6 Jun 2022 | 1 min Read
Vinita Pangeni
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गर्भावस्था को बीमारियां कई तरीकों से प्रभावित करती हैं। इसलिए, आज बेबीचक्रा के इस लेख में हम आपको बताएंगे कि सिकल सेल रोग से प्रेग्नेंसी कितनी प्रभावित हो सकती है। साथ ही सिकल डिजीज क्या है और सिकल डिजीज (Sickle Disease) होने पर क्या होता है, इस पर भी चर्चा करेंगे।
सिकल डिजीज को सिकल सेल रोग भी कहा जाता है। यह वंशानुगत (Inherited) लाल रक्त कोशिका संबंधी विकारों का समूह है। स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाएं गोल होती हैं और छोटी रक्त वाहिकाओं के माध्यम से शरीर के सभी भागों में ऑक्सीजन ले जाती हैं। सिकल रोग वालों में लाल रक्त कोशिकाएं कठोर और चिपचिपी हो जाती हैं। यह सी-आकार की तरह दिखती है, जिसे “सिकल” कहा जाता है।
सिकल सेल जल्दी मर जाते हैं, जिससे लाल रक्त कोशिकाओं की लगातार कमी हो जाती है। इसके अलावा, जब ये छोटी रक्त वाहिकाओं के माध्यम से ट्रैवल करते हैं, तो फंस जाते हैं और रक्त प्रवाह को रोकते हैं। इससे दर्द और अन्य गंभीर समस्याएं जैसे संक्रमण, एक्यूट चेस्ट सिंड्रोम और स्ट्रोक हो सकता है।
सिकल डिजीज से प्रभावित महिलाओं में होने वाली गर्भावस्था में मातृ और भ्रूण रुग्णता (बीमारी) और मृत्यु दर का स्तर उच्च रहता है। रिसर्च पेपर में दिया है कि सिकल डिजीज के कारण गर्भावस्था के दौरान मातृ और भ्रूण मृत्यु दर क्रमशः 11.4% और 20% तक पहुंच सकता है।
नियमित प्रसव पूर्व देखभाल के साथ, एससीडी से पीड़ित अधिकांश महिलाओं की गर्भावस्था स्वस्थ हो सकती है। लेकिन एससीडी होने पर अन्य गर्भवती महिलाओं की तुलना में स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं अधिक होने की आशंका होती है।
इन जटिलताओं में दर्द, संक्रमण और दृष्टि संबंधी समस्याएं शामिल हैं। दर्द अधिकतर जोड़ों और अंगों में होता है। यह दर्द कुछ घंटे और हफ्तों तक रह सकता है। इससे 20वें हफ्ते से पहले गर्भ में शिशु की मृत्यु हो सकती है यानी मिसकैरेज हो सकता है।
साथ ही प्री-मैच्योर बर्थ यानी शिशु के समय से पहले जन्म (37वें हफ्ते से पहले) औऱ कम वजन वाले बच्चे के पैदा होने की आशंका रहती है।
सिकल सेल एनीमिया होने वाली महिलाओं में गर्भावस्था के परिणाम सर्वाधिक प्रतिकूल होते हैं। लेकिन प्री-कंसेप्शन केयर से इसके परिणामों में सुधार हुआ है।
सिकेल डिजीज में गर्भावस्था के साथ प्री-एक्लेमप्सिया और एक्लेम्पसिया जैसी प्रसूति संबंधी जटिलताओं के जोखिम जुड़े हैं। इनमें गर्भावधि मधुमेह का जोखिम भी अधिक पाया गया है।
हां, अगर किसी भी पार्टनर को सिकल सेल डिजीज है, तो प्रीनेटल टेस्ट से यह पता लगाया जा सकता है कि गर्भस्थ शिशु में एससीडी के लक्षण हैं या नहीं। डॉक्टर इन टेस्ट को करने की सलाह दे सकते हैं।
एमनियोसेंटेसिस, इससे एमनियो द्रव की जांच करके दिक्कत का पता लगाया जा सकता है। यह टेस्ट 15 से 20 वें हफ्ते में होता है।
कोरियोनिक विलस सैंपलिंग, जिससे प्लेसेंटा के ऊतक की जांच होती है। गर्भावस्था के 10 से 13वें सप्ताह में यह टेस्ट करने की सलाह डॉक्टर दे सकते हैं।
अगर पहले से ही सिकेल सेल डिजीज है, तो प्रेग्नेंसी प्लान करने से पहले डॉक्टर से बात करें। इससे गर्भस्थ शिशु को इस विकार से बचाया जा सकता है। अगर आप सिकेल सेल डिजीज के साथ प्रेग्नेंट हो गई हैं, तो भी चिकित्सक से संपर्क करें। सही देखभाल से गर्भावस्था में पड़ने वाले इसके दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है।
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