31 May 2022 | 1 min Read
Mousumi Dutta
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जो दम्पत्ति माता-पिता नहीं बन पाते हैं, उनके लिए इन विट्रो फर्टिलाइजेशन ट्रीटमेंट(IVF), माँ-पिता बनने की चाहत को पूरा करने का बहुत ही प्रचलित इलाज बन गया है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन को ‘टेस्ट ट्यूब’ बेबी भी कहते हैं। टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक के जनक डॉ. सर रॉबर्ट एडवर्ड्स थे।
अब सवाल यह आता है कि सूनी गोद को भरने वाली यह तकनीक इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) क्या है? वैसे तो इन विट्रो फर्टिलाइजेशन इन इंडिया बहुत ही जटिल और महंगी प्रक्रिया है, लेकिन जो वैवाहिक जोड़े माँ-पिता का सुख प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं, उनके लिए यह तकनीक वरदान स्वरूप है। इन विट्रो फर्टिलाइजेशन को लेकर लोगों के मन में बहुत सारे सवाल है, विशेषकर यह कि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन क्या है (what is ivf treatment), टेस्ट ट्यूब बेबी किसे कहते हैं, IVF बेबी क्या जुड़वा होते हैं, टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक में कितना खर्चा आता है आदि।
फिर देर किस बात की है, हम आपके इन सवालों का ही आगे जवाब देने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इसके पहले कुछ शब्दों में यह जान लेते हैं कि टेस्ट ट्युब बेबी क्या है या इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) कैसे किया जाता है?
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) प्रक्रिया का उपयोग बच्चे के प्रजनन क्षमता (ivf baby) में मदद करने या आनुवंशिक समस्याओं को रोकने और बच्चे के गर्भाधान में सहायता करने के लिए किया जाता है।
आईवीएफ या टेस्ट ट्यूब बेबी के प्रक्रिया (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन in hindi) के दौरान, ओवरी से परिपक्व अंडे लेकर लैब में शुक्राणु द्वारा निषेचित किया जाता है। फिर निषेचित अंडे (भ्रूण) को गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है। आईवीएफ तकनीक की इस प्रक्रिया में लगभग तीन सप्ताह लगते हैं। कभी-कभी इन चरणों को अलग-अलग भागों में विभाजित किया जाता है, तब इस प्रक्रिया में अधिक समय लगता है।
अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) बांझपन या आनुवांशिक समस्याओं का इलाज है। कभी-कभी, 40 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में बांझपन के प्राथमिक उपचार के रूप में आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन in hindi) करने की सलाह डॉक्टर दे सकते हैं। इसके अलावा आईवीएफ एक विकल्प के रूप में डॉक्टर तब लेने के लिए सलाह देते हैं यदि आपके या आपके पार्टनर के साथ यह समस्याएं हैं-
अब तक की चर्चा से तो आपने जान ही लिया है कि आखिर किन परिस्थितियों में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन ट्रीटमेंट या टेस्ट टयूब बेबी (ivf fertilization) किया जाता है, अब सवाल यह आता है कि इस ट्रीटमेंट से क्या-क्या खतरा हो सकता है, जो आगे इस प्रकार है-
जैसा कि आपने अभी जाना कि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन ट्रीटमेंट (IVF) से मल्टीपल बर्थ का खतरा रहता है तो सवाल यह आता है कि आखिर IVF से जुड़वा बच्चा होने की संभावना क्यों होती है? इसके पीछे क्या कारण है?
