14 Mar 2022 | 1 min Read
Vinita Pangeni
Author | 549 Articles
न्यू मदर्स और पेरेंट्स की लाइफ को आसान बनाने के लिए बेबीचक्रा विभिन्न लेख कारगर पेरेटिंग टिप्स के साथ लेकर आता है। इसी क्रम में आज हम एक सफल मॉम और न्यूट्रिशन एक्सपर्ट का इंटरव्यू लेकर आए हैं। बेबी प्लान कर रही महिलाएं और न्यू मॉम्स इनकी लाइफ से कुछ टिप्स ले सकती हैं।
आइए, जानते हैं डॉक्टर पूजा की न्यूट्रिशन एक्सपर्ट से मां बनने की अब तक की जर्नी कैसी रही और इस दौरान आने वाली परेशानियों का इन्होंने कैसे सामना किया। साथ ही डॉक्टर पूजा द्वारा दिए गए कुछ प्रेग्नेंसी और पेरेटिंग टिप्स भी जानेंगे।
मैं दो शरारती और स्मार्ट लड़कों की माँ होने के साथ ही वर्कहॉलिक हूं। बच्चों के चलते मुझे हमेशा सतर्क रहना पड़ता है। पेशे से मैं मैटरनल केयर और चाइल्ड न्यूट्रिशन एक्सपर्ट हूं। इस क्षेत्र में काम करते-करते मुझे 10 वर्ष से अधिक का समय हो गया है। मुझे तब बहुत अच्छा लगता है जब मेरे 10 साल का अनुभव और ज्ञान किसी के काम आता है।
एक बच्चे का ख्याल रखते हुए दूसरे को गर्भ में पालने का अनुभव एकदम अलग होता है। उस समय मैं अपने बच्चे का ज्यादा ख्याल रखने के साथ ही उसके साथ प्यार से पेश आती थी। बच्चे को कभी-कभी लगता है कि उसकी अनदेखी की जा रही है। इस समय बच्चे के साथ बातचीत करते रहने से समस्या का हल निकल जाता है।
मैं डिलीवरी के दिन नजदीक आते ही सतर्क हो गई थी। इस सतर्कता से ही सुरक्षित डिलीवरी में मदद मिली। स्त्री रोग विशेषज्ञ ने भी इस प्रक्रिया को स्मूद बनाने में मेरी मदद की। किस तरह की डिलीवरी होगी इसपर हमारी पहले ही चर्चा हो चुकी थी। साथ ही वक्त आने पर वो मेरे लिए सही फैसला लेंगे, इसका भरोसा भी मुझे डॉक्टर ने दिलाया था। इन सबके चलते मेरी डिलीवरी अच्छी रही।
हां, बिल्कुल! अगर आपकी दिनचर्या में व्यायाम शामिल है और आपने पूरी तरह तय कर लिया है कि आपके किस तरह की डिलीवरी चाहिए, तो स्त्री रोग विशेषज्ञ से बात करें। डॉक्टर से बात करने पर चीजें बदल सकती हैं। नॉर्मल डिलीवरी के लिए डॉक्टर कुछ जरूरी सुझाव दे सकते हैं। ये न भूलें कि लेबर का दर्द एक तरह की गोल्डन विंडो है, जिसमें दर्द बहुत है, लेकिन इसका फल मीठा है।
विज्ञान की छात्रा होने के कारण, मैं हमेशा इन बताए गए तथ्यों के कारण को पढ़ने की इच्छुक रही हूं। सूर्य ग्रहण कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसे हम रोक सकें। यह प्रकृति है। इसका अनुभव करना या न करना आपकी पसंद है। लेकिन तथ्य यह है कि कुछ मिनटों के ग्रहण से उसे नुकसान नहीं पहुंच सकता, इस दुनिया में आया ही न हो। इसलिए मिथकों पर विश्वास करने से पहले तथ्यों की जांच होनी चाहिए।
मैं उस समय मां बनी जब मेरे साथ के लोग अपने करियर को आगे बढ़ा रहे थे। उस समय मुझे लगा कि कहीं मैंने कोई गलत फैसला तो नहीं लिया। लेकिन, अब मुझे लगता है कि उस कम उम्र वाले आत्मविश्वास के चलते ही मैंने एक फैसला लिया और अपने दिल की सुनी।
