20 May 2022 | 1 min Read
Vinita Pangeni
Author | 549 Articles
मदरहुड कुछ महिलाओं को जीने की वजह देती है, तो किसी के करियर को नई दिशा। जी हां, सबकी प्रेग्नेंसी और पैरेंटिंग सफर में कुछ नया व कुछ अलग होता है। इस समय सभी महिलाएं अलग चुनौतियों से गुजरती हैं और उससे डील करने का तरीका भी सबका अलग होता है। इस नौ महीने के सफर और पैरेंटिंग जर्नी से दूसरी महिलाएं भी काफी कुछ सीख सकती हैं। इसलिए आज हम ब्लॉगर सलोनी बांगा का इंटरव्यू आपके लिए लेकर आए हैं।
सलोनी बांगा मथूरा में रहती हैं। इनकी एक 7 साल की बेटी है और एक 3 साल का बेटा है। पेशे से सलोनी माइक्रोब्लॉगर हैं। वह फनी, प्रेरणादायक और एजुकेशनल वीडियो बनाती हैं। माइक्रोब्लॉगर सलोनी बांगा के अधिकतर वीडियो इनके खुद के जीवन से प्रेरित होते हैं। माइक्रोब्लॉगिंग से पहले सलोनी एक पीआर कंपनी में काम करती थीं।
आइए, आगे सलोनी बांगा के जीवन के दिलचस्प पहलू जानते हैं और उनसे कुछ पैरेंटिंग और प्रेग्नेंसी टिप्स लेते हैं।
दो बच्चे होने के बाद मैं एक दम लॉस्ट हो गई थी। वो दौर कोविड के लॉकडाउन का था। मुझे ट्रैप्ड महसूस हुआ और लगा कि मेरी पहचान खोती जा रही है। तभी मैंने अपनी क्रिएटिव एनर्जी की मदद लेते हुए वीडियो बनाना शुरू किया। मैंने हमेशा से खुद ही अपने बच्चों का लालन-पालन किया था।
मैं किसी नैनी की मदद लेना नहीं चाहती थी, इसलिए बच्चों के साथ रहते हुए ब्लॉगिंग करियर में आगे बढ़ने की मैंने सोची। मैं सिर्फ वीडियो नहीं बनाती, बल्कि अपनी फीलिंग और एक्सपीरियंस को वीडियो के माध्यम से जाहिर करती हूँ। अपने जीवन के कुछ कड़वे अनुभव होते हैं, जो मुझे वीडियो बनाने के लिए प्रेरित करते हैं।
मैं ये भी कहना चाहूंगी कि एक मदर की इंट्यूशन कभी गलत नहीं हो सकती। आप खुद के और अपने बच्चे के लिए हमेशा वही करें, जो आपको लगता है सही है। अपनी या अपनी पैरेंटिग की खुद की तुलना दूसरों से एकदम न करें। एक माँ अपने बच्चे के लिए कभी गलत फैसला नहीं ले सकती।
मेरी पहली प्रेग्नेंसी और दूसरी प्रेग्नेंसी में जमीन आसमान का अंतर था। मैं पहली बार शादी के तुरंत बाद 27 की उम्र में माँ बनी थी। उस समय नई जिम्मेदारियों को समझने के साथ ही गर्भावस्था को संभालने का प्रेशर था। मैं दूसरी बार मैं 31 की उम्र में माँ बनी थी।
मैं अपनी पहली प्रेग्नेंसी में काफी सुस्त थी। मुझे तीन-चार महीने तक कुछ खाने का मन नहीं करता था। उस समय मुझे लहसुन और काफी अन्य भोजन से घृणा (Food aversion) थी। लेकिन दूसरी प्रेग्नेंसी में ऐसा कुछ नहीं था।