इसी संदर्भ में हमारी एक्सपर्ट डॉ. नूपूर गुप्ता,ऑब्सट्रेशियन और गायनेकोलॉजिस्ट विभाग की डायरेक्टर, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम बताती हैं कि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन के दौरान कुछ ड्रग्स दिए जाते हैं, जिसके कारण एग्स संख्या में बढ़ जाते हैं, जिसकी वजह से ट्विन्स, ट्रिप्लेट और क्वाड्रप्लेट्स होने की संभावना बढ़ जाती है। कई बार एम्ब्रियो दो या तीन बार ट्रांसफर किए जाते हैं, जिसके कारण ट्विन्स होने की संभावना बढ़ जाती है। यहाँ तक कि कभी-कभी सिंगल एम्ब्रियो देने पर भी विभाजन हो जाने के कारण आइडेंटिकल ट्विन्स हो जाते हैं।
इसके अलावा, इन विट्रो फर्टिलाइजेशन ट्रीटमेंट के दौरान जुड़वा बच्चे होने का चांस उम्र के ऊपर भी निर्भर करता है। डॉ. नूपूर आगे बताती है कि अगर माँ की उम्र 35 के अंदर है तो 12% चांस, 35-37 के बीच की हैं तो चांस 9% ही रह जाता है, 38-40 के बीच है तो 5% और 40 के बाद अगर इन विट्रो फर्टिलाइजेशन ट्रीटमेंट (IVF) करवाती हैं तो 0.5% ही संभावना बचती है।
टेस्ट टयूब बेबी होने की प्रक्रिया के दौरान जो ड्रग दिया जाता है, वह है गोनाडोट्रोपिन (Human Chorionic Gonadotropin)। आम तौर पर महिला के नॉर्मल साइकिल में एक ही अंडा होता है, लेकिन फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के दौरान गोनाडोट्रोपिन या एचसीजी इंजेक्शन से मल्टिपल एग्स बनने की संभावना बन जाती है। यानि इसी तरह की दवाइयों से जितने मल्टीपल एग्स बनने के चांस बनेंगे उतने ट्विन्स और ट्रिपलेट्स प्रेग्नेंसी होने की संभावना बनेगी।
भारत या दूसरे देशों में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन ट्रीटमेंट में सेक्स सिलेक्शन या जेंडर सिलेक्शन प्रतिबंध है। पीसीपीएनडीटी एक्ट या पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (PCPNDT) अधिनियम के अंतगर्त इसकी अनुमति नहीं दी जाती है। अगर इंडिकेशन के लिए सेक्स डिटरमिनेश करना हो तो सेक्स लिंग क्रोमोसम का जितना जल्दी हो सके कर लेना सही होता है। अगर बच्चे को किसी प्रकार के आनुवांशिक समस्या होने का खतरा होता है तो तब डॉक्टर सेक्स सिलेक्शन कर सकते हैं।
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन ट्रीटमेंट से माँ और शिशु दोनों को खतरा होता है। इसलिए कोई भी संकेत समझने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
पहले माँ को किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, यह जानते हैं-
अब जानते हैं कि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन ट्रीटमेंट से शिशु को क्या खतरा होता है-
हमारी एक्सपर्ट डॉ. नूपूर गुप्ता का कहना है कि वैसे तो इन विट्रो फर्टिलाइजेशन की कॉस्ट अलग-अलग सेंटर्स में अलग-अलग होती है। आम तौर पर इस तकनीक को करने में कम से कम 1-2 लाख का खर्चा होता है, जिसमें ओवम पिक अप, एम्ब्रियो ट्रांसफर, मेडिकेशन, डॉक्टर फीस सब कुछ शामिल है। एक बात गौर करने की यह है कि ट्विन्स के लिए अलग से कोई लागत नहीं होती है, क्योंकि आईवीएफ में फर्टिलिटी ड्रग के चलते कई बार एग्स नंबर के बढ़ जाने के कारण खुद ब खुद ट्विन्स प्रेग्नेंसी हो जाती है।
आशा करते हैं, अब तक के विश्लेषण से आपको टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक या इन विट्रो फर्टिलाइजेशन ट्रीटमेंट, इन विट्रो फर्टिलाइजेशन से होने वाले खतरे (ivf risks), इन विट्रो फर्टिलाइजेशन और रेट आदि अहम मुद्दों के बारे में विस्तार से पता चल गया होगा।
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