मैं करूं इंतजार तेरा…

मैं करूं इंतजार तेरा…

14 May 2019 | 1 min Read

जब एक लड़की की शादी होती है तो जाने कितने हसीन ख़्वाब उसकी आंखों में अंगड़ाइयां लेने लगते हैं, जाने कितने अरमान जाग जाते हैं। फूलों वाली डोली में विदा होकर जब वह अपने साजन के घर कदम रखती है तो उसे फूल भी मिलते हैं और कांटे भी। मैं जब नई दुल्हन बनकर ससुराल पहुंची तो क्या सब वैसा ही था जैसा मैंने सोचा था…???

चलिए, मैं आपको शुरू से बताती हूं। मैं मुंबई की रहनेवाली और मेरी शादी हुई गुरुग्राम यानी गुड़गांव में। पांच साल पहले की बात है। मेरा एम बीए खत्म होते ही एक नामी रिएलिटी कंपनी के मार्केटिंग डिपार्टमेंट में मेरी नौकरी लग गई। मेरी मनपसंद नौकरी थी और मैं अच्छा भी कर रही थी। काम करते-करते छह महीने बीत चुके थे। अपनी सैलरी का एक बड़ा हिस्सा मैं खुद पर ही खर्च कर देती थी। सेविंग्स करने की ओर ध्यान नहीं देती थी। सोचती थी कि अभी तो ज़िंदगी शुरू हुई है। पहले सारी इच्छाएं पूरी करूंगी फिर कुछ और। मैंने बड़ी लंबी विशलिस्ट बना ली थी जिसमें एक फ़ॉरेन ट्रिप भी शामिल थी।

सहेलियों के साथ वीकेंड पर जाना, पब-शॉपिंग, मूवी जाना… मैं तो जैसे खुले आसमान में उड़ रही थी। पढ़ाई के दौरान मैं एकदम पढ़ाकू लड़की थी। पढ़ाई के अलावा कुछ और नहीं सोचती थी और जब से नौकरी करने लगी तो जैसे मैं अपने दिल के सारे अरमान पूरे कर लेना चाहती थी। उन्हीं दिनों मेरी एक सहेली रिया ने अपने कलीग आदित्य से शादी कर ली। सच में उनकी शादी में बड़ा मज़ा आया। हम सारे दोस्तों ने मिलकर उन दोनों की शादी की जिम्मेदारियां उठा ली थीं क्योंकि आदित्य इंदौर का रहनेवाला था और रिया मुंबई की थी। शादी के लिए आदित्य के घरवाले मुंबई आए हुए थे। आदित्य के रिश्तेदारों के ठहरने की ज़िम्मेदारी उसके दोस्तों ने उठा ली थी। आदित्य और रिया दोनों हमारे दोस्त थे इसलिए इनकी शादी हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी बन गई थी। शादी में हम सबने खूब धमाल-मस्ती की।

रिया की शादी देखकर अब मुझे भी शादी के ख्याल आने लगे थे। मैं सोचती थी कि शादी के मैं भी रिया की तरह अपना घर बसाउंगी। मैं और मेरे पति दोनों मिलकर जॉब करेंगे और मजे से अपनी गृहस्थी चलाएंगे। हनीमून के लिए कहीं विदेश जाएंगे और मुंबई की मैरिड लाइफ एन्जॉय करेंगे। ये ख्याल आते ही अब मैं अपनी शादी की प्लानिंग करने लगी। मैंने सोचा था कि दो साल कमाकर खूब सारे  पैसे जमा कर लूंगी। मगर सोचा हुआ कभी होता है क्या???

