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बच्चों में ऑटिज्म (स्वलीनता): कारण, लक्षण, बचाव, निदान और उपचार

बच्चों में ऑटिज्म (स्वलीनता): कारण, लक्षण, बचाव, निदान और उपचार

1 Apr 2022 | 1 min Read

Ankita Mishra

Author | 409 Articles

जैसा कि आप इससे परचित होंगे कि मानसिक व सामाजिक विकार से संबंधी मुद्दों पर लोग अक्सर कम ही लोग गौर करते हैं। इस लिहाज भारतीय परिवेश के बच्चों में ऑटिज्म (स्वलीनता) की बीमारी व शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण को गंभीर माना जा सकता है। 

अगर आप बच्चों में ऑटिज्म (स्वलीनता) की बीमारी से परचित नहीं हैं, तो बेबीचक्रा के इस लेख में हम ऑटिज्म का अर्थ विस्तार से बता रहे हैं। यहां बच्चों में ऑटिज्म के कारण से लेकर, शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण व ऑटिज्म के प्रकार के बारे में भी बताया गया है। 

बच्चों में ऑटिज्म (स्वलीनता) या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर क्या है?

बच्चों में ऑटिज्म (स्वलीनता)
बच्चों में ऑटिज्म (स्वलीनता) / चित्र स्रोतः फ्रीपिक

हिंदी में ऑटिज्म का अर्थ है स्वलीनता। वहीं, मेडिकल टर्म में ऑटिज्म को ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism Spectrum Disorder) कहते हैं। बच्चों में ऑटिज्म (स्वलीनता) एक मस्तिष्क संबंधी विकार है, जिसके लक्षण बच्चों में जन्म से ही हो सकते हैं। 

शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण होने पर खासतौर पर से उनका सामाजिक व्यवहार व सामाजिक विकास प्रभावित हो सकता है। जिन बच्चों में ऑटिज्म (स्वलीनता) होता है, वे सामान्यतौर पर दूसरे लोगों या बच्चों के साथ बातचीत करने, मिलने-जुलने या फिर अपनी बातों को कहने में परेशानी महसूस कर सकते हैं। 

बच्चों व शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण क्या है व बच्चों में ऑटिज्म के कारण क्या होते हैं, इससे पर चर्चा करने से पहले बच्चों में ऑटिज्म के प्रकार के बारे में पढ़ें।

बच्चों में ऑटिज्म के प्रकार

मुख्य रूप से तीन तरह के बच्चों में ऑटिज्म के प्रकार देखे जा सकते हैं। नीचे हम इन्हीं तीन तरह के ऑटिज्म के प्रकार के बारे में बता रहे हैं।

1. ऑटिस्टिक डिसऑर्डर (Autistic Disorder)

ऑटिज्म के प्रकार में सबसे पहला प्रकार शामिल है ऑटिस्टिक डिसऑर्डर (Autistic Disorder)। इसे क्लासिक ऑटिज्म भी कहा जाता है। ऑटिस्टिक डिसऑर्डर (Autistic Disorder) के लक्षण वाले बच्चों में बोलते समय हकलाने की समस्या मुख्य रूप से देखी जा सकती है।

2. एस्पर्गर सिंड्रोम (Asperger Syndrome) 

ऑटिज्म के प्रकार में दूसरा प्रकार शामिल है एस्पर्गर सिंड्रोम (Asperger Syndrome)। एस्पर्गर सिंड्रोम वाले बच्चों में बोलचाल संबंधी या मानसिक संबंधी लक्षण बहुत देखे जा सकते हैं। हालांकि, इनका सामान्य व्यवहार या विकास बहुत धीमा या खराब हो सकता है।

3. परवेसिव डेवलपमेंटल डिसऑर्डर (Pervasive Developmental Disorder)

परवेसिव डेवलपमेंटल डिसऑर्डर (Pervasive Developmental Disorder) भी ऑटिज्म का प्रकार है। इसे एटिपिकल ऑटिज्म भी कहते हैं। इससे ग्रस्त बच्चों में खासतौर पर सामाजिक व्यवहार, संचार संबंधी समस्याओं के लक्षण देखे जा सकते हैं।

बच्चों व शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण 

शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैंः

बच्चों में ऑटिज्म (स्वलीनता)
बच्चों में ऑटिज्म (स्वलीनता) / चित्र स्रोतः फ्रीपिक
  • बोलते समय हकलाना 
  • बोलते समय बिना शब्दों को पूरा किए बगैर बीच में रूक जाना
  • कोई भी बात कहने के लिए या बताने के लिए सिर्फ इशारे करना, जैसे – ताली बजाकर बात करना या आंखों से इशारा करके बात करना
  • बार-बार नाम पुकारने पर भी किसी तरह की प्रतिक्रिया न करना
  • बात करते समय सामने वाले से नजर न मिला पाना
  • दूसरे बच्चों के साथ खेलने से मना करना
  • बिना किसी कारण अपने शरीर के हिलाते रहना
  • खराब हुई वस्तुओं या सामनों से विशेष लगाव रखना
  • एक ही बात या काम को बार-बार दोहराना
  • कई बार एक ही बात को समझाने पर भी न समझ पाना

बच्चों में ऑटिज्म के कारण

बच्चों में ऑटिज्म के कारण क्या हो सकते हैं, इस विषय में अभी भी सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि, ऐसी कुछ वजहों को ज्ञात किया गया है, जो बच्चों में ऑटिज्म के कारण माने जा सकते हैं।

