15 Jun 2022 | 1 min Read
Vinita Pangeni
Author | 549 Articles
शिशु के दूध दांत और बच्चे के ओरल हेल्थ को लेकर लोगों में बहुत सारे भ्रम हैं। इन सभी भ्रामक बातों की सच्चाई आज हम इस लेख में लेकर आ रहे हैं। बच्चों के दांतों के दांत और ओरल हेल्थ को लेकर मुंबई बांद्रा की पीडियाट्रिक डेंटिस्ट, डॉ. खुशबू सहगल छबलानी मिथक के बारे में बता रही हैं। उन्होंने तर्क के साथ सभी मिथक की सच्चाई बताई है। चलिए, इन्हें पढ़ते हैं –
छोटे बच्चों के मुंह व दांतों की सफाई को लेकर कई सारी गलत बातें प्रचलित हैं। हम एक-एक करके उनकी सच्चाई आपके सामने लेकर आएंगे। यहां बताई गई सारी बातें डेंटिस्ट खुशबू सहगल ने बेबीचक्रा के साथ साझा की हैं –
मिथक-1.दूध के दांत जरूरी नहीं होते हैं, उन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है
नहीं, दूध के दांत में डैमेज होने से वो पक्के दांत को नुकसान पहुंचा सकता है। पीडियाट्रिक डेंटिस्ट, डॉ. खुशबू सहगल छबलानी बताती हैं कि मसूड़ों के बाहर दूध के दांत होते हैं और अंदर पर्मानेंट दांत। दूध के दांत फाउंडेशन मिरर की तरह काम करते हैं। अगर इनमें कैविटी या कुछ और हो जाता है, तो सीधे असर मसूड़ों के अंदर के दांत पर होता है।
इससे भी बड़ी बात यह है कि अगर बच्चे के दूध के दांत हेल्दी नहीं होंगे या सड़ जाएंगे, तो बच्चा सही से खाना चबा नहीं पाएगा। इसके कारण बच्चा खाने बिना चबाए निगल लेगा और इससे पाचन संबंधी दिक्कतें हो सकती हैं। आगे डॉक्टर खुशबू बताती हैं कि मिल्क टीथ से आगे के दांत खराब हो जाते हैं। इससे सीधे बच्चे का आत्मविश्वास कम हो सकता है। क्योंकि, हर बच्चा एक अच्छी स्माइल चाहता है, जिसके लिए दांतों का अच्छा होना जरूरी है।
मिथक-2. दूध के दांत का ट्रीटमेंट जरूरी नहीं है
ऐसा बिल्कुल नहीं है, दूध के दांत को ट्रीटमेंट की जरूरत होती है। उसके दांतों में इंफेक्शन हो जाए, तो उसे दिक्कत हो सकती है। बच्चा दांतों से जुड़ी दिक्कत के बारे में नहीं बता पता है कि दांत में कुछ दिक्कत है। इसलिए बच्चे को डेंटिस्ट के पास ले जाकर समय-समय पर चेकअप करना जरूरी है।
मिथक-3.बच्चे को कभी डेंटिस्ट की जरूरत नहीं होती
नहीं, छोटे बच्चा जब एक साल की उम्र पूरी कर लेता है, तो उसे डेंटिस्ट पास लेकर जाना चाहिए। इससे बच्चे के माउथ को चेक करके बताया जाता है कि बच्चे का मुंह ठीक से साफ हो रहा है या नहीं। साथ ही दांत, मसूड़ों और जीभ से जुड़ी की सफाई से जुड़ी दिक्कत तो नहीं हो रही है।
इनसे जुड़े टिप्स भी डॉक्टर बता सकते हैं। बच्चे के मसूड़ों में कई बार कुछ स्पॉट्स दिखते हैं, जिनसे जुड़ी जानकारी डेंटिस्ट दे सकते हैं। यही नहीं, बच्चा कोई दवाई या कफ सिरप या कुछ और ले रहा है, तो उससे मसूड़े या दांतों पर होने वाले प्रभाव के बारे में बताया जा सकता है।
मिथक-4. बच्चे को किसी भी डेंटिस्ट या डेंटल क्लिनिक लेकर जा सकते हैं
नहीं, बच्चे को पीडियाट्रिक डेंटिस्ट के पास ही लेकर जाना चाहिए। दरअसल, सामान्य डेंटल क्लिनिक किड्स फ्रेंडली नहीं होते हैं। लेकिन, पीडियाट्रिक डेंटिस्ट में बच्चों के हिसाब से माहौल बनाया जाता है। आसपास उसे खिलौने दिखते हैं। अच्छी खुशबू, कार्टून जैसी बहुत चीजें होती हैं।
मिथक-5. चॉकलेट न खाने वाले बच्चे को कैविटी नहीं होती
चॉकलेट ज्यादा खाना खराब होता है, लेकिन सिर्फ चॉकलेट ही कैविटी का कारण नहीं होता है। खाने में शुगर जो होता है, वो कैविटी को बढ़ाता है। जंक फुड जैसे चिप्स, बर्गर, पिज्जा, पास्ता, ड्राई स्नैक्स या अन्य चीज जब मुंह के हेल्दी बैक्टीरिया के संपर्क में आते हैं, तो एसिड रिलीज करता है। जंक फूड ज्यादा एसिड बनाते हैं। मुंह जब इनकी वजह से ज्यााद एसेडिक हो जाता है, को कैविटी होती है।
मिथक-6.डेंटिस्ट ट्रीटमेंट दर्दनाक होता है, बच्चा उसे सहन नहीं कर पाएगा
ऐसा नहीं है, पहले की डेंटिस्ट तकनीक और अभी में काफी फर्क है। पहले डेंटिस्ट पुराने अप्रोच का इस्तेमाल करते थे और टेक्नोलॉजी भी उतनी डेवलप नहीं थी। लेकिन अब तकनीक ने काफी तरक्की की है। साथ ही चाइल्ड फ्रेंडली क्लिनिक होने से भी बहुत। इसलिए, बच्चे के डेंटिस्ट ट्रीटमेंट को लेकर डरना सही नहीं है। हां, अगर बच्चे को गंभीर इंफेक्शन है, तो उसे दर्द होगा। वरना समय-समय पर चेकअप करना बिल्कुल भी डरावना नहीं है।
मुंबई बांद्रा की पीडियाट्रिक डेंटिस्ट, डॉ. खुशबू सहगल छबलानी, अपने आठ साल के अनुभव से बताती हैं कि कई बार माता-पिता बच्चे को पांच-छह साल तक भी डेंटिस्ट के पास लेकर नहीं जाते हैं। इससे मसूड़ों को दिक्कत हो सकती है।
लेकिन, ऐसा न सोचें कि हम आज तक बच्चे को डेंटिस्ट के पास नहीं लेकर गए हैं, तो अब लेकर जाने का क्या फायदा। भले ही थोड़ा लेट हो गया हो, लेकिन डेंटिस्ट के पास कभी नहीं जाने से अच्छा है कि जैसे ही आप जागरुक हो जाएं बच्चे को डेंटिस्ट के पास लेकर जाएं।
ध्यान दें कि बच्चे के दांतों को स्वस्थ रखने के लिए तीन साल की उम्र तक उन्हें मीठा देने से बचें। अगर यह संभव नहीं हो, तो कम-से-कम दो साल की उम्र तक बच्चे को मीठी चीजें नहीं देनी चाहिए।
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