28 Oct 2021 | 1 min Read
Medically reviewed by
Author | Articles
गर्भावस्था वह समय होता है जब शरीर में कई तरह के परिवर्तन आते है। यह बदलाव शारीरिक और मानसिक रूप से कई तरह के असर डालता हैं। खासतौर से सेक्स लाइफ बहुत हद प्रभावित होती है। क्योंकि गर्भावस्था के नौ महीने और उसके बाद हार्मोनल बदलाव की वजह से सेक्स की इच्छा में भी कमी आती है। लेकिन पति-पत्नी के बीच के बीच के रिश्ते में सेक्स भी बेहद आवश्यक है। अक्सर गर्भावस्था के बाद सेक्स लाइफ पहले जैसी नहीं रह जाती है। क्योंकि बच्चे के जन्म के बाद एक मां का पूरा ध्यान सिर्फ अपने बच्चे पर ही होता है।
ऐसा नहीं है कि प्रेगनेंसी के बाद सेक्स पहले जैसा नहीं कर सकते हैं। इसके लिए स्वयं को मानसिक तौर से तैयार करना पड़ता है, आइए बेबीचक्रा के इस ब्लॉग में हम सेक्स आफ्टर प्रेगनेंसी (Sex after pregnancy in hindi) से जुड़े कुछ प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयास करते हैं –
गर्भावस्था के बाद एक नई मां को मानसिक तौर से काफी मजबूत रहना पड़ता है। क्योंकि आपको स्वयं के बारे में और अपने बच्चे के बारे में भी सोचना है। इसलिए खुद के बारे में यह सोचे कि किस तरह से आप अपनी सेक्स लाइफ को बेहतर बना सकती है। आपकी कुछ शंकाएं हो सकती हैं, जिनके जवाब नीचे दिए जा रहे हैं –
डिलीवरी के बाद सबका शरीर एक निश्चित समय पर ठीक नहीं होता, कुछ महिलाएं इसके लिए जल्दी तैयार हो जाती हैं तो कुछ की रिकवरी लेट होती है, नॉर्मल डिलीवरी के मामलों में विशेषज्ञ प्रसव के चार से छह सप्ताह बाद यौन संबंध बनाने की सलाह देते हैं। सिजेरियन डिलीवरी में शरीर देर में ठीक होता है इसलिए दो से ढाई महीने प्रतीक्षा करना सही रहता है। प्रसव के बाद दो हफ्तों के दौरान जटिलता पैदा होने का जोखिम सबसे अधिक होता है। डिलीवरी के बाद सेक्स कब करना है, यह पूरी तरह से नई माँ और डॉक्टर का डिसीजन होना चाहिए क्योंकि स्वास्थ्य की सही स्थिति इन दोनों को ही पता होती है।
सिजेरियन डिलीवरी के बाद टांकों को सही होने में वक़्त लगता है। यह मेजर सर्जरी होती है जिसके बाद सेक्स के लिए सुविधाजनक पोजीशन पाना मुश्किल हो सकता है। इसलिए कम से कम दो महीने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। अगर आपको कोई परेशानी जैसे ब्लीडिंग या दर्द महसूस हो तो एक बार डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
इसका कारण बच्चे के प्रति आपकी बढ़ती जिम्मेदारियां, हार्मोन परिवर्तन और शारीरिक थकान हो सकता है। यह एक आम समस्या है लेकिन इसे इग्नोर नहीं करना चाहिए क्योंकि सेक्स सम्बन्ध, पति-पत्नी के रिश्ते में मधुरता लाने के बहुत जरूरी हैं। अपने प्रियजनों की काम में मदद लें और अपनी रोमोंटिक लाइफ को स्पाइस अप करने की कोशिश करें। प्रयासों के बाद भी अगर आपकी यौन इच्छा में बदलाव नहीं आता तो आपको एक बार अपनी गाइनो से मदद लेनी चाहिए या किसी सेक्सोलौजिस्ट से सम्पर्क कर सकते हैं।
अपने पार्टनर को अपनी मानसिक और शारीरिक स्थिति से जरूर अवगत कराएं ताकि आप दोनों मिल-जुल कर इस समस्या का समाधान खोज सकें। कोशिश करें कि डॉक्टर विजिट के समय आप दोनों साथ हों ताकि सारे कॉम्प्लिकेशन साझा रूप से समझे जा सकें। ऐसी स्थिति में आप पेनिट्रेशन के स्थान पर संतुष्टि के अन्य विकल्प जैसे फॉरप्ले या हस्तमैथुन जैसे प्रयोग भी कर सकते हैं। योनि में प्रवेश से बचने का यह एक विकल्प हो सकता है।
जैसी ही आप सेक्स सम्बन्धों में रत होती हैं, आपको गर्भनिरोधक का इस्तेमाल शुरू करना चाहिए क्योंकि आप डिलीवरी के बाद तुरंत भी प्रेगनेंट हो सकती हैं। बच्चों में अंतर रखना माँ और शिशु दोनों के लिए जरूरी है इसलिए आपको गर्भनिरोधक के सबसे सुविधाजनक विकल्प को अपनाना चाहिए।
स्तनपान के दौरान आपके शरीर में एस्ट्रोजन का स्तर कम होता है, जिससे सेक्स ड्राइव में कमी आ सकती है। आपको उत्तेजित होने में अधिक समय लग सकता है, और कम चिकनाहट की वजह से दर्द अनुभव हो सकता है। इसके समाधान के लिए आप एक डॉक्टर से मिल लें।
अगर डिलीवरी के बाद सेक्स करने में दर्द महसूस होता है तो आपको डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। अपने पार्टनर की मदद से ऐसी पोजीशन चुनने की कोशिश करें जिसमें आपके सी-सेक्शन एरिया पर अतिरिक्त दबाव न पड़े। तो बेबीचक्रा के इस लेख में अपने जान कि गर्भावस्था के सुरक्षित सेक्स कैसे शुरू किया जा सकता है। इसके लिए स्वयं को मानसिक तौर से तैयार करना होगा। आपको आपसी संबधों में मधुरता लाने की दिशा में प्रयास करने चाहिए, अपने पार्टनर से खुल कर बात करें। सम्भोग शुरू करने से पहले गर्भनिरोधक के विकल्प चुन लें और साफ़-सफाई का ध्यान रखें। किसी भी तरह के संक्रमण से बचने के लिए सभी सावधानी अपनानी चाहिए।
Related Articles:
A
Suggestions offered by doctors on BabyChakra are of advisory nature i.e., for educational and informational purposes only. Content posted on, created for, or compiled by BabyChakra is not intended or designed to replace your doctor's independent judgment about any symptom, condition, or the appropriateness or risks of a procedure or treatment for a given person.