1. आनुवांशिक कारण 

बच्चों में ऑटिज्म के कारण अक्सर अनुवांशिकता से जुड़ा हो सकता है। यानी अगर बच्चे के परिवार में ऑटिज्म का इतिहास है, तो इसकी संभावना बढ़ सकती है कि बच्चे को भी ऑटिज्म हो।

2. पर्यावरणीय कारक

वायरल संक्रमण से लेकर गर्भवस्था के दौरान होने वाली जटिलताओं व वायु प्रदुषण को भी बच्चों में ऑटिज्म के कारण या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर की वजह मानी जा सकती है।

3. स्पोरेडिक (Sporadic) 

इन सबसे अलावा, अगर परिवार में ऑटिज्म का इतिहास न हो और इसके बावजूद भी शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण नजर आते हैं, तो इसे स्पोरेडिक (Sporadic) कहा जाता है।

बच्चों में ऑटिज्म (स्वलीनता) का निदान

शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण उनकी बढ़ती उम्र के साथ नजर आ सकते हैं। इसी वजह से बच्चों में ऑटिज्म (स्वलीनता) या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर का निदान करने में देरी हो सकती है। दूसरी वजह यह भी है कि बच्चों में ऑटिज्म (स्वलीनता) का निदान करने के लिए किसी तरह के लैब या स्क्रीन टेस्ट की आवश्यकता नहीं होती है। शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण के आधार पर ही इसका निदान किया जा सकता है।

इसके लिए निम्नलिखित चरणों का डॉक्टर अपना सकते हैंः

डेवलपमेंटल मॉनिटरिंग एंड स्क्रीनिंग टेस्ट (Developmental Monitoring and Screening Test)

डेवलपमेंटल मॉनिटरिंग एंड स्क्रीनिंग टेस्ट के जरिए डॉक्टर पेरेंट्स से शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण की जानकारी लेते हैं व खुद भी बच्चे के लक्षणों को समझने के लिए उससे बातचीत कर सकते हैं। इस प्रक्रिया को डॉक्टर कुछ महीनों के अंतराल पर 3 से 4 बार दोहरा भी सकते हैं। 

कॉम्प्रिहेंसिव डायग्नोस्टिक इवैल्यूएशन (Comprehensive Diagnostic Evaluation)

अगर डेवलपमेंट टेस्ट के दौरान शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण की पुष्टि होती है, तो डॉक्टर कॉम्प्रिहेंसिव डायग्नोस्टिक इवैल्यूएशन टेस्ट की भी सलाह दे सकते हैं। यह ऑटिज्म के निदान का दूसरा चरण है। इसमें यह पता लगाया जाता है कि बच्चे में ऑटिज्म के प्रकार कौन से हैं और उसके लक्षण कितने गंभीर हैं। 

बच्चों में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर का इलाज

बच्चों में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर का इलाज करने के लिए डॉक्टर निम्नलिखित तरीकों को अपना सकते हैं, जैसेः

  • बिहेवियर थेरेपी
  • स्पीच थेरेपी
  • ऑक्यूपेशनल थेरेपी
  • दवाएं

इन थेरेपी से बच्चों में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर का संपूर्ण इलाज नहीं किया जा सकता है, हालांकि कुछ हद तक उनके मानसिक, सामाजिक व व्यवहारिक जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकते हैं, जैसेः 

  • बच्चा अपनी बात को बताने, समाझाने व बोलने का तरीका सीख सकता है।
  • दूसरे बच्चों के साथ मिलना-जुलना सीख सकता है। 
  • सीखने की क्षमता में सुधार ला सकता है। 
  • स्वंय से फैसले लेने में सक्षम हो सकता है। 
  • एक की कार्य को बार-बार करने की आदत में सुधार ला सकता है। 

बच्चों में ऑटिज्म (स्वलीनता) होने पर माता-पिता को ध्यान में रखने वाली बातें

बच्चों में ऑटिज्म (स्वलीनता) वाले पेरेंट्स को अधिक सतर्क होना पड़ सकता है। उन्हें बच्चे व बच्चे से जुड़ी परवरिश के प्रति निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसेः

  • शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण की निगरानी करना।
  • एक ही काम को बार-बार करने की आदत पर बच्चे को डांटने की बजाय उसे प्यार से समधाना।
  • बच्चे के साथ अधिक से अधिक समय बिताना।
  • बच्चे को परिवार के सदस्यों व दोस्तों के साथ घुलने-मिलने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • बच्चे की परेशानियों को समझना व उसका हल निकालना।
  • बच्चे के ऑटिज्म के लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए बाल मनोरोग विशेषज्ञ से संपर्क करना।
  • ऑटिज्म बच्चों की पेरेंटिंग टिप्स से जुड़ी अधिक जानाकरी के लिए इस लिंक को पढ़ें।

यह तो जाहिर है कि बच्चों में ऑटिज्म (स्वलीनता) के लक्षण की पुष्टि करने में अधिक समय लग सकता है। ऐसे में पेरेंट्स को सयंम रखते हुए शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण की पहचान करनी चाहिए और अनुभवी बाल मनोविशेषज्ञ की मदद से बच्चों में ऑटिज्म का निदान व रोकथाम करना चाहिए।

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