चुस्की लेते हुए , वो बोले ” और क्या किया पूरा दिन , तुम्हारा सही है यार घर से बाहर नहीं जाना पड़ता , घर में पूरा दिन आराम से !

 

उनके ये शब्द बहुत देर तक मेरे कानों में गूंजते रहे और सारा काम निपटाने के बाद मैंने अपना किताबों से भरा बैग आज बहुत साल बाद बाहर निकाला। अगले दिन से अपने दिनभर के कामों के लिए एक टाईमटेबल बनाया ,जैसे अब सुबह ८ बजे सबके लिए एक जैसा नाश्ता बनाया , दोपहर के खाने की तैयारी ११ बजे तक हो चुकी थी। जिन आदतों की वजह से मैं खुद के लिए समय नहीं निकाल पा रही थी उनको धीरे धीरे बदलना शुरू किया और हफ्ते भर के बाद मैंने अपने घर पर पड़ोस के २ बच्चों को ट्यूशन देना शुरू किया , धीरे धीरे ये दो बच्चों का ग्रुप कब १० बच्चों के ग्रुप में बदल गया ,पता भी नहीं चला। अब हर रोज़ आत्मग्लानि की भावना मुझे परेशान नहीं करती। मैं अब अपने मन का काम करती हूँ , घर की ज़िम्मेदारियाँ तो जीवन भर चलती हैं , उनकी वजह से खुद के लिए समय निकलना नहीं भूलती।

 

अगर आप भी बाहर जाकर नौकरी नहीं कर पा रही हैं तो अपने किसी हुनर को पहचानना शुरू करें , कोई ऐसा काम जो आपको पसंद हो , उस हॉबी को अपना काम बनाना शुरू करें। धीरे धीरे प्रयास करें , सफलता ज़रूर मिलेगी। यहाँ सफलता का अर्थ केवल आर्थिक संबलता नहीं है , मानसिक संतुष्टि भी है। आज के के समय में घर से ही काम की शुरुआत कर आप अपने मन का काम कर सकतीं हैं।

 

एक दिनचर्या बनाएं और उसका पालन करें। जैसे सुबह के नाश्ते का समय , दोपहर के खाने का मेन्यू पहले से ही बना कर रखें।

 

घर के बाकी सदस्यों से मदद लेने में ना झिझके , जो काम आप अकेले घंटों में कर पाएंगी , वो बाकि सदस्यों की मदद से कुछ मिनटों में कर सकतीं हैं।

 

बहुत सी ऐसी वेबसाइट हैं जो घर से काम करने के अवसर देती हैं जैसे : flexiwork, freelancer.com, ewomen, indeed.com etc.

 

अगर आप नृत्य और संगीत में अच्छी है तो घर पर बच्चों को इसकी क्लास दे सकती हैं।

 

अख़बार पढ़ें, निरंतर तकनीकी में हो रहे बदलावों पर नज़र रखें।

 

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