हां, दूसरी प्रेग्नेंसी में मुझे बहुत ज्यादा मॉर्निंग सिकनेस होती थी। प्रसव पीड़ा से एक दिन पहले तक मैं उल्टियां कर रही थी। मैं आयरन सप्लिमेंट नहीं ले पाती थी, क्योंकि मॉर्निंग सिकनेस आयरन के कारण और बढ़ जाता था।
रोजमर्रा की जिंदगी की बात करूं, तो मैं दूसरी प्रेग्नेंसी में बहुत एक्टिव थी। मैंने अपनी पूरी प्रेग्नेंसी में घर के काम-काज किया करती थी। बस मेरी मुश्किलें उल्टियों ने बढ़ा रखी थीं।
मैं हर दो घंटे में कुछ-न-कुछ खाती थी। इससे मुझे काफी राहत मिलती थी। सुबह उठते ही मैं सबसे पहले ब्रश करके कुछ खा लेती थी। चाहे केला हो, एक टोस्ट हो, सुखे हुए बादाम हो या कुछ और। ये एसिड लेवल को बैलेंस करने में मदद करते थे। इससे मुझे काफी मदद मिली।
इसके अलावा, अदरक और अदरक का अचार भी मेरे काफी काम आया। अदरक मेरे मुंह के स्वाद को बेहतर करता था, उल्टियों से राहत दिलाता था और ब्लोटिंग को कम करता था। इन सबके साथ ही डॉक्टर द्वारा सुझाई गई कुछ दवाओं का सेवन भी मैं करती थी।
मेरी दोनों डिलीवरी सी-सेक्शन थी। मैं पहले बच्चे के समय में नॉर्मल डिलीवरी की उम्मीद कर रही थी। लेबर के 16 घंटे के बाद लास्ट मिनट में डॉक्टर ने सिजेरियन डिलीवरी करने का फैसला किया। ये मेरे लिए काफी चौंकाने वाला था। हम सिजेरियन डिलीवरी के लिए तैयार ही नहीं थे, क्योंकि हमने नॉर्मल डिलीवरी की ही उम्मीद की थी।
सिजेरियन डिलीवरी को लेकर सोसाइटी में धारणा है कि अच्छी माँ वही कहलाती है, जो सामान्य तरीके से बच्चे को जन्म देती है। हालांकि, मेरे दोस्तों ने मुझे समझाया था कि बच्चा नॉर्मल डिलीवरी से हुआ है या सिजेरियन डिलीवरी के माध्यम से, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
लेकिन, मैं इस हदतक नॉर्मल डिलीवरी चाहती थी कि मुझे पोस्टपार्टम डिप्रेशन हो गया था। मैं लगातार रोती रहती थी कि आखिर क्यों मेरी डिलीवरी नॉर्मल नहीं हुई। मेरा दिमाग बिल्कुल भी सिजेरियन डिलीवरी को एक्सेप्ट नहीं कर पा रहा था।
दूसरी बार मैंने अलग लेवल के चैलेंज फेस किए थे। मैं प्रेग्नेंसी के आखिरी समय में एकदम लो एनर्जी फील करती थी, क्योंकि हरदम मेरी बेटी मेरे साथ रहती थी। उसका ख्याल रखते-रखते और दिनभर एक्टिव रहते हुए मैं आखिर में ड्रेन फील करने लगी। अपनी बेटी के साथ हॉस्पिटल जाकर सिजेरियन सेक्शन के जरिए बच्चे को दुनिया में लाने का अलग ही प्रेशर कहिए या टेंशन कहिए, वो अलग ही फीलिंग थी।
मैं चार दिनों तक हॉस्पिटल में थी और स्पंज बाथ ले रही थी। मैंने छठवें दिन में डॉक्टर की इजाजत के बाद नहाई थी। 14 से 16 दिनों में टांके सूख गए थे, लेकिन इस दौरान मैंने पूरा ख्याल रखा कि टांके गिले न हों। मैं नहाते समय टांकों को पॉली से ढक कर रखती थी।
