8 Mar 2022 | 1 min Read
Ankita Mishra
Author | 279 Articles
चिकन पॉक्स या चेचक की बीमारी के बारे में अधिकतर लोगों को पता होता है। चिकन पॉक्स के लक्षण घातक नहीं होते हैं, इसलिए इसके प्रति अधिक चिंता भी नहीं की जा सकती है, लेकिन ब्रेस्टफीडिंग के दौरान चिकन पॉक्स हो जाए, तो यह माँ व शिशु के लिए चिंता का विषय जरूर बन सकता है। ब्रेस्टफीडिंग के दौरान माँ को चेचक (छोटी माता) होने पर क्या करना चाहिए, इसी से जुड़ी जानकारी आप यहां पढ़ेंगे।
चिकन पॉक्स (Chickenpox) एक वायरल संक्रमण है, जो वेरिसेला जोस्टर वायरस (Varicella Zoster Virus) के कारण होता है। इसे चेचक व छोटी माता जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। चिकन पॉक्स या चेचक की बीमारी होने पर पूरे शरीर में लाल, छोटे दानें उभर आते हैं, जिनमें खुजली के साथ दर्द भी होता है। बाद में इन दानों में सफेद द्रव भर जाता है, जिससे ये दाने फोफलों के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं।
शुरू में चिकन पॉक्स या चेचक की बीमारी के कारण हुए दाने चेहरे, सीने व पीठ पर दिखाई दे सकते हैं, जो धीरे-धीरे पूरे शरीर में फैल सकते हैं। ऐसे में चिकन पॉक्स या चेचक की बीमारी होने पर सही जानकारी व उचित सावधानी बरतनी जरूर हो जाती है।
हां, गर्भावस्था या ब्रेस्टफीडिंग के दौरान चिकन पॉक्स (छोटी माता) होना सामान्य माना जा सकता है। दरअसल, इसकी वजह है गर्भवती महिला के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता। दरअसल, प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं की इम्यूनिटी आम दिनों के मुकाबले अधिक संवेदनशील हो सकती है। यही वजह है कि गर्भावस्था या ब्रेस्टफीडिंग के दौरान चिकन पॉक्स (छोटी माता) होना सामान्य माना जा सकता है।
इसके अलावा, अगर प्रसव के करीब के समय गर्भवती महिला को चिकन पॉक्स (छोटी माता) होता है, तो वह स्तनपान के दौरान भी रह सकता है। ऐसे में क्या ब्रेस्टफीडिंग के दौरान चिकन पॉक्स होने पर शिशु को दूध पिलाना चाहिए या नहीं, इसी से जुड़ी जानकारी नीचे विस्तार से पढ़ेंगे।
ब्रेस्टफीडिंग के दौरान चिकन पॉक्स या चेचक की बीमारी के लक्षण सामान्य दिनों के जैसे ही दिखाई दे सकते हैं। यानी जिस तरह किसी महिला या व्यक्ति में छोटी माता के लक्षण होते हैं, उसी तरह स्तनपान कराते समय भी चिकन पॉक्स के लक्षण दिखाई दे सकते हैं, जो निम्नलिखित हो सकते हैंः
ब्रेस्टफीडिंग के दौरान माँ को चेचक (छोटी माता) होने का निदान करने के लिए आमतौर पर किसी टेस्ट की जरूरत नहीं हो सकती है। डॉक्टर माँ में चिकन पॉक्स के शारीरिक लक्षणों के आधार पर इसकी पुष्टि कर सकते हैं। सामान्य तौर पर शरीर में चेचक के कारण उभरे हुए दाने को देखकर ही इसकी पहचान की जा सकती है।
अगर ब्रेस्टफीडिंग के दौरान माँ को चेचक (छोटी माता) होने पर उसके स्वास्थ्य में कोई गंभीर लक्षण नजर आते हैं, तो डॉक्टर माँ को ब्लड टेस्ट या फफोलो में भरे द्रव का टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं।
स्तनपान कराते समय चिकन पॉक्स के लक्षणों के अधार पर इसका इलाज किया जा सकता है। शोध के अनुसार, ज्यादातर मामलों में चिकन पॉक्स के लक्षण अपने आप ही दो सप्ताह के अंदर ठीक हो सकते हैं। हालांकि, कुछ स्थितियों में यह ठीक होने में लंबा समय भी ले सकता है। ऐसे में ब्रेस्टफीडिंग के दौरान माँ को चेचक (छोटी माता) होने पर डॉक्टर की सलाह पर ही उनका उपचार कराएं।
अगर गर्भावस्था के दौरान माँ को चिकन पॉक्स होता है या स्तनपान के दौरान माँ को चेचक होता है, तो दोनों ही स्थितियों में यह कुछ हद तक शिशु के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। अध्ययनों के अनुसार, अगर किसी महिला को प्रसव के लगभग एक सप्ताह पहले या बाद में चिकन पॉक्स होता है, तो ऐसी स्थिति में यह शिशु तक भी फैल सकता है।
यानी अगर माँ को चिकन पॉक्स होता है, तो उसे सीधे तौर पर शिशु को स्तनपान कराने से बचना चाहिए। वहीं, छोटे बच्चों की इम्युनिटी कमजोर होती है और विकसित हो रही होती है। ऐसे में चिकन पॉक्स के दौरान स्किन-टू-स्किन तरीके से नवजात शिशु को स्तनपान कराना जोखिम भरा माना जा सकता है।
हालांकि, माँ के दूध में चिकन पॉक्स के वायरस नहीं होते हैं, इसी वजह से माँ शिशु को ब्रेस्ट मिल्क पिला सकती है। इसके लिए पहले माँ को ब्रेस्ट पंप या अन्य विधियों से स्तनों से दूध को निकालना होता है। फिर उसे वह दूध की बोतल की मदद से शिशु को पिला सकती है। इस काम में माँ दाई या घर के अन्य सदस्यों की मदद ले सकती है।
ब्रेस्टफीडिंग के दौरान चिकन पॉक्स या छोटी माता के घरेलू उपचार के लिए निम्नलिखित विधियों को अपना सकते हैंः
एक बात का ध्यान रखें कि ब्रेस्टफीडिंग के दौरान माँ को चेचक (छोटी माता) होने पर उसे अन्य सदस्यों या शिशु से उचित दूरी बनाकर रखना चाहिए। छोटा माता एक संक्रामक रोग है। संक्रमित माँ के पसीने, जूठे खाने या उसके द्वारा इस्तेमाल की गई वस्तुओं के संपर्क में आने से भी इसका जोखिम शिशु तक फैल सकता है। इसलिए, माँ को स्तनपान के दौरान चेचक होने पर न ही सीधे तौर पर शिशु को दूध पिलाना चाहिए और न ही बच्चे को किस करना चाहिए।