25 May 2022 | 1 min Read
Vinita Pangeni
Author | 554 Articles
ब्रेस्ट मिल्क नवजात के लिए पोषण का स्रोत होता है। इसमें हजारों बायोएक्टिव कंपाउंड होते हैं, जो नवजात के विकास में मदद करते हैं। स्तन के दूध की संरचना को समझने के लिए लेख में आगे बढ़ते हैं।
स्तन के दूध की अनुमानित संरचना (Approximate composition) 87% पानी, 7% लैक्टोज, 3 से 5% वसा और 1% प्रोटीन है। दूध में मौजूद वसा (Fat) और लैक्टोज से ही ब्रेस्ट मिल्क में अधिकांश ऊर्जा पाई जाती है। इसी ऊर्जा की आवश्यकता बच्चे को होती है। परिपक्व दूध (Mature milk) की तुलना में कोलोस्ट्रम में प्रोटीन की मात्रा काफी अधिक और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होती है।
आयु और डाइट दूध की संरचना को अधिक प्रभावित नहीं करते हैं। तबतक दोनों स्तनों में संचारित दूध का कम्पोजिशन एक जैसा ही होता है, जबतक कोई स्तन संक्रमित न हो। माँ के दूध का प्रमुख प्रोटीन कैसिइन (Casein), बोवाइन (Bovine) होते हैं।
माँ के दूध में ढेरों बायोएक्टिव कंपोनेंट्स भी होते हैं, जो फॉर्मूला मिल्क में नहीं पाए जाते। इम्युनोग्लोबुलिन भी इनमें से एक है। इम्युनोग्लोबुलिन कुछ और नहीं एंटीबॉडी होते हैं, जो बीमारी से लड़ने में मदद करते हैं। इन प्राकृतिक प्रतिरक्षा पदार्थों के कारण, स्तन के दूध को बच्चे का पहला टीका माना जाता है।
ब्रेस्ट मिल्क में कई एंजाइम होते हैं जो वसा या प्रोटीन को तोड़कर पाचन में सहायता करते हैं। कुछ एंजाइम प्रतिरक्षा सहायता भी प्रदान करते हैं। दूध उत्पादन में शामिल हार्मोन में प्रोलैक्टिन और थायराइड भी शामिल हैं। ये हार्मोन वृद्धि और विकास, चयापचय, तनाव और दर्द प्रतिक्रियाओं और रक्तचाप को रेगुलेट करते हैं।
मां का दूध उन खनिजों से भरा होता है। इसमें आयरन, जिंक, कैल्शियम, सोडियम, क्लोराइड, मैग्नीशियम और सेलेनियम जैसे खनिज होते हैं। ये मजबूत हड्डियों का निर्माण करते हैं और लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन में सहायक होते हैं। ये खनिज मांसपेशियों और तंत्रिका संबंधी कार्यों को भी बढ़ावा देते हैं।
यही नहीं, दूध में बीटा-कैसिइन, अल्फा-लैक्टलबुमिन, लैक्टोफेरिन, लाइसोजाइम और सीरम एल्ब्यूमिन भी होते हैं। माँ के दूध को ये सारे मॉलिक्यूल्स सिर्फ पोष्टिक नहीं, बल्कि बहुत फायदेमंद बनाते हैं। उदाहरण के लिए –
नवजात के जन्म के बाद कुछ दिनों तक स्तनों में कोलोस्ट्रम मिल्क बनता है। कोलोस्ट्रम नवजात की शुरुआती जरूरतों को पूरा करता है। यह दिखने में हल्का पीला, गाढ़ा व चिपचिपा होता है। कोलोस्ट्रम करीब सात दिनों तक दिनों तक बनता है। इसमें इम्यूनोग्लोबिन्स और एंटीबॉडी होते हैं, जो नवजात के स्वास्थ्य और विकास के लिए आवश्यक हैं।
कोलोस्ट्रेल के बाद ब्रेस्ट मिल्क का दूसरा रूप ट्रांजिशनल होता है। डिलीवरी के करीब एक हफ्ते के बाद ट्रांजिशनल दूध बनता है। इस समय ब्रेस्ट भारी, कड़क, दर्द भरे महसूस होते हैं। स्तनपान कराने से इससे राहत मिलती है। ट्राजिशनल मिल्क में इम्यूनोग्लोबिन्स व प्रोटीन का स्तर घटता जाता है और इसमें फैट की मात्रा बढ़ती है।
मिल्क माँ के स्तन में ट्रांसिशनल मिल्क के बाद मैच्योर मिल्क बनता है। यह सामान्य दूध जाती पतला होता है। इस दूध में भी सारे जरूरी न्यूट्रिएंट्स होते हैं। मैच्योर मिल्क का कम्पोजीशन जैसे-जैसे बच्चे बढ़ता है वैसे-वैसे बच्चे की जरूरतों के हिसाब से बदलता है।
आप समझ गए होंगे कि स्तन के दूध की संरचना समय के साथ बदलती है। वे/कैसिइन प्रोटीन का अनुपात और मात्रा कोलोस्ट्रम से लेकर मैच्योर दूध में बदलता जाता है।
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