मेरी सारी प्लानिंग धरी की धरी रह गई। मेरे घरवालों को गुड़गांव का एक रिश्ता पसंद आ गया। लड़के के परिवार का कंस्ट्रक्शन का बिजनेस था। वह भी पढ़ाई खत्म करने के बाद परिवार का बिजनेस संभालने लगा था। मुझे जब इस बारे में बताया गया तो पहली बार में यह रिश्ता पसंद नहीं आया। मुझे किसी गुड़गांव-फुड़गांव में शादी-वादी नहीं करनी थी। मैं तो मुंबई की लड़की मुझे तो मुंबई का ही कोई लड़का चाहिए था। पर क्या हमें वो मिलता है जो हमें चाहिए होता है???
प्रणव के परिवार के बारे में मैं जानती थी। वह फूफाजी के किसी रिश्ते में था। सब कुछ ठीक-ठाक ही था तो अगले साल मेरी शादी हो गई। बस मुझे मुंबई छोड़ना पड़ा और अपने सपने। शादी भी बड़े धूमधाम से हो गई, जैसा कि मैंने चाहा था। आठ-दस दिन हो गए थे मगर घर अभी भी रिश्तेदारों से भरा पड़ा था। लोगों का आना-जाना लगा ही रहता था। मुंबई में छोटे परिवार में रहने की आदत थी। यहां इतने सारे लोगों को देखकर घबरा जाती।

रोज काई-न-कोई रस्म चलती रहती। प्रणव से बात करने का मौका भी नहीं मिलता। कभी-कभी मैं झुंझला उठती। सोचा था कि हनीमून पर जाकर पति के साथ फुरसत के कुछ पल बिताने को मिलेंगे। पर एक दिन पहले ही मेरी दादी सास आईसीयू में एडमिट हो गईं। उम्र और शादी की गहमा-गहमी में वे बीमार पड़ गईं थीं। अब अस्पताल के चक्कर…। चाहकर भी मैं और प्रणव अपनी शादी-शुदा जिंदगी शुरू नहीं कर पा रहे थे। एक दिन हम दोपहर में अपने बेडरूम में अकेले थे। टीवी चालू था और गाना आ रहा था-

‘मैं तेनु समझावां की, तेरे बिना लगदा जी… तू की जाने प्यार मेरा… मैं करूं इंतजार तेरा…।‘

गाना इतना रोमांटिक था कि हम दोनों उसी में खो गए…। मैं प्रणव की बाहों में और वह मेरी सांसों में खोने लगा। ऐसा लग रहा था कि पूरा कमरा गुलाब की भीनी-भीनी महक से भर उठा है। हम दोनों प्यार की गहराइयों में डूबने लगे… हम पर नशा छाने लगा… । प्रणव मुझे बेतहाशा चूमने लगा। मैं भी उसके प्यार का जवाब प्यार से देने लगी। आज पहली बार घर में कोई नहीं था। कमरे में थे तो केवल हम दोनों… हमारा प्यार… थोड़ी तन्हाइयां और थोड़ी खामोशियां… हमारे हाथ सरगोशियां करने लगे। थोड़ी ही देर में हम दोनों निर्वस्र थे। दोनों ने जैसे पहली बार एक-दूजे को देखा हो! सच कितने अच्छे लग रहे थे हम दोनों।

प्रणव गाने लगा-

‘खुल्लम-खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों… इस दुनिया से नहीं डरेंगे हम दोनों…’

…. अचानक कोई आवाज़ आई। जैसे कोई घर में आया हो। हम दोनों चौकन्ने हो गए। आवाज़ किचन से आ रही थी। ज़रूर कोई घर में आया होगा। हम दोनों सकपका गए जैसे चोरी करते पकड़े गए हों। जल्दी-जल्दी कपड़े पहन कर मैं बाहर आई। देखा तो सास-ससुर दोनों अस्पताल से लौट आए थे। मैं दौड़कर किचन में पहुंची। तो उस दिन हमारे रोमांटिक मूड की ऐसे बैंड बजी थी।

पूरे पंद्रह दिन ऐसे ही हमारे बीते थे। पति-पत्नी होते हुए भी हम इस माहौल में प्यार करने को तरस रहे थे। नई-नई शादी हुई थी, हमारे अरमान जवां थे … हम दोनों टूटकर प्यार करना चाहते थे मगर टुकड़ों-टुकड़ों में भी प्यार नसीब नहीं हो रहा था। आखिरकार एक महीने बाद हालात सुधरे और हमारे प्यार की गाड़ी निकल पड़ी। आज सोचती हूं तो हंसी आती है। इन पांच सालों में प्रणव ने मुझे इतना प्यार दिया है कि मैं सबकुछ भूल गई हूं… मुंबई को भी। अब कुछ याद रहता है तो प्रणव, उसका प्यार और उसके प्यार की निशानी हमारा नटखट बेटा।

 

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