मैं हमेशा ध्यान रखती थी कि मैं झटके से न उठूं, क्योंकि इससे टांकों पर असर पड़ता है और दर्द बढ़ने लगता है। मैं साइड टर्न लेकर उठती थी। मुझे बार-बार खुद को साइड टर्न लेकर उठने की याद खुद को याद दिलाती थी। मैं पेट पर किसी तरह का दवाब पड़ने नहीं देती थी और पेट के बल बिल्कुल भी नहीं लेटती थी। टांकों पर लगाने के लिए मुझे ऑइनमेंट भी मिला था, जिसे मैं समय-समय पर लगाती रहती थी।
प्रेग्नेंसी ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। मैं एक बेहतर इंसान बन गई हूँ। मैं अब अपना बेटर वर्जन हूँ। मेरी प्रेग्नेंसी एक ब्लेसिंग थी। मैं पहली गर्भावस्था के बाद से चीजों के प्रति ज्यादा जागरूक हुई हूँ। मेरा लोगों के साथ व्यवहार और भी बेहतर होता गया।
पहले मैं चीजों को सिर्फ काले और सफेद दो ही रंगों में देखती थी। लेकिन प्रेग्नेंसी के बाद मुझे यह पता चला कि चीजें सिर्फ व्हाइट और ब्लैक नहीं, बल्कि ग्रे भी होती हैं। मैंने चीजों को अलग तरीके से देखना और समझना शुरू किया है।
प्रेग्नेंसी के बाद मैंने चीजें जैसी हैं वैसी ही स्वीकारना शुरू किया है। मैंने समझा कि परिस्थितियां मेरे लिए बदलने नहीं वाली हैं, इसलिए मुझे उसे एक्सेप्ट करना होगा। साथ ही बच्चे जैसे हैं उन्हें मुझे वैसा ही एक्सेप्ट करना होगा। एक्सेप्टेंस लाइफ में बहुत जरूरी है। ये लाइफ को आसान बना देती है।
मदरहुड ने मुझे काफी ज्यादा साहस दिया है और सेल्फ डिपेंडेंट बनाया है। मैं खुद से फैसले लेने सीख गई हूँ और मुझे यह समझ आ गया है कि मुझे फैसले लेने के लिए किसी दूसरे की जरूरत नहीं है। मैं खुद से चीजों को मैनेज कर सकती हूँ और फैसले ले सकती हूं।
हां, बहुत बार। मदरहुड के साथ सबसे अचंभी बात यह है कि आप कभी यह नहीं कह सकते कि मैं अपनी ड्यूटी नहीं करूंगी। मैं आज माँ नहीं हूं, मेरी आज छुट्टी है। ऐसा मैं नहीं कह सकती हूं। आप 24×7 मदर हैं और उस रोल को निभाती हैं, तो ये फीलिंग काफी आती है।
खासकर तब जब मैं कोई काम समय पर खत्म नहीं कर पाती हूं। जैसे कि मैं कुछ काम कर रही हूं और बच्चा बार-बार बुलाता है, तो उस काम को छोड़ना पड़ता है। फिर घर में बिखरे हुए खिलौने कई-कई बार उठाने होते हैं और पहले वाला काम छूट जाता और मैं दूसरे काम में लग जाती हूं। तो मन में ऐसा ख्याल आने लगता है कि मैं ठीक से एक काम भी पूरा नहीं कर पा रही हूं, क्या मैं फेलियर हूं। अब मुझसे आगे नहीं हो पाएगा।
देखिए माँ होने के कारण मुझे दोनों बच्चों को अपनी बराबर समय और प्यार देना होता, परिवार को मेरा समय चाहिए और मैं खुद अपने लिए भी समय चाहती हूं। जब इन सारी चीजों का बैलेंस नहीं बन पाता है, तो मन में होने लगता है कि अब मुझसे कुछ नहीं हो पाएगा।