मां बनने के बाद मुझे यह समझने में मदद मिली की आत्म संदेह नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, मां बनने के बाद मैंने बच्चों के लिए कुछ कठोर फैसले भी लेने शुरू किए। वो फैसले सही या गलत कुछ भी हो सकते हैं। बस उसे जज करने की जरूरत नहीं है। फ्लो के साथ चलते जाना चाहिए।
हम इक्वल पेरेंटिंग यानी समान पालन-पोषण पर विश्वास करते हैं। हम अपने कर्तव्य, भूमिकाओं व जिम्मेदारियों को लेकर स्पष्ट हैं। इससे बच्चे के साथ हम दोनों को ही एक समान बॉन्ड बनाने में मदद मिली। जब मैं बीमार थी, तो बच्चे की देखभाल करना हो या बच्चों के डायपर बदलना, हर काम में उन्होंने मेरा साथ दिया। मेरे अच्छे और बुरे दिनों के साथी बनकर रहे।
मैं अपने बच्चों को अपने हर कार्य के प्रति जिम्मेदारी लेना सिखाना चाहूंगी। मैं उन्हें बताऊंगी भले ही वो छोटे हैं और चीजें सीख रहे हैं, लेकिन उन्हें अपने किए गए कार्यों की जिम्मेदारी लेनी होगी।
महामारी के कारण ऑनलाइन स्कूल और परिवार के सभी सदस्यों के शेड्यूल को मैनेज करना एक कठिन काम था। कुछ दिन मस्ती भरे थे, कुछ तनावपूर्ण दिन थे। कभी-कभी मुझे गुस्सा आता था तो कभी बेचैनी, लेकिन फिर यह समझ आया की यह सब अस्थायी है और चीजें जल्दी बेहतर हो जाएंगी।
ऑनलाइन लर्निंग मददगार होती है, क्योंकि देखने से अक्सर जल्दी सीखने में मदद मिलती है और बच्चे कॉन्सेप्ट भी बेहतर तरीके से समझ पाते हैं। लेकिन, लंबे स्क्रीन टाइम की वजह से बच्चों में कम उम्र से ही आंखों की रोशनी संबंधी दिक्कत होने लगती है।
शिशु की जरूरतें आप से ही पूरी होती हैं, इसलिए अपना भरपूर ख्याल रखें। अच्छा खाएं, अधिक मात्रा में तरल पदार्थ का सेवन करें और बच्चे के साथ ही खुद पर प्यार जताएं। यह आपके और आपके बच्चे का समय है। इस समय बच्चे पर पूरी तरह से ध्यान दें। इससे आपके बच्चे के साथ आपका गहरा रिश्ता बनेगा।
गर्भावस्था का अनुभव हर किसी के लिए अलग हो सकता है। सुनिश्चित करें कि प्रेग्नेंसी के दौरान आप खुद को फिट रखें। ऑफिस में कठिन दिन हो या घंटों तक बैठना पड़े, शरीर को थोड़ा स्ट्रेच करके लंबे समय तक काम करने का तनाव कम हो सकता है। कुछ देर सहकर्मी के साथ टहलने से ताजगी का एहसास होगा।
इस दौरान बैग में फल, भुना हुआ चना, मखाना को स्नैक्स की तरह इस्तेमाल करने के लिए रखा जा सकता है। ये ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करते हैं। इनके साथ ही ठंडा पानी, छाछ और नारियल पानी भी तरोताजा महसूस कराने में मदद करेंगे।
बच्चे के पालन-पोषण में इक्वल पेरेंटिंग महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। किसी भी काम के बीच में फंस जाए या लगे परेशानी होने वाली है, तो अपने जीवनसाथी से बात करें। जिम्मेदारियों को साझा करना समय की मांग है और बच्चे जब आपको ऐसा करते देखेंगे, तो वो भी इसे सीखेंगे। हफ्ते भर का किचन मेनु पहले ही तैयार कर लें। इससे ऑफिस के साथ ही किचन के काम को मैनेज करने में मदद मिलेगी।
मेनु बनाते समय बच्चों की जरूरतों का भी ध्यान रखें और खुद को और पार्टनर को जो खाना पसंद है, वो भी प्लान करें। इसी के साथ काम भी बांट लें। जिम्मेदारियां साझा करने से पेरेंटिंग मजेदार लगने लगती है।
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