15 Jun 2022 | 1 min Read
Vinita Pangeni
Author | 549 Articles
पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम को पीसीओस कहा जाता है। यह ऐसी स्थिति है, जो हार्मोन्स में असंतुलन के कारण होती है। तकरीबन 30 से 50 प्रतिशत महिलाओं को पीसीओएस उनकी रिप्रोटक्टिव यानी प्रजनन आयु में प्रभावित करता है। पीसीओएस के साथ प्रेग्नेंसी कैसे संभव है और इससे क्या-क्या दिक्कतें होती हैं, समझने के लिए लेख को आगे पढ़ें। यहां प्रेग्नेंसी और पीसीओएस से जुड़ी सभी जानकारी मौजूद है।
पीसीओएस होने पर महिला का कंसीव करना मुश्किल हो जाता है। दरअसल, हार्मोंस के कारण महिला का मसिक धर्म प्रभावित होता है। इसके चलते मासिक धर्म के बाद अंडाशय से निकलने वाले अंडाणु विकसित नहीं होते हैं। इसी वजह से पीसीओस के कारण कंसीव करना कठिन हो जाता है। यही नहीं, पीसीओएस के कारण प्रसव भी मुश्किल हो सकता है। लेकिन, ऐसा नहीं है कि सही मदद से महिला कंसीव नहीं कर सकती।
पीसीओएस से जूझ रहीं महिलाओं का अपनी स्थिति को समझना ही स्वस्थ गर्भावस्था की ओर पहला कदम बढ़ाना है। आगे हम पीसीओएस के कारण गर्भावस्था के दौरान होने वाली परेशानियां और अन्य जरूरी बातें बता रहे हैं।
प्रीएक्लेम्पसिया
आमतौर पर गर्भावस्था के 20वें सप्ताह के बाद प्री एक्लेम्पसिया होता है। यह एक खतरनाक स्थिति है, जो उच्च रक्तचाप के कारण होती है। इससे मल्टीपल ऑर्गन फेलियर हो सकता है। अनुपचारित रहने पर प्रीएक्लेम्पिया मृत्यु का कारण भी बन सकता है।
गर्भपात की आशंका
पीसीओएस को लेकर हुए अध्ययन बताते हैं कि इस स्थिति के कारण महिलाओं में गर्भपात का खतरा तीन गुना बढ़ जाता है। ऐसा उनमें एंड्रोजन हार्मोन का स्तर बढ़ने से हो सकता है।
गर्भावधि मधुमेह
पीसीओएस से ग्रस्त वाली महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान मधुमेह का खतरा बढ़ सकता है। आर्ट फर्टिलिटी क्लीनिक के मेडिकल डायरेक्टर, डॉ गुरप्रीत सिंह कालरा बताते हैं, “गर्भकालीन मधुमेह का इलाज संभव है। लेकिन, पीसीओएस के कारण इंसुलिन का स्तर गर्भावस्था के बाद भी अधिक रह सकता है। गर्भावस्था में समय पर इसका इलाज आवश्यक है, अन्यथा जन्मा शिशु मृत (still birth) हो सकता है।”
सिजेरियन डिलीवरी
पीसीओएस के चलते बच्चे के बर्थ वेट बढ़ जाता है। गर्भस्थ शिशु का वजन इतना हो जाता है कि उसे नॉर्मल डिलीवरी के जरिए दुनिया में लाना मुश्किल हो सकता है। इसलिए, डॉक्टर गर्भवती महिला की सिजेरियन डिलीवरी करने का फैसला ले सकते हैं।
गर्भवती महिला को पीसीओएस होने पर उसके गर्भस्थ शिशु पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। हम ऊपर बता ही चुके हैं कि गर्भावस्था में पीसीओएस के कारण माँ की मृत्यु और कुछ स्थितियों में मृत शिशु पैदा हो सकता है।
यही नहीं पीसीओएस के चलते बच्चे समय से पहले यानी 37वें हफ्ते से पहले पैदा हो सकता है। इसके चलते बच्चे में अन्य जोखिम भी हो सकता हैं। कुछ जोखिम उसके साथ ताउम्र रहते हैं, तो कुछ वक्त के साथ ठीक हो जाते हैं।
पीसीओएस के कारण होने वाली बेबी गर्ल को भविष्य में यह बीमारी होने का खतरा अधिक रहता है। रिसर्च के अनुसार, माँ को पीसीओएस है, तो बेटी को पीसीओएस होने का खतरा पांच गुना बढ़ जाता है।
आर्ट फर्टिलिटी क्लीनिक के मेडिकल डायरेक्टर, डॉ गुरप्रीत सिंह कालरा बताते हैं, “पीसीओएस गर्भधारण को कठिन बनाने के लिए जाना जाता है। इससे अनफर्टिलिटी भी हो सकता है। हालांकि, इसकी आशंका को कम करने के लिए पीसीओएस की जटिलताओं का इलाज, चिकित्सकीय मार्गदर्शन और जीवनशैली में बदलाव आवश्यक है।”
पीसीओएस और फर्टिलिटी से संबंधित अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर ऋितु संतवानी, फर्टिलिटी एक्सपर्ट का वीडियो देखिए। इस वीडियो में डॉक्टर ऋितु संतवानी ने लाइफस्टाइल में बदलाव के साथ ही अन्य बहुत-सी जरूरी जानकारी दी है।
डॉक्टर कालरा के अनुसार, “अगर आप पीसीओएस से जूझ रही हैं और गर्भधारण करना चाहती हैं, तो सही इलाज जरूरी है। चेकअप के बाद डॉक्टर सही दवाई बताएंगे और जीवनशैली में बदलाव करने की सलाह देंगे। इससे गर्भधारण करने की गुंजाइश को बढ़ाया जा सकता है।” साथ ही आप इन टिप्स को अपना सकती हैं।
पीसीओएस के चलते प्रेग्नेंसी में आने वाली दिक्कतों के बारे में बताने का हमारा मकसद सिर्फ आपको जागरूक करना है। इस जानकारी से आप हताश बिल्कुल न हों। पीसीओएस का इलाज करके स्वस्थ गर्भावस्था पूरी तरह मुमकिन है। आप सही दिशा की तरफ आगे बढ़ें और पीसीओएस के किसी खतरे से अनजान न रहें, यही हमारी कोशिश है। स्वस्थ रहें, खुश रहें!
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