मेरी इस फीलिंग से मुझे बाहर निकालने में मेरे पति मदद करते हैं। वो मुझे अच्छे से सुनते हैं और कहते हैं कि सब ठीक हो जाएगा। अगर नहीं हो रहा है, तो छोड़ दो। वो हमेशा यही बात दोहराते हैं, लेकिन अच्छा लगता है कि मुझे कोई सुनने वाला है। इसके साथ ही मैं मोटिवेशनल पॉडकास्ट भी सुनती हूं। जय शेट्टी, बीके शिवानी मेरा फेवरेट है। मैं कभी-कभी दोस्तों से बात कर लेती हूं।
मेरी पहले प्रेग्नेंसी में पैरेंटिंग आसान थी। दूसरी प्रेग्नेंसी के बाद पैरेंटिंग मुश्किलों भरी हो गई है। दो बच्चे और दोनों की अलग-अलग बातें, दोनों का ध्यान रखना, ये सब थोड़ा मुश्किल होता है।
खासकर इसे लॉकडाउन ने मुश्किल बनाया। कहीं बाहर नहीं जाना, सिर्फ घर में ही रहना, इन सबके चलते चीजें कठिन लगने लगती हैं। अब स्कूल खुल चुके हैं और लॉकडाउन जैसा कुछ नहीं है, तो चीजें थोड़ी बैलेंस हो रही हैं।
हां, मैं कहना चाहूंगी कि इन सबमें मेरे पति मेरा बहुत सपोर्ट करते हैं। वो व्यस्त रहने के बावजूद हमेशा बच्चों के लिए समय निकालते हैं। उन्हें नहलाना हो, उनके लिए ब्रेकफास्ट बनाना हो, वो किसी काम में पीछे नहीं रहते। यहां तक की बच्चे के डायपर भी वो बदलते हैं। बेटी को रोज स्टोरी सुनाकर वो सुलाते भी हैं।
मैं चाहती हूं कि नंबर के पीछे भागने वाला सिस्टम खत्म हो जाए। नंबर और ग्रेड से किसी बच्चे की प्रोगेस को आंकना नहीं चाहिए। लाइफ लेसन सिखाने वाली एजुकेशन होनी चाहिए। बच्चे को यह समझाने वाली एजुकेशन होनी चाहिए कि लाइफ प्रोडक्टिव होनी चाहिए।
इंसान को ब्यूटीफुल लाइफ जीने की कला सिखाने वाली और उसमें ह्यूमन वैल्यू भरने वाली शिक्षा प्रणाली हो, तो बेहतर होगा। मेरा मानना है कि सभी बच्चों के लिए होम साइंस, जिसमें कूकिंग, न्यूट्रिशन, ह्यूमन डेवलपमेंट जैसी चीजें सिखाई जाती हैं, अनिवार्य होनी चाहिए।
मैं चाहती हूं कि मेरे बच्चे मेरे पति से ऑर्गेनाइजेशन सीखें। मैंने जो खुद प्रेगनेंसी के बाद सीखा है एक्सेप्टेंस, ये भी मैं चाहूंगी कि मेरे बच्चे सीख लें। इनसे बच्चे की लाइफ आसान हो जाती है।
इन सबके अलावा मैं चाहूंगी कि बच्चे यह सीख लें कि फैमिली ही सबसे ज्यादा जरूरी है और उनके लिए सबसे सुरक्षित जगह उनका अपना घर और उनका परिवार है। साथ ही मैं चाहती हूं कि मेरे दोनों बच्चे एक दूसरे के बेस्ट फ्रेंड हों। वो एक दूसरे से हर बात शेयर करें।
हां, जब बच्चा छोटा होता है, तो उसे चीजों से बचाए रखना पड़ता है ताकि उसे चोट न लगे। लेकिन अब जैसे-जैसे बच्चे बड़े हो रहे हैं मैं एकदम अपनी पैरेंटिंग स्टाइल बदल देती हूं। बेटी के साथ भी मैंने ऐसा ही किया था और बेटे के साथ भी कर रही हूं। मैं खेल-खेल में उन्हें घर के कामों में इन्वॉल्व करती हूं। इससे वो अपने काम खुद से करने लगते हैं और उनके मन में ये भाव नहीं आता है कि घर का काम सिर्फ मम्मी को ही करना है।
साथ ही बच्चे के इमोशन को मैं शट नहीं करती हूं। मैं ये नहीं कहती हूं कि आप रो नहीं सकते, दुखी नहीं हो सकते या गुस्सा नहीं हो सकते। मैं उन्हें प्यार से उस इमोशन के बारे में समझाती हूं या उसका कारण पूछती हूं। बढ़ते बच्चों को लेबल करने से भी बचना चाहिए। मैं कभी नहीं कहती कि मेरा बेटा शर्मिला है, अच्छा है, बुरा है, नखरीला है या कुछ और। ऐसा कहना उनके बढ़ते दिमाग के लिए अच्छा नहीं है।
बच्चा जब गुस्से में कुछ चीजें फेंक देता है, तो मैं कुछ देर बाद उसे समझाती हूं कि आपने इसे तोड़कर गलत किया। इससे हम सबका नुकसान हुआ है। आप अपनी फीलिंग को बातों को जरिए अच्छे से समझा सकते थे। इससे धीरे-धीरे उसमें सेंस ऑफ रिसपॉन्सिबलिटी आ रही है। मैं बच्चों को अभी से सिखाने लगी हूं कि वो अपनी लाइफ में जो भी करते हैं, उन्हें उसे Own करना होगा। हर लिए गए फैसले से होने वाले अच्छे और बुरे परिणाम की जिम्मेदारी उनकी ही बनती है।
गर्भावस्था में और प्रसव के बाद लोगों से मदद लें। सबकुछ खुद करने की मत सोचे, क्योंकि ऐसा करना प्रैक्टिकली संभव नहीं है। अगर आप ऐसा करती है, तो खुद पर काफी भार डाल रही हैं, जो कहीं-न-कहीं आपको अंदरूनी रूप से नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए, बेझिझक आगे बढ़कर कामों के लिए मदद मांगें।
कुछ अच्छी किताबों को पड़ें, पार्क, रिवर जाएं मतलब आप खुद को प्रकृति के करीब रखें। अपने आप और अपनी प्रेग्नेंसी को लेकर हर समय अच्छा सोचते रहें। प्रेग्नेंसी में खुद को एक्टिव रखें। आप प्रेग्नेंसी से जुड़े सेल्फ हेल्प बुक भी पड़ सकती हैं। इससे पॉजिटव अप्रोच मिलती है। मदर ग्रूप और मदर कम्यूनिटी के साथ जुड़ सकते हैं।
मदरहुड शुरू होने के बाद खुद के लिए भी समय निकालें। ऐसा नहीं है कि मदरहुड शुरू हो गया है, तो सिर्फ यही आपकी जिंदगी है। अपने लिए पर्सनल स्पेस भी जरूरी है। अपने लिए समय निकालें, खुद के साथ एकांत में समय बिताएं और जैसे आप दूसरों को प्यार देती हैं, वैसे ही खुद पर भी प्यार लुटाएं।
महिलाएं जिम्मेदारियों के चलते खुद पर हार्श होने लगती हैं। इससे बचें और जब लगे कि जिम्मेदारियों बढ़ रही हैं, तो उसे अपने पार्टनर और घर के अन्य सदस्यों के साथ बांट लें।
पैरेंटिग के लिए माँ को अपने आप को शांत रखना होता है। इसके लिए हर माँ को योग करना चाहिए। मैं रोजाना 10 से 20 मिनट तक योग जरूर करती हूं, ताकि मैं शांति से अपने बच्चों के साथ पेश आ सकूं।
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