31 Jan 2023 | 1 min Read
Mousumi Dutta
Author | 387 Articles
क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि जन्म के बाद शिशुओं की त्वचा का रंग उम्र के हिसाब से बदलता रहता है। कुछ शिशुओं में त्वचा का रंग सामान्य रहता है तो कुछ शिशुओं में रंग बदलने का कारण शारीरिक समस्याएं होती हैं। नवजात शिशु जब पैदा होता है, तब उसकी त्वचा का रंग त्वचा लाल, बैंगनी, पीली या नीली हो सकती है। आम तौर पर जन्म के बाद शिशुओं में त्वचा के रंग में जो बदलाव आता है, वह किसी बीमारी का संकेत नहीं देती है। लेकिन शिशुओं में त्वचा के कुछ रंग अंडरलाइन कंडीशन का परिणाम हो सकते हैं।
चलिए आगे हम विस्तार से जानते हैं कि जन्म के बाद शिशुओं में त्वचा का रंग आखिर क्यों बदलता रहता है। लाल रंग से क्यों पीला, बैगनी रंग में त्वचा में बदलाव होता रहता है, इसके बारे में सही जानकारी न्यू पेरेंट्स के लिए जरूरी होता है।
जब एक बच्चा पैदा होता है, तो उसकी त्वचा कई प्रकार रंगों से गुजरती है। आम तौर पर, एक बच्चे के जन्म के समय गहरे लाल से लेकर बैंगनी रंग की त्वचा हो जाती है। एक बार जब बच्चा अपनी पहली सांस लेता है, तो उसकी त्वचा का रंग लाल हो जाता है। यह लाल रंग आमतौर पर पहले दिन से ही फीका होने लगता है।
इसके अलावा बच्चे के जन्म के बाद उसकी त्वचा का रंग पीला भी हो सकता है। यह पीला रंग अंडरलाइन कंडीशन का संकेत हो सकता है, बच्चे का कंडिशन अगर विशेष रूप से खराब हो।
बच्चा नीले हाथ और पैरों के साथ भी पैदा हो सकता है। जन्म के बाद अगले कुछ दिनों में, यह नीला रंग फीका पड़ जाना चाहिए। बच्चे के शरीर के अन्य हिस्सों की त्वचा अगर नीली हो तो डॉक्टर के पास जाने में देरी नहीं करनी चाहिए।
गहरा लाल रंग: जन्म के बाद बच्चे की त्वचा बहुत पतली होती है। इसका मतलब है कि बच्चे का ब्लड और वैस्कुलर स्ट्रक्चर को उनकी त्वचा के माध्यम से देखा जा सकता है, जिससे गहरा लाल रंग हो सकता है। लेकिन चेहरे की लाल त्वचा एक दुर्लभ ब्लड डिसऑर्डर का संकेत हो सकती है, जिसे पॉलीसिथेमिया वेरा कहा जाता है। अगर किसी बच्चे में लालिमा है, जो सांस लेने में परेशानी या मसूड़ों से खून आने जैसे लक्षणों के साथ है, तो उन्हें डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।
पीला रंग: शिशु की त्वचा का पीला रंग होना भी पीलिया का संकेत होता है। आम तौर पर नवजात शिशुओं को पीलिया होता है, जो बिना इलाज के ठीक हो जाता है।
नीला रंग: नवजात शिशु के नीले हाथ और पैर होने का कारण उसकी अविकसित सर्कुलेटरी सिस्टम होता है। अविकसित सर्कुलेटरी सिस्टम होने के कारण हाथ और पैर में रक्त का प्रवाह अच्छी तरह से नहीं हो पाता है। सायनोसिस कंडिशन वाले बच्चों की त्वचा नीली होती है। हृदय, फेफड़े और सेंट्रल नर्वस सिस्टेम के कंडिशन के कारण सायनोसिस हो सकता है।सायनोसिस आमतौर पर बच्चे के ब्लड में ऑक्सीजन की कमी के कारण होता है।
फीका रंग– एनीमिया, ऐल्बिनिजम और फेनिलकेटोनुरिया (पीकेयू) के कारण त्वचा पीली या फीके रंग की हो सकती है।
इसलिए समय के साथ जब त्वचा का रंग सामान्य होने लगने पर बेबी मसाज से ऑयल से शिशु की मालिश करनी चाहिए। इससे न सिर्फ स्किन मॉइश्चराइज होता है बल्कि हड्डी भी मजबूत होता है।
अब तक जन्म के बाद त्वचा के रंग में बदलाव के कारणों के बारे में चर्चा कर रहे थे, इसके अलावा बेबी-केयर संबंधी और जानकारियों, प्रेगनेंसी से जुड़ी समस्याओं के समाधान,और पेरेंटिग संबंधित जानकारियों के लिए बेबीचक्रा ऐप या वेबसाइट को सब्सक्राइब करें और टेंशन फ्री होकर प्रेगनेंसी और पेरेंटिंग जर्नी को एन्जॉय करें।
संबंधित लेख:
बच्चे के लिए सही साइज के डायपर का चुनाव कैसे करें
Umbilical Hernia : अम्बिलिकल हर्निया और इसके सर्जरी के बारे में पूरी जानकारी
Paronychia: बच्चे के नाखून में इंफेक्शन (पैरोनिकिया)के कारण और उपचार
Baby Lip Blister: बेबी लिप ब्लिस्टर क्यों होता है? जानें इसका घरेलू उपचार
इन 13 बातों का रखें ध्यान जब बच्चे को हो सर्दी-जुकाम
अपने बच्चे को बदलते मौसम की बीमारियों से कैसे बचाएं
A
Suggestions offered by doctors on BabyChakra are of advisory nature i.e., for educational and informational purposes only. Content posted on, created for, or compiled by BabyChakra is not intended or designed to replace your doctor's independent judgment about any symptom, condition, or the appropriateness or risks of a procedure or treatment for a given person.