25 Mar 2022 | 1 min Read
Vinita Pangeni
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महिलाओं को अपने 9 महीने की प्रेग्नेंसी में कई दौर और परेशानियों से गुजरना पड़ता है। कभी किसी तरह की शारीरिक समस्या, तो कभी कोई दर्द प्रेग्नेंसी में लगा रहता है। इसके पीछे की वजह प्रेग्नेंसी में होने वाली बीमारियां हो सकती हैं। लेकिन, प्रेग्नेंसी में एक ब्लड टेस्ट से गर्भवती महिला और उसके गर्भस्थ शिशु को होने वाली परेशानिययों के बारे में पता नहीं चल पाता।
बीमारियों का पता लगाने के लिए कभी आरएनए (RNA), तो कभी डीएनए (DNA) लेना पड़ता है। मगर अब ऐसा बिल्कुल नहीं होगा। कुछ वैज्ञानिकों ने मिलकर इस परेशानी का हल निकाल लिया है। एक रिसर्च में जिक्र मिलता है कि अब एक ब्लड टेस्ट से प्रेग्नेंसी से जुड़ी जटिलताओं का पता लगाया जा सकता है।
गर्भावस्था में महिलाओं को खासकर प्री-एक्लेम्पसिया (Pre-Eclampsia) यानी ब्लड प्रेशर से संबंधित परेशानियां होती रहती हैं। इसका पता लगाने में वैज्ञानिकों द्वारा खोजा गया यह नया ब्लड टेस्ट काफी काम आएगा। एक वैज्ञानिक शोध की मानें, तो गर्भावस्था के 20वें हफ्ते के बाद होने वाली सबसे आम बीमारियों में से एक प्री-एक्लेम्पसिया है। यह बीमारी महिलाओं की प्रसवकालीन मृत्यु और प्रसव के बाद होने वाली बीमारियों का मुख्य कारण मानी जाती है।
कुछ गंभीर मामलों में प्री-एक्लैम्पसिया की वजह से गर्भवती महिला को ऑर्गन फेलियर का भी सामना करना पड़ता है। इन अंगों में हृदय, लिवर और किडनी शामिल हैं। इसके चलते गर्भस्थ शिशु और नवजात को भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन, इस नए रिसर्च से एक उम्मीद जगी है कि जल्द ही अब ब्लड टेस्ट से ही प्री-एक्लेम्पसिया जैसी बीमारी का भी पता लग जाएगा।
नेचर वेबसाइट में मौजूद अध्ययन में साफ तौर पर लिखा है कि यह ब्लड टेस्ट मां के रक्त से सेल फ्री आरएनए (RNA) का विश्लेषण करता है। दरअसल, रक्त में स्वतंत्र रूप से घूमने वाले आरएनए अणुओं यानी मॉलिक्यूल्स को ही सेल फ्री आरएनए कहा जाता है। इससे गर्भावस्था की प्रोग्नेशन को मॉनिटर करने और प्री-एक्लैम्पसिया नामक हानिकारक बीमारी का पता लगाने में मदद मिल सकती है।
रिसर्च में वैज्ञानिकों की टीम ने बताया है कि इस रक्त परीक्षण से क्लिनिकल साइन यानी नैदानिक संकेतों व लक्षणों के सामने आने से पहले ही प्री-एक्लेमप्सिया के जोखिम का अनुमान लगाने में मदद मिल सकती है।
प्री-एक्लेमप्सिया गर्भवती महिलाओं के लिए घातक साबित हो सकता है। इसलिए यह नया टेस्ट समय से पहले प्री-एक्लेमप्सिया को लेकर प्रारंभिक चेतावनी देने में मदद करेगा। इसके लिए गर्भवती महिलाओं के रक्त में घूमने वाले आरएनए अणुओं का विश्लेषण किया जाएगा।
इस शोध के दौरान गर्भावस्था के विभिन्न चरणों से गुजर रही 1,800 से अधिक महिलाओं के सेल-फ्री आरएनए अणुओं का विश्लेषण किया गया। अंत में पाया गया कि यह टेस्ट 75% तक संवेदनशील है। मतलब यह टेस्ट प्री-एक्लेमप्सिया के तीन-चौथाई मामलों की पहचान कर सकता है।
प्री-एक्लेमप्सिया की समस्या 12 में से 1 प्रेग्नेंसी को प्रभावित करती है। इससे पूरे जीवन भर हृदय रोग और मृत्यु का उच्च जोखिम बना रहता है। अब इस नए ब्लड टेस्ट से गर्भवती महिलाओं में बीमारी और मृत्यु दर को कम करने के लिए नए चिकित्सीय विकल्प खोल दिए हैं। हालांकि, यह ब्लड टेस्ट कब तक लैब में उपलब्ध होगा और कब गर्भवतियां इसका लाभ उठा पाएंगी, यह अभी स्पष्ट नहीं है।
बताया जा रहा है कि अभी यह रक्त परीक्षण विकसित किया जा रहा है। इसलिए कुछ समय बाद ही यह ब्लड टेस्ट उपलब्ध हो पाएगा। डॉक्टरों का मानना है कि गर्भावस्था में प्री-एक्लेम्पसिया की वजह से जाने वाली कुछ जानों को यह टेस्ट जरूर बचा पाएगा। दरअसल, वक्त रहते इस बीमारी का पता लगा लिया जाए, तो इसके हानिकारक प्रभाव से जच्चा-बच्चा दोनों को बचाया जा सकता है।