22 Jun 2022 | 1 min Read
Vinita Pangeni
Author | 549 Articles
प्रीमैच्योर डिलीवरी को समय से पहले प्रसव होना व प्रीटर्म बर्थ भी कहा जाता है। सुखमनी फर्टिलिटी क्लिनिक में प्रैक्टिस कर रहीं डॉक्टर हरमीत कौर के अनुसार, “गर्भावस्था के 37वें हफ्ते से पहले कभी डिलीवरी होना प्रीमैच्योर डिलीवरी व प्रीमैच्योर बर्थ है।”
सामान्यत: गर्भावस्था 40 हफ्ते में पूरी होती है। लेकिन, 37वें हफ्ते तक शिशु का विकास गर्भ में पूरी तरह से हो जाता है। इसी वजह से 37वें हफ्ते के बाद प्रसव सुरक्षित माना जाता है। मगर इससे पहले प्रसव होना माँ और बच्चे दोनों के लिए ही खतरा है। नवजात की मौत का सबसे बड़ा कारण उसका प्रीमैच्योर पैदा होना है।
समय से पहले प्रसव व प्रीमैच्योर बर्थ काफी आम है। बताया जाता है दुनिया भर में करोड़ों बच्चों का जन्म समय से पहले होता है। करीब दस में से एक शिशु का जन्म प्रीमैच्योर हो जाता है। सिर्फ भारत में हर साल लाखों बच्चे प्रीमैच्योर पैदा होते हैं।
प्रीमैच्योर डिलीवरी व प्रीमैच्योर बर्थ को हफ्ते के आधार पर तीन हिस्सों में बांटा जाता है। ये हैं एक्सट्रिम, मॉडरेट और लेट प्रीमैच्योर बर्थ।
एक्सट्रिम प्रीमैच्योर डिलीवरी – महिला की डिलीवरी गर्भावस्था के 23 से लेकर 28वें सप्ताह के बीच हो जाती है, तो उसे एक्सट्रिम प्रीमैच्योर डिलीवरी कहा जाता है।
मॉडरेट प्रीमैच्योर डिलीवरी – प्रसव गर्भावस्था के 29 से 33वें सप्ताह तक होने पर यह मॉडरेट प्रीमैच्योर डिलीवरी व प्रीमैच्योर बर्थ कहलाता है।
लेट प्रीमैच्योर डिलीवरी – 34 से 37वें सप्ताह में कभी भी प्रसव हो, तो वह लेट प्रीमैच्योर डिलीवरी कहलाता है।
समय से पहले प्रसव होना का कारण एक नहीं है, बल्कि कई चीजें मिलकर यह स्थिति पैदा करती हैं। इसलिए हम समय से पहले प्रसव होने का कारण बनने वाली स्वास्थ्य स्थिति और जीवनशैली दोनों से संबंधी वजह बता रहे हैं।
इनकी वजह से गर्भावस्था में प्रीमैच्योर बर्थ व समय से पहले प्रसव के जोखिम बढ़ सकते हैं –
डॉक्टर हरमीत कौर के अनुसार, मैटरनल कारण और बच्चे के कारण के साथ ही यूट्रस की संचरना के कारण समय से पहले प्रसव हो सकता है। पहले कभी अबॉर्शन या मिसकैरेज हुआ हो, तो गर्भाशय कमजोर हो जाता है। इसके चलते भी जल्दी प्रसव हो सकता है। डॉक्टर हरमीत कौर ने विस्तार से इस बारे में बात की है, जिसे आप नीचे सुन सकते हैं –
प्रीमैच्योर डिलीवरी के कारण ही नहीं, बल्कि प्रीमैच्योर डिलीवरी के लक्षण भी ज्ञात होने चाहिए। इससे समय रहते सही कदम उठाने में मदद मिलती है।
प्रीमैच्योर डिलीवरी के लक्षण दिखते ही डॉक्टर एंडोवैजिनल अल्ट्रासाउंड या फीटल फाइब्रोनेक्टिन टेस्ट करवा सकते हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि समय पूर्व प्रसव होने का खतरा है या नहीं।
डॉक्टर समय से पहले प्रसव रोकने का इलाज कर सकते हैं। इसलिए, समय से पहले प्रसव के लक्षण दिखते ही अपने चिकित्सक से संपर्क करें। स्थिति को देखते हुए डॉक्टर प्रीमैच्योर डिलीवरी का इलाज करते हैं।
डॉक्टर गर्भवती महिला को हार्मोन ट्रीटमेंट दे सकते हैं। हार्मोन ट्रीटमेंट के दौरान 16 से 17वें हफ्ते तक प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन महिला को देते हैं। यह हार्मोन गर्भावस्था के दौरान शरीर में बनता है और इस हार्मोन ट्रीटमेंट से 33 प्रतिशत मामलों में प्रीमैच्योर डिलीवरी से बचाव कर सकता है।
गर्भाशय ग्रीवा कमजोर होने के कारण प्रीमैच्योर डिलीवरी का खतरा बढ़ रहा है, तो डॉक्टरी सर्वाइकल सेरेक्लेज ट्रीटमेंट कर सकते हैं। इस दौरान गर्भाशय ग्रीवा के आसपास एक टांका लगाकर प्रीमैच्योर डिलीवरी को रोका जाता है।
दरअसल, कुछ महिलाओं का सर्विक्स व गर्भशय ग्रीवा बच्चे के वजन को संभाल नहीं पाता है और उनमें गर्भपात या फिर प्रीमैच्योर डिलीवरी का जोखिम रहता है।
इसके अलावा, संक्रमण के कारण बढ़ रहे प्रीमैच्योर डिलीवरी खतरे को रोकने के लिए डॉक्टर एंटीबायोटिक्स संक्रमण दे सकते हैं। साथ ही प्रीमैच्योर डिलीवरी के इलाज के लिए गर्भवती महिला को उसके 24 से 34वें हफ्ते के बीच स्टेरॉयड दिया जा सकता है।
प्रीमैच्योर डिलीवरी रोकने की दवाई के रूप मेंं डॉक्टर कई बार टोकोलाइसिस लेने की सलाह दे सकते हैं। यह दवाई डॉक्टर की सलाह के बिना बिल्कुल नहीं लेनी चाहिए।
अगर आप प्रीमैच्योर डिलीवरी से बचने के उपाय (Premature Delivery Se Bachne Ke Upay) जानना चाहती हैं, तो लेख को आगे पढ़ें –
प्रीमैच्योर डिलीवरी होना व समय से पहले प्रसव के बारे में आप सबकुछ समझ ही गई होंगी। आप समय से पहले शिशु के जन्म के कारण को समझकर प्रीमैच्योर डिलीवरी से बच सकती हैं। आप समय से पहले प्रसव के लक्षण, जैसे पेट पर दबाव होना, पेट दर्द पर ध्यान दें और डॉक्टर से सलाह लें। वक्त रहते डॉक्टर प्रीमैच्योर डिलीवरी का इलाज कर सकते हैं।
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