मेरे पिया गए रंगून…

मेरे पिया गए रंगून…

22 May 2019 | 1 min Read

शादी के बाद पिया का घर ही लड़की का घर होता है। पति का हाथ थाम कर वह नए घर में प्रवेश करती है। नया परिवार, नए लोग इन सबसे ताल-मेल बिठाने में समय तो लगता है। मैं भी अपना शहर छोड़कर अपने ससुराल नए शहर में आई थी। अभी मैं अपने परिवार को जान-परख रही ही थी, अपने पति की पसंद-नापसंद में खुद को ढालने की कोशिश कर रही थी कि एक ईमेल आया और उसने जैसे मेरी खुशी छीन ली…  

 

मेरी शादी को छह महीने हो गए थे। ससुराल में मेरी जिंदगी एक ढर्रे पर आ रही थी।  चाय और नाश्ता बनाने के लिए अब मैंने भी सुबह जल्दी उठने की आदत डाल ली थी। दोपहर के खाने के बाद मैं अपने पति अभिनव से फोन पर ढेरों बातें करती। अभिनव अब टिफिन लेकर जाने लगे थे और लंच करने के बाद जब वे मेरे बनाए खाने की तारीफ करते तो मुझे बहुत अच्छा लगता। मुझे लगता कि जैसे मैं ‘पति के दिल का रास्ता उसके पेट से होकर जाता है…’ की परीक्षा में पास हो गई हूं। अभिनव तीन बहन-भाइयों में सबसे छोटे हैं और मैं भी। मगर हम दोनों की आदतें एकदम से अलग। अभिनव अपना सारा काम खुद करना अच्छा लगता जबकि घर में सबकी लाडली होने के कारण मुझे किसी काम को हाथ लगाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। ससुराल में आकर सारी आदतें बदलनी पड़ती हैं और ससुराल के अनुसार बहू को ढलना पड़ता है। ये बात बहू जितना जल्दी सीख ले उतना ही अच्छा रहता है। धीरे-धीरे मैंने भी सारे तौर-तरीके सीख लिए। मैंने अभिनव का काम भी अपने हाथ में ले लिया। उनके कपड़े प्रेस करने से लेकर उनकी फाइलें भी मैं ही संभालने लगी। मेरी सास भी मुझसे संतुष्ट रहतीं, कभी मुंह पर तो नहीं कहा मगर फोन पर किसी से अपनी तारीफ करते सुना था। और जिठानी कभी-कभी अपनी सीनियॉरिटी का रौब मारती थीं।  

 

अभिनव को शादी एक जिम्मेदारी लगती थी। ऐसा लगता था कि अभी वह पति का रोल निभाने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं। अकेले में वह काफी सहज होते मगर अपने घरवालों के बीच मेरे साथ थोड़ा असहज महसूस करते थे। मैंने धीरे-धीरे उन्हें बताना शुरू किया कि वह अपने आस-पास के लोगों को देखें कि वे अपनी पत्नी के साथ कैसे रहते हैं किस तरह अपनी शादी-शुदा जिंदगी का लुत्फ़ उठा रहे हैं। मैंने उन्हें बताया कि दूर क्यों जाओ अपने घर में ही अपने भाई और जीजाजी को देखो। और सच में अभिनव ने इन सब पर गौर करना शुरू किया। अब धीरे-धीरे अभिनव की झिझक खुलने लगी थी और वह समझ गए कि पत्नी को प्यार करने में झिझकना कैसा? अब अभिनव खुलकर अपनी पत्नी को यानी मुझे प्यार करने लगा। अब मेरी भी खुशी बढ़ने लगी थी। अब मुझे मायकेवालों की उतनी याद नहीं आती जितनी कि पहले आया करती थी।

 

अब अभिनव छुट्टी के दिन बाहर भी ले जाते और मैं पूरे हफ्ते रविवार का इंतजार करती। मैं जल्दी उठकर अपने हिस्से का सारा काम भी निपटा देती। अब अभिनव को मेरी आदत लग गई थी और मैं भी पति के बिना रहने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी। सबकुछ कितना अच्छा लग रहा था। जिंदगी कितनी हसीन हो गई थी। हमें लगता कि ये प्यार भरे पल कभी न बीतें। पर कहते हैं न जैसे ही सब ठीक हो जाता है तो जीवन हमारे सामने एक नई चुनौती रख देता है। तभी एक चुनौती ने हमारी जिंदगी में दस्तक दी और मुझे ऐसा लगा कि किसी ने मुझे हरियाली से रेगिस्तान में पटक दिया हो।

 

उस दिन रविवार था। नाश्ता करने के बाद आदतन मेरे पति ने अपना ईमेल चेक किया तो खुशी से चहक उठे। उन्होंने सबको बताया कि उनका प्रमोशन हो गया है मगर उनकी पोस्टिंग दूसरे शहर में कर दी गई है। सरकारी नौकरियों में ऐसा ही होता है तरक्की के साथ-साथ तबादला भी हो जाता है। घर में सब अभिनव की तरक्की से खुश थे मगर मुझे तो उनका तबादला दिख रहा था। ये एक ऐसी खुशी थी जो मेरे लिए जुदाई का सबब बनकर आई थी। मेरे पति का तबादला दूसरे राज्य में हो गया। मेरा तो रो-रो कर बुरा हाल हो गया कि पति के बिना ससुराल में अकेली कैसे रहूंगी? मेरी बड़ी इच्छा थी कि मैं भी पति के साथ जाती लेकिन मजबूरी ऐसी थी कि चाहकर भी नहीं जा पाई। सासू मां के पैर में फ्रैक्चर हो गया था और उनको मेरा जाना नागवार लग रहा था। इसलिए अभिनव ने अकेले जाने का फैसला लिया। मेरे मुंह से रेशमा का गाया गाना निकलने लगा-

 

‘चार दिनां दा प्यार हो रब्बा… बड़ी लंबी जुदाई…’

 

सच में मुझे इन दिनों विरह के गाने अच्छे लगने लगे थे। अभिनव मुझे टोकते, ‘ये क्या सैड सॉन्ग गा रही हो?’

 

मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे कभी अपने पति अभिनव के बिना अकेले रहना पड़ेगा। एक तो मैं अपने मां-बाप से दूर ऊपर से अब पति भी दूर जा रहे थे, मेरी तो हिम्मत ही टूट गई। ससुराल में रहने का एक ही आकर्षण होता है और वह है पति! अभिनव जब सुबह अपने ऑफिस जाते तो उनके लौटने तक मैं घंटे गिनती रहती और मेरी आंखें दरवाजे पर ही लगी रहती। अब मैं अभिनव के बिना कैसे रहूंगी। सोच-सोच कर ही मुझे रोना आ जाता। और मुझे अभिनव की भी चिंता खाए जा रही थी कि वह अपने घर और अपनी पत्नी से कैसे दूर रह पाएगा? वहां कौन उसका ध्यान रखेगा? इसी चिंता में मैं मरी जा रही थी।

 

आखिर वो दिन भी आ गया जब अभिनव ने नई जगह जाकर ऑफिस ज्वॉइन कर लिया। और जैसा कि अभिनव ने वादा किया था कि वह अपने हर पल की जानकारी मुझे देंगे। ट्रेन में पूरे रास्ते वह मुझसे बातें करते रहे। वीडियो चैट से अपने स्टाफ क्वार्टर का नज़ारा भी दिखाया। रात को हम देर तक बातें करते रहे।

 

घर में मेरा बिल्कुल मन नहीं लग रहा था। मन कर रहा था कि पंख लगा कर अपने अभिनव के पास उड़कर चली जाऊं। पर हरदम मन की थोड़े ही चलती है। उस रात बेडरूम मुझे काटने को दौड़ रहा था और नींद तो जैसे अभिनव के साथ ही चली गई थी। रात मेरी जान की दुश्मन बन गई थी। आंखों के सामने धुंध छा रही थी। कमरे में लगी फोटो में अभिनव मुस्कुरा रहे थे और उसे देख-देख कर मेरे नैना आंसू बरसा रहे थे। रोते-रोते जाने कब मेरी आंख लग गई।

 

सुबह अभिनव के फोन से ही मेरी आंख खुली। उन्होंने मेरी सूजी आंखें देखकर बहुत समझाया और कसम ली कि आगे से मैं नहीं रोऊंगी। फिर गाना गाकर मेरा दिल बहलाया। वीडियो चैट के जरिए मैंने उनके बैग की अनपैकिंग करवाई। और सच में इतनी देर में मैं भूल ही गई कि अभिनव मुझसे कोसों दूर हैं। अब हमने तय किया कि हम इसी तरह समय-समय पर एक-दूसरे से बात करते रहेंगे। और जब भी अभिनव का फोन आता मैं गाती- ‘मेरे पिया गए रंगून, किया है वहां से टेलीफून…’

 

जब दिन में हम दोनों अपने काम में बिज़ी रहते तो एक-दूसरे से चैट करते। कभी-कभी तो मैं उन्हें ईमेल में ढेर सारी बातें लिख देती। सोशल साइट पर भी हम अपनी फोटो अपडेट करते। और हमेशा एक-दूसरे को सरप्राइज़ करने के तरीके ढूंढते। ऐसा लग रहा था कि बिछड़ कर हमारा प्यार और भी परवान चढ़ने लगा है। अब हम एक-दूसरे को ज्यादा समय देने लगे थे और परवाह भी करने लगे थे। कभी-कभी हम दोनों ऑनलाइन शॉपिंग साइट से एक-दूसरे को गिफ्ट भेजते। अब ऐसा लगने लगा कि हम दोनों एक-दूसरे के और भी करीब आ गए हों। इसी तरह एक महीना निकल गया। हमने इसी तरह जीना सीख लिया। और आज टेक्नोलॉजी के जमाने में दूरियां सिमट गई हैं। हम दोनों अब एक-दूसरे से हंसते-मुस्कुराते बात करते और एक-दूसरे को खुश रखने की कोशिश करते।

 

इसी तरह चार महीने बीत गए। आज से नया महीना शुरू हो गया है। बस इसी महीने की बात है। जल्दी ही हमारी जुदाई की घड़ियां खत्म हो जाएंगी, अगले महीने अभिनव को आना ही पड़ेगा। हम दोनों के ससुराल वालों ने, अरे नहीं समझे क्या? मतलब मेरे मायके वाले और ससुराल वालों ने अभिनव के लिए सरप्राइज़ पार्टी रखी है। आप पूछिए भला क्यों? क्योंकि अगले महीने हमारी शादी की सालगिरह जो है! हमारी शादी को एक साल जो हो जाएगा!

 

और अबकी बार अभिनव जो आएंगे तो उन्हें मैं अकेले नहीं जाने दूंगी, मैं भी उनके साथ जाऊंगी। पिया से इतनी लंबी जुदाई भी ठीक नहीं।

 

जीवन में चुनौतियां-परेशानियां तो लगी रहती हैं। उनसे हम जितना दूर भागेंगे वे उतना ही पीछा करती हैं। एक बार उनको स्वीकार कर लो और उनसे दुखी होना बंद कर दो तो जैसे उनका असर कम होने लगता है। मैंने और अभिनव ने जुदाई को स्वीकार कर लिया और दुखी होने को बजाए जो है उसी में खुश रहना सीख लिया। आज हम दोनों अपनी-अपनी जिम्मेदारी को पूरा कर रहे हैं। हमें खुश देखकर हमारे अपने भी खुश हैं।

 

… तो अगले महीने की 15 तारीख को हमारी शादी की सालगिरह की पार्टी में आप भी आइएगा जरूर। तब तक मेरे पिया रंगून से मेरा मतलब कोलकाता से लौट आएंगे। और मैं गाऊंगी- ‘मेरा पिया घर आया हो रामजी…‘

 

बैनर छवि